ईश्वर सत्य है
कभी होता भरोसा कभी होता भरम ऐ खुदा तू है कि नहीं
अनादी काल से मनुष्य की सोच रही है कि वह सर्वशक्तिमान की शक्तियों से अविभूत रहे उसकी सारी समस्याएं ,कमिंयां और अपूर्णताएँ पलक झपकते हीदूर हो जाए यही एक विश्वास एक धनात्मक मानसिकता के साथ वह अपने गंतव्य की और अग्रसित रहे|उसके लिए उसने हजारों विश्वास खड़े किये ,और इतिहास साक्षी है कि वह उसमें सफल भी रहा है |
वेद कि ऋचाएं कुरान शरीक कि आयातें बाइबिल के विश्वास कि कहानियां और हर धर्म का अपने अनुरूप संचालन एक अभूतपूर्व विश्वास नहीं तो क्या है |ब्रह्माण्ड का हर जीव किसी न किसी विश्वास के सहारे माना गया है और स्वयं ब्रह्माण्ड भी उन अवयवों के भाग से निर्मित है जिसे न्यूट्रोंन प्रोटोंन ,इलेक्टोन और इसकी अति सूक्ष्म इकाइयों तक क्रिया शील देखा है वैज्ञानिकों ने |ये अवयव जिस केंद्र के चारों और एक नियत गति से चक्कर लगा रहे है वह विश्वास है एक अन सुलझा किन्तु गतिशील क्रिया जों अपने केंद्र से बंधी है|
दोस्तों इश्वर की परिभाषाएं हर समाज और मनुष्य कीअलग ही हैक्योकि वह अनुभव गम्य है और वही उसका विश्वास है |कोई एक शक्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को संचालित कर रही है ,कुछ लोग इसे ईश्वर मानते है कुछ लोग विज्ञान दौनों ही मत अपनी जगह सही है क्योकि कोई शक्ति सपूर्ण प्रकृति में क्रिया शील अवश्य है| वेद कहता है
एको देवः सर्वाः भूतेशु गूढ़ ;सर्व वापी सर्व भूतनत्रात्मा
कर्माध्यक्ष ;सर्व भूत ; कर्म वही केवलो निर्गुनाश्य ;
अर्थात सम्पूर्ण पृकृति में केवल एक ही शक्ति है और वह जड़ चेतन सबको संचालित कर रही है और लोग इसे किसी भी नाम से पुकारें वह शक्ति सबमें अन्तर्निहित है |
वही कर्म का आधार है वही चेतना रूप है वही आदर्शों का शिखर है वही अनुभव गम्य है ओर वही निर्गुण एवं सगुन है |
दोस्तों आदर्श कर्म ओर अच्छे विचार ओर उनकी सोच सब उसका ही भाग है |अथर्व वेद में जिन देवताओं को शक्तिमान माना गया है उन्होंने सारी शक्ति केन्द्रित कर एक शक्ति का निर्माण किया है वह भी वही रूप है |
अब एक मत यह मानता है की क्या संसार के हर कार्य का सम्बन्ध ओर उसका संचालन उस ईश्वर के नाम पर कैसे हो सकता है तो दोस्तों यहाँ मै आपको विज्ञान तक ले जाना चाहूँगा ,परमाणु ऊर्जा का प्रत्येक सूक्ष्म कण जों अपने स्थिर केंद्र का चक्कर लगा रहे है उनका हर भाग स्वयं एक वृहत चक्र है ओर हर सूक्ष्म का सम्बन्ध किसी सांसारिक क्रिया से जुड़ा है ओर वही ब्रह्माण्ड की क्रिया आपको ओर संसार को एक प्रति ध्वनी दे रही है यदि आप यह पहचान लें तो शायद हर होने वाला कार्य आपके प्रयासों से आकर्षित होकर आपके अनुरूप ही होगा | इसे मै ईश्वर नाम देता हूँ आपकुछ ओर भी कह सकते है |
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