क्षमा क्रोध से सशक्त हथियार है

आम आदमी के स्वाभाव में जरा जरा सी बात में क्रोधित हो जाना  एक स्वाभाविक सी प्रक्रिया है  आज हम दैनिक जीवन में जिन परिस्थितियों से जूझ रहे है  वहाँ  अपने व्यक्तित्व कि कमियां ही है हम पर ,कही धन का आभाव है कहीं संसाधनों कां अभाव है कही सामाजिक राजनैतिक  या सांस्कृतिक प्रतिमानों का आभाव है कहने का अर्थ यह कि हमे आभाव है और वही कही से हमारे व्यक्तित्व में कमियां उत्पन्न हो रही है | 

एक सम्राट ने भिखारी का वेश रख कर शहर का भ्रमण किया और गाँव के सबसे कंगाल व्यक्ति से राज्य के विकास, प्रसंशा के बारे में पूछा कंगाल नाराज होगया क्रोध में अनर्गल बकता रहा और सम्राट हँसता रहा दुखी होता रहा ,अंत में कंगाल ने उस सम्राट में चाटा मार दिया और गालियां देकर बोला गर्त में जारहा है ये राज्य और तू मजाक बनाने आया है !सम्राट के आंसू छलक आये कितनी गरीबी कितनी मजबूरी और कितनी गहरी व्यथा है बेचारे पर  यही   सच्चा मित्र है मेरे राज्य का,दूसरे दिन जब कंगाल राज्यसभा में आया तो बहुत माफी माँगी बहुत रोया सम्राट ने बहुत सा धन देकर विदा किया उसे और  कहा  मित्र तुम्हारा क्रोध इस लिए जायज  है कि तुम पूर्ण रूप से कंगाल थे अब तुम ज्ञान धन और संस्कारों के साथ जीना क्योकि जिन अभावों में तुम थे मैंने उनसे तुम्हे मुक्त कर दिया है ,अब  तुम्हे क्रोध नहीं आएगा यही विश्वास है मेरा | 

जहाँ आभाव रिक्तता ! शून्यता पैदा होने लगती है वहाँ सांसारिक नकारात्मकताएं अधिक प्रभावित करने लगती है , घर परिवार राष्ट्र और परिवेश की  नकारात्मकताएं आपके मन मष्तिष्क पर  हावी होने लगे तो क्रोध आना स्वाभाविक है ,क्रोध शक्ति का नहीं वरन रिक्तता और शून्यता का प्रतीक है   क्षमा  से आपके व्यक्तित्व कि गरिमा परिलक्षित होती है | 
क्षमा वीरों के आभूषण के स्वरुप में माना गया है 
क्रोध शक्ति हीनता का प्रतीक है 
क्षमा मागने का अर्थ यह नहीं कि आप गलत है यह आपकी विनम्रता भी हो सकती है 
क्रोध  एक ऐसा   विषय है जिसमे आप दूसरे को बुरा बताने की तीव्रता में स्वयं को सजा दे रहे होते हो ॥
 क्रोधी से समता का भाव रखने कि कामना करना व्यर्थ है | 
क्रोध का एकबड़ा कारण  अ हंकार  भी माना गया है चाहे वह  विद्वता का हो या धन का या पद का सभी प्रकार के अहंकार से क्रोध स्वतः उत्पन्न हो जाता है | 
जीवन में स्वीकारोक्ति के आभाव भी क्रोध का बड़ा कारण है क्योकि इसमें यह गलत फहमी बनी रहती है कि मैं  अकेला सत्य और श्रेष्ठ हूँ | 
कहने का आशय यह कि जीवन को जिन अवगुणों से बचा कर हम जिस बड़े सकल्प से समाज बनाने का संकल्प  कर रहे है वाहाँ आप स्वयं झुकने का प्रयास कीजिये क्योकि अकड़न प्रायः लाशों में देखी  जाती है | 
एक बार फिर क्षमा का भाव लेकर विनम्र होकर सबको जीतने का प्रयास करें । 

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