शांति का द्वार है भारत
एक दिव्य पुरुष तेजी से एक सुनसान रास्ते पर चला जा रहा था रास्ता सूना था, और मार्ग कठिन भी था , एक राहगीर ने उसे देखा और सोचा मै भी इसके साथ हो लेता हूँ शायद भय और रास्ते के अकेले पन से तो मुक्ति मिलेगी-यही सोच कर उसने उस दिव्य पुरुष को प्रणाम किया और उसके साथ चल दिया ,आगे जा कर दोनों देखा कि एक आदमी जोर जोर से रो रहा है, पूछने पर मालूम हुआ कि उसकी संपत्ति चोरों ने लूट ली है -दिव्य पुरुष ने उससे कहा क्या तुम्हारा रोना उचित है ,देखो मैं आपको ईश्वर की कृपा दिखता हूँ, उसने आँख बंद करने को कहा और जब आँखे खोली तो वह मनुष्य उस दिव्य पुरुष के पैरों में गिरकर माफ़ी मांगने लगा ,दिव्य पुरुष ने कहा नाचो, गाओ भाग्यशाली हो तुम ------और मैं और वो फिर आगे बढ़ गए ,आगे जाकर उसने देखा सुनसान में एक आदमी फिर जोर जोर से रो रहा है , दिव्य पुरुष ने कारण पूछा तो उसने बताया कि उसकी प्रेमिका ने उसे प्रताड़ित किया है, दिव्य पुरुष ने फिर उससे कहा , अपनी आँखे बंद करो थोड़ी देर में वह डरा हुआ उठा दिव्य पुरुष ने कहा पुत्र बहुत भाग्य शाली हो आप ,नाचो गाओ वह नाचने गाने लगा और हम फिर आगे चल दिए ,आगे जाकर देखा कि एक राज पुरुष बहुत जोर जोर से रो रहा है दिव्य पुरुष ने पूछा क्या हुआ तो, उसने बताया मैं अपना राजपाट सब हार गया हूँ, और मेरे सारे सम्बन्धी वही रह गए है ,उनके बिना मैं कैसे जियूंगा समझ नहीं आरहा ,सोचता हूँ आत्महत्या करलूं | दिव्य पुरुष ने उसे भी कहा आँख बन्द करके ध्यान से देखो ---------फिर थोड़ी देर में उसने कहा उठो राजा यह सब सच है ,जाओ नाचो गाओ, राजा नाचने गाने लगा और हम आगे चल दिए ,अब मुझसे रहा नहीं गया ,मेरा घर आने को था, मैंने उसके पाँव पकड़ लिए और विनती की हे महाबाहो मुझे इन सबका अर्थ बताओ मैं परेशान हो गया हूँ |
दिव्य पुरुष मुस्कुराते हुए बोला पुत्र मैं एक बहुत बड़े साम्राज्य का सम्राट था मेरे पास सारी विलासिताएं थी मेरे राज्य का कोई अंत नहीं था, मैं हर रोज जीवन की उन विलासताओं को नए नए तरीकों से उपयोगित करके बहुत खुश होता था ,और इस तरह मैं स्वयं को भगवान से भी बड़ा समझने लगा, एक दिन अचानक एक सांप ने मेरे इकलौते पुत्र को काट तत्क्षण उसकी मृत्यु होगई ,अब तो सारी विलासताएं हमे खाने दौड़ने लगी ,सारे खजानों से भी हमारे बेटे की एक स्वांस वापिस नही आ सकी , हम बुरीतरह रो रहे थे तब एक दयालु साधु ने उसे जीवित कर दिया मैंने ईनाम को कहा तो उसने मुझे आँख बंद करने को कहा ,आँख बंद करते ही मैंने देखा कि मेरे जैसे करोडो राज्य उस सत्ता के सामने नगण्य थे , मैं जिसे सुख और अन्नंत साधन समझ रहा था वो मेरा ही प्रयोग कररहे थे , मैं भिखारी , क्रोधी , असहनशील और एक डाकू की भाँती स्वयं को सराहता देख रहा था जबकि मेरे बराबर कोई दया का पात्र नहीं था ,और उस दिन मै भी साधु के साथ चलने लगा |
प्रथम राहगीर ने आँख बंद करते ही देखा कि चोरो का एक साथी बोला इसे हम मार देंगे दूसरा कहने लगा छोड़ो बेचारा कमा लेगा मगर उसे भगवान की प्रेरणा से जीवन दान देदो आगे हत्या लेंगे ,उस व्यक्ति ने सोचा ईश्वर ने मेरी रक्षा की ,और वह रोते रोते नाचने लगा |
