इंसान

इंसान जाल मे फंसा एक जीव है 

जो मुक्ति की चाह में तडफडाता है

अपनत्व रूठ जाने पर घबराता है 

जीवन भर संजो कर रखा था जो अपनत्व घट

जब अपनी ही ठोकर से फूट जाता है

तो फिर टूट जाता है

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