ईश्वर सबसे महान है आपकी सफलता की शक्ति भी है
ईश्वर सबसे महान है (God is the Greatest) आपकी सफलता की शक्ति भी है
एक संत जी लाखों की भीड़ के सामने जोर जोर से ईश्वर की परिभाषा बता रहे थे अबोध जनता हतप्रभ सी सब सुन रही थी उनके भजन गीत और ईश्वर के प्रति जो भाव थे वे बड़े निराले और अजीब तरह के थे कभी यह बताने की भरसक कोशिश कररहे थे कि में दुनिया में आज तक जितने संत हुए वो उनसब में सर्वश्रेष्ठ है योग, तंत्र, मंत्र ,ज्ञान और भक्ति में उनसे बड़ा नहीं जीवन में ईश्वर से कैसे मिला जा सकता है वो भली भांति जानते है , और क्रोध अपरिग्रह ,समर्पण ,सब उस परमात्मा के लिए आवश्यक है ,एक गरीब किसान उनके भाषण सुन कर इतना प्रभावित हुआ की वह सोचने लगा की महाराज रोज ईश्वर से मिलते होंगे महाराज सही ही तो कहरहे होंगे कि ईश्वर को कड़ी मेहनत ,और समर्पण करके ही पाया जा सकता है |
भाव कुछ ऐसा था की वह महाराज की सेवा में लग गया मालूम हुआ महाराज की ४ फैकटरियां चल रही है उनके लड़के सारी सम्पत्तियां सम्भाल रहें है , महाराज फ़ोन पर बात करते करते कभी कभी इतने क्रोधित होजाते थे कि भद्दी भद्दी गालियां बोलने लगते थे , दूसरों से तुलना करते ही उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाता था और वे उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते थे ,।
एक बार एक बड़े त्यौहार में संत जी का सारा परिवार प्रसन्न था खुशियों का वातावरण था अचानक जोर का भूकम्प आया किसान जल्दीसे संतजी को कंधे पर बैठा कर पलक झपकते ही सामने मैदान में छोड़ आया, और जैसे ही लौटने को हुआ पूरा भवन भरभरा कर ढह गया सारे पुत्र पत्नी बच्चे संत जी जोर जोर से रोने लगे किसान ने बोल महाराज धैर्य रखो भगवान सब ठीक करेंगे , महाराज ने तमाम गालियां देते हुए कहा क्या ठीक करेंगे वो तो जनता को कहने के लिए है तू जा फायर ब्रगेड बुला , और फिर वे जोर जोर से रोने लगे ,
किसान ने अनवरत ईश्वर को याद करते हुए पीछे के गटर के रास्ते से थोड़ी खुदाई की वह उसे थोड़ी आवाजे आयी उसने और साथियों की मदद से उसमे एक बड़ा सूराख बना कर सबको सा कुशल निकाल लिया संत जी ने देखा की किसान उनके दी हुई भगवान की तस्वीर लिए बड़े ही समर्पण भाव से प्रभु को शुक्रिया बोलरहे है , संत जी किसान के पांवों में गिर पड़े बेटा वास्तव में मैंने ईश्वर को आज ही पहिचाना है , यह कहकर वे सबकुछ छोड़कर जंगल की और चलेगए साथ में किसान भी चल दिया |
भगवान , अल्लाह , जिसिस , क्राइस्ट ,गुरु , और अनेक नामों वाला भगवान अलग अलग माध्यमों से आपके द्वारा पूजा जाता है , वह केवल उनलोगो को अपना अस्तित्व बता पाता है जब आप सबकुछ आशा छोड़कर उसके सामने आर्त भाव से खड़े होजाते है , यही कारण है जब आप महां संकट में होते है और उससे छूटने का कोई रास्ता नहीं होता आपके पास ,तब आप पूर्ण मनोयोग और १००% आर्त भाव से उसके समीप जाकर अपना भाव प्रकट करते है और आप सही मानिए की इनमें से ६०% सफलता भी प्राप्त होती है क्योकि यहाँ आपके प्रार्थना पूर्ण थी |
जब भी हम अपनी और समाज की और देखते है तो केवल यही चिंता सताने लगती है की इन सब में मैं कहा हूँ मेरा अस्तित्व इनकी तुलना में कैसा है,बस यहीं से भगवान लुप्त होने लगता है और मैं और मेरा अहंकार इतना बड़ा हो जाते है कि जिसमे भगवान का अस्तित्व तक नहीं रह जाता , फिर हर बात में मुझे दूसरों की चिंता ज्यादा सताने लगती है की कहीं कोई मुझसे ऊपर न चला जाए परिणाम व्यक्ति की सारी शांति स्वयं नष्ट होजाती है |
तुलसी अपने भावों में कई बार लिखते रहे
अहंकार अति दुखद डमरुआ
प्रभुता पाहि कांहे मद नाही
ओर अंकुरेहु गरब तरु भारी