दूसरे राहगीर ने देखा उसकी प्रेमिका अपने दो मित्रों के साथ यह बात कररही थी कि अब उसका पैसा ख़त्म हो गया है ,और वो मुझे बहुत रोक टोकी कर रहा है उसे रास्ते से हटाओ मित्र बोला उसका बहुत पैसा खाया है उसे छोड़ दे |और दूसरे आदमी ने फिर अपने प्राण रक्षा के लिए ईश्वर को धन्यवाद कहा और नाचने लगा |
तीसरे राजा की आँखे बंद होते ही उसने देखा उसके सारे घरवाले दुश्मन की सेना से मिलगये है और उन्हीने षड़यंत्र के अंतर्गत राजा को उसके महल में ही क़त्ल करने की शाजिश रची थी राजा को अचानक मन घबराना और गुप्त मार्ग से जंगल आना और राज द्रोह और राज्य हारने की सूचना मिलाना और आगे राज्य प्राप्त होने का मार्ग दिखना उसके सारे उत्तर प्राप्त करने को काफी था |और वह भी रोते रोते नाचने लगा |
दिव्य पुरुष कहने लगा कि पुत्र जीवन को प्रभावित करने वाली आपकी इच्छाएं प्रतिदिन बढ़ती रहती है और यौवन , धन और चल अचल सम्पत्तियों की हवस बढ़ती चली जाती है , और हर श्रेष्ठ व्यक्ति और वस्तु पर केवल उसका ही हक़ होना चाहिए ,यही भावना उसे सुख और दुःख का एहसास कराती रहती है ,शांति -सौहार्द एक प्रतियोगिता होजाता है ,राज्यों को बढ़ाने की होड़ एक हिंसक खेल की भांति खूंखार पशुओं की लड़ाई जैसा मैदान हो जाता है , हमारी संवेदनाएं मर जाती है , जीवन केवल अपने स्वार्थों से लिपटकर हर जुल्म और शोषण को जायज ठहराने लगता है , फिर हम ईश्वर की इच्छा से अनभिज्ञ केवल रोते पीटते रहते है बिना यह जाने कि यह हमारे भविष्य की सुरक्षा -सुख और स्थिरता के लिए क्या आवश्यक था |
भारतीय परम्परा के अनुसार जिन आश्रमों की बात की गई है उनमे प्रथम आश्रम में शिक्षा , सेवा , आज्ञा , और सीखने की तथा संस्कारों के परिष्करण के अध्याय पढ़े और पढ़ाये जाते है जिससे मानवीय सद्भाव सबके प्रति सेवा , , सहष्णुता का भाव बनाये रखना प्राथमिक आवश्यकता बताया गया है यही से उसमे सत्य -अहिंसा -त्याग - संतोष की भावना पैदा होती है , यम नियम आसान प्रत्याहार प्राणायाम धारणा ध्यान समाधि के अष्टांग योग में सम्पूर्ण मानवीयता को मनुष्य से देवता रूप में होने की शिक्षा थी |
द्वतीय आश्रम में समाज को समझने राष्ट्र निर्माण और स्वयं के निर्माण का एक आदर्श चित्रण है , जीवन को सबके हितार्थ समर्पित करने की पहल है ,शिक्षा कल्याण और समाज को सहायता देने वाले हर कार्य को यही से समझाया जाता है और यही से मानवीय जीवन के वो मूल्य जीवन में विकसित होते है जिनसे किसी राष्ट्र के नागरिको को महान बनाने की प्रक्रिया पूर्ण की जाते है , आचार विचार क्रिया और क्रियान्वयन यहीं से आरम्भ होते है |
तृतीय आश्रम में व्यक्ति को एक स्वस्थ्य समाज की परिकल्पना करते हुए गृहस्थ आश्रम की बारीकियां सिखाईं जाती है वह पति पत्नी , घर परिवार , राष्ट्र और उसका विकास जैसे अध्ययन के विषयों से सम्बद्ध होता है , यहीं से समाज में चरित्र के आयाम पूर्ण होते है , यहाँ से मनुष्य , निष्ठ चरित्र को सिद्ध करते हुए राष्ट्र की उस नई पीढ़ी का निर्माण करता है जो जाकर समाज को नई दिशा दे सके |
अंतिम रूप में व अपने चौथे आश्रम में आकर जीवन के हर भाग में उसने क्या किया है और उसे आगे क्या करना चाहिए समाज जीवन और उसकी परम्पराओं से हमने क्या सीखा है उसे अपना योगदान देकर हम कैसे लौटा सकते है यह सब विषय इस आश्रम की क्रियान्वयनता है यही से आगामी पीढ़ी के वो सशक्त मार्ग तैयार होते है जो आगे जाती , धर्म , मजहब से पहले इंसान पैदा करती और उन्हें मनुष्य बनाती भी है |
