धर्म इंसान बनने की विधा है

मै सिख हूँ ,इसाई हूँ,मुसलमान हूँ ,या हिंदू हूँ ,और यदि हिंदू हूँ तो मै गायत्री का उपासक हूँ ,या आर्य समाज मानने वाला हूँ या शिव शक्ति या एकात्मक ब्रह्म को मानने वाला हूँ अथवा मै किसी और संप्रदाय पर अमल करने वाला हूँ |
प्यारे मित्र यह सब धर्म कहाँ है ये तो मत है विचार धारा है या स्वयं को विरासत में मिली कोई पद्धति है यह धर्म कैसे हो सकता है, यह तो वह वाहिका है जिसके सहारे हम अपने विश्वास एवं एकाग्र होने की प्रवृति को बांधते है औरइसका स्वरुप बहुत ही छोटा और धर्म की वाहिका हो सकता है सम्पूर्ण धर्म नहीं |

गुरु साहब ,बाइबल कुरान ,या वेदोक्त अध्ययन करके क्या मै अनंत प्रेम, परमार्थ , दया ,और दूसरे के सुख कासाधन बन पाया या नहीं ,क्या मैंने इन सब का अध्ययन कर उसपर अमल किया, यदि नहीं तो हमें पुनर चिंतन करअपनी एक आदर्श दिशा बनाने की आवश्यकता है जिसके सहारे हम वास्तविक धर्म का अनुशरण कर सकें |

प्यारे मित्र आप हिंदू धर्म आर्य समाज गायत्री और किसी भी हिंदू पद्धति से जुड़े हों आपका मूल ग्रुन्थ वेद ही है
जिसमे वैज्ञानिक आधार पर जीवन जीने की कला दर्शाई गई है ,पशु ,राज्य ,कर्म काण्ड ,ज्योतिष ,गृह गणना
और सूर्य या चंद्रमा का अस्त और उदय होना बड़ा चालित यन्त्र जैसा है जिसे तथ्यों द्वारा सिद्ध किया जा सकता है
और जिसे सिद्ध किया जा सके वही विज्ञान भी है |

मेरा मानना है कि यदि आपमें अथाह प्रेम ,दया कर्तव्य बोध ,और दूसरों के दुःख में सहयोग करने कि कला है तोआप धार्मिक है आप अपने कर्तव्य ,अपने समाज ,बलिदान कि भावना और जिज्ञासु का भाव रखते है तो आप सेबड़ा धार्मिक हो ही नहीं सकता आप कहीं भी हो इन गुणों से सारा निष्कर्ष स्वतः स्पष्ट हो जाएगा|

धर्म तो जीवन जीने कीवह कला हैजिसमें यह छुपा है कि जीवन को और अधिक सुखी और पूर्णकैसे बनाया जाएबिना समस्याओं के पूर्ण संतोष का मायने |

Previous Post

हर नया इंसान बेईमान नहीं है |

Next Post

क्यों लगते है कुछ लोग अपने

Related posts

Comments0

Leave a comment