जहाँ ईश्वर है वह अहंकार हो ही नहीं सकता, हमारे व्यक्तित्व में ईश्वर जन्म से ही १००%प्रतिशत अस्तित्व में निवास करता था , जैसे जैसे हम बड़े होते है झूठ , बेईमानी , क्रोध स्वार्थ और अपना पराये के भाव से उस १००% में धीरे धीरे कमी आने लगती है परिणाम ईश्वर का भाव लुप्त हो जाता है । फिर हमारा मन अपने व्यक्तित्व के अनुसार एक झूठे और काल्पनिक ईश्वर का सृजन करलेता है ,जो केवल हमारे स्वार्थों को पूरा करने के लिए ही निर्मित होता है परिणाम यह कि हर आदमी अपना ईश्वर बनाए हुए है और उसे ही अपने स्वार्थों की आपूर्ति का साधन बनाये है तो ऐसे में आदर्शों की बात तो कोरी कल्पना ही होगी न| | आज ईश्वर के नाम पर धर्म के नाम पर जो विभेद दिख रहा है वह इसी स्वछंदता और अहंकार का परिणाम है |
हम जहाँ है जैसे है जिस कार्य में लगे है वहां पूरी निष्ठां से अपने आदर्शों और सत्य का प्रयोग करते हुए ईश्वर पर विश्वास रखे कि वह आपको एक दिन अवश्य सफल बनाएगा , सफलता के मार्ग का आनंद केवल ऐसी सफलता से ही निर्मित होता है , कैसे भी प्राप्त की सफलता आपके जीवन को एक ऐसी यातना बना डालती है जहाँ आप कभी उस आनंद तक नहीं पहुँच सकते, जहाँ आपकी वह आनंद यात्रा समाप्त हो सके , हम जीवन को जितनी जटिलताएं देंगे जीवन आपको उतना ही उलझता चला जाएगा और स्वयं आप अपनी सारी उपलब्धियों के बाद भी स्वयं से अपने अस्तित्व से और अपने चेतन्य भाव से स्वयं को हरा हुआ ही मान बैठेंगे, क्योकि अंतर्मन की निर्णायक शक्ति आपको कभी श्रेष्ठ नहीं मान पायेगी |
- ईश्वर एक सार्थक चेतन्यता का भाव है उसकी अनुभूति करने का प्रयास अवश्य करे एक बार इस भाव के सामने स्वयं को खड़ा करके देखेंगे तो अनेक निर्णय स्वतः हो जाएंगे।
- भगवान कोईभी धर्म के अवलम्बियों का हो वह आपकी अंतर चेतना से निरन्तर जुड़ा रहता है एक बार उसकी यथार्थता के बोध के साथ सबका सामान करना सीखें |
- सत्य उस ईश्वर की उपलब्धि की सबसे बड़ी शर्त है , जबतक आप सत्य को मानने वाले नहीं बनेंगे तबतक आपका अस्तित्व झूठ का पुलंदा बना खुद को नकारता रहेगा |
- सहजता का मार्ग आपको जीवन जीने की कला में एक नया स्थान दे सकता है क्योकि आपकी जटिलताएं ही आपको जीवन के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनकर मिलती है |
- कोई ईश्वर को कर्म मानता है , कोई उसे सेवा मानता है और कोई उसे प्रेम का स्वरुप दे सकता है मेरा मानना यह है कि उसे कुछ भी मानो परन्तु उसको मानने के बाद स्वयं को याद दिलाते रहना आवश्यक है |
- जीवन मे संकल्प सबसे बड़ा सिद्धांत है जीवन में यदि संकल्प की परिपक्वता को हम सार्थक न बना सके तो जीवन व्यर्थ ही होगा | ध्यान रहे कि हम स्वयं की अपवंचना करके बार बार जन्म मृत्यु की दौड़ से यातनाएं ही चुनते रहेंगे |
- जो सकारात्मक तथ्य आपके अंतः चित्त की पृवृत्तियों को स्वयं के लिए श्रेष्ठ साबित कर सकते है उनका सतत चिंतन अवश्य करते रहें , वही आपको एक दिन श्रेष्ठ सिद्ध कर देगा |
धर्म और नैतिकता के नाम पर बाहुबल , सहजता के नाम पर जटिलताएं , और संत के नाम पर अहंकार की आँधियों में जूझता व्यक्ति कैसे ईश्वर को समझता होगा , संन्यास के बाद ढेरों सुविधाओं की लड़ाई लड़ता आदमी , चीख चीख कर धर्म को अपने अनुसार समझाता हुआ इंसान कितना जान पाया है स्वयं को यह प्रश्न चिन्ह है| धर्म का वास्तविक अर्थ है -सहजता , अपरिग्रह ,सत्य और सबमे भगवान का भाव देखने वाला भाव ,जिसे हर समय यह ज्ञान है कि मृत्यु अवश्यम्भावी और निकट है, फिर स्वयं की आत्मा से बार बार दुराव और छलावा किस लिए ,जो भाव सम्पूर्ण पृकृति को और जीव को ईश्वर मय देख सके वाही श्रेष्ठ है |
एक बार बहुत छोटे बच्चे जैसे आँख बंद करके अपनी माँ की गोद में छुपने का प्रयत्न करो यह मानकर कि आप अपने ईश्वर के हाथ में सुरक्षित है और यही आपकी असली खोज थी , सच मानिए पहली बार आपदुनिया के चार्म आनंद में ईश्वर के सबसे निकट होंगे | और यही से आपको आपका चरम आनंद का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाएगा |
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