भारतीय ज्ञान पद्धतियां यही मानती है कि सम्पूर्ण में एक परमसत्ता या यूँ कहें कि कोई कोई अदृश्य वैज्ञानिक शक्ति व्याप्त है और वही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को दिशा निर्देशित करती रहती है वही कर्म और और अकर्म का कारक है वाही जड़ चेतन और परिवर्तन का मूल है , और वैज्ञानिक शक्ति के एकाग्र और एकात्माक ध्यान मंत्र पद्ध्तियों से उसे बहुत अंश तक प्राप्त किया जा सकता है | ध्यान योग और जटिल प्रक्रियाओं से दूर एक अडिग विश्वास का विषय है और शर्त यह की उसका स्वयं के लिए न होकर दूसरों के हितार्थ ही होना चाहिए शायद वहीँ से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कल्याण संभव होगा और यहीं से शान्ति सौहार्द और एकात्मकता का भाव पूर्ण हो पायेगा |
भारतीय ज्ञान और जीवन शैली को आत्मसात इनका करें
जीवन की सहजता को समझने के लिए अपने व्यक्तित्व से सम्पूर्ण जटिलताओं क समाप्त करने का प्रयत्न करें जबतक आप स्वयं की जटिलताओं को ख़त्म नहीं करेंगे तबतक जीवन आपको शांति नहीं देगा |
जीवन को सच्ची दिशा देने के लिए उसके चारों और सीमा रेखाएं अवश्य बनाइये इन्हे आदर्श या ethicsमाने जो आपको सुगम और ऊँचें मार्ग प्रदान करेंगे |
स्वयं को एकाग्र करें अपने आपमें निहित होते जाइए में खोते जाइए और एक बिंदु वह आएगा जहाँ आपको कुछ भी ध्यान नहीं रहेगा बस यही बिंदु आपको सबसे बड़ी सकारात्मकता पर ले जाएगा |
स्वांसों पर नियंत्रण रखिये गहरी और स्वासें आपको सकूँ दे सकती है , बहुत क्रोध के समय गहरी स्वास मुंह और नाक दोनो से ले सकते है | कुछ समय आँख स्वांसों पर लगाएं |
स्वांसों के साथ अपने इष्ट का नाम मन ही मन दोहराते रहें आपको १००% सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि आप अनुसार ही इष्ट इष्ट का ध्यान करें क्योकि आधार भूत वह मालिक एक ही है |
शरीर मन और शक्ति की एक सीमा है ,और सोच आत्मा का विषय है उसे सकारात्मक और परमार्थ के साथ जब तक बनाये रखेंगे आपको स्वयं की महत्वता का ज्ञान अवश्य होता रहेगा |
नकारात्मक लोगो और विषयों का चिंतन दीर्घ काल में आपको भी नकारात्मक बना देगा अतैव जहाँ तक संभव हो नकारात्मक लोगो और विषयों का चिंतन न करें |
स्वयं के शरीर और मन पर अंकुश -नियंत्रण बनाये रखिये ,क्योकि यहीं से आपको हार दुःख और क्रोध जैसी परिस्तिथियों का सामना करना पड़ता है |
"आपका और हर मनुष्य का जन्म किसी नियत कार्य के लिए हुआ है , हमारी तरह उनके भी मूल्य , आदर्श और देवता सर्वोपरि है फिर मतभेद का कारण कोख , देश ,और जातियां कैसे हो सकती है , सर्वधर्म समभाव का मूल्य केवल वह समझ पाता है जो वास्तव में अपने धर्म को सूक्ष्म रूप से जानता है , शायद यही से धर्म का प्रादुर्भाव भी हुआ होगा ,यदि शांति - मोक्ष और स्वर्ग और जन्नत की कल्पना आपके दिमाग कही कभी उठी हो तो स्वयं को एक बार एकाग्र कर उस परमपिता में अवश्य लगाइये जिसने बिना धर्म जाति मजहब और पंथ देख कर हर गरीब मजबूर बेसहारा की मदद की है और वाही इस ब्रह्माण्ड का आधार है और यदि आप उसकी ही संतानें है तो यह सिद्ध करने का दायित्व आपका ही है"
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