आलोचना के जीवन पर प्रभाव

आलोचना के जीवन पर प्रभाव
"परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा , पर निंदा सम अघ न गिरीशा "

निंदक नियरे राखिये
हम जिस समाज जिस राष्ट्र मे रहते हैं ,वह धर्म ,संस्कृति ,समाज और मूल्यों के कारण ही महानतम स्थान पर है |तकनीकी उन्नति ,मूल्यों और धर्मों का सद्भाव तथा अनेकता मे एकता का जो परिद्रश्य हमने देखा है वह अद्भुत था |धर्म ने व्यक्ति को सम भाव ,सर्वहारा ,कठिन परिश्रम का संदेश दिया तो दूसरी और यह भी बताया कि वह जीवन के प्रगतिशील मार्गों मे अपनी सफलता कैसे सुनिश्चित करे |कैसे वह जीवन से वह रस निकाल सकता है जिसमें उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व धनात्मक होकर अपनी वसीयतों को वो साँस्कृतिक प्रतिमान दे जो भारतीय संस्कारों के अनुरूप हों |
वर्तमान में हम बार बार समाज के उन चरित्रों का चिंतन करते है जो चिंतन और सोच का विषय ही नही है और हमारा तमाम अस्तित्व और समय ,ताक़त इनमे ही जाया हो रही है |इस चिंतन के पश्चात् बहुत देर तक मन व्यग्र बना रहता है,कुछ न कर सकने कि छटपटाहट और अधिक व्यथित करदेती है मन मष्तिष्क को |हम अपने को ढूढ़ते ढूढ़ते थक जाते है उत्तर न हमारे पास होता है न दूसरों के पास,मगर हम स्वयं को दुखी और प्रताडित करते रहते है |

मेरे मत मे यहाँ तुलसी का विज्ञान और कबीर के जीवन दर्शन का व्यवहार शायद हमें जीवन का वह प्रैक्टिकल करने को बुलावा देता है जिससे शायद डिप्रेशन (निराशा) उत्तेजना ,और बहुत सारी व्याधियों से बच कर हम प्रगति शील व्यवस्था मे अपना स्थान बना सकते है |


निंदा करने वालों की बातें आपको पुनर्चिन्तन का मोंका देती हैं ,आपको उन्हें सम्मान और अपनत्व देकर अपने मे सुधार की आवश्यकता पर बल देना चाहिए |बुरा लगना ,दूसरो को प्रतिउत्तर मे उनकी कमियां बताने लगना आपको हीन और निम्न स्तर का साबित करता हैं ,आपको अपने निंदा करने वालों से सीखना चाहिए क्योकि वे आपको अपना तो समझते है
दूसरों की निंदा से बचे ,क्योंकि निंदा का विज्ञान बड़ा चमत्कारिक है इस लिए तुलसी ने अनेक स्थानों पर यह बताया कि निंदा सुख से बचें यह आपकी शान्ति ,विकास ,सुख,और सम्रद्धि सब छीन लेता है और तर्क और विचारों मे आपको बोना साबित कर देता है ,कारण यह कि माँ अपने तीन माह के बच्चे को भी जबरन दूध पिला कर शांत नही कर पाती आप जिनसे सही कार्यों कि उम्मीद लगाए बैठे है उनकी एवं आपकी सोच मे अभी दो तीन जन्मों का अन्तर हैं अभी उन्हें इसी उठापटक मे २ या ३जीवन भुगतान करना है \करने दो उन्हें वे आपके सोच के विषय नही हो सकते |
निंदा का विज्ञान यह है कि हम जब किसी कि निंदा करते है तो अनंत मे हमारी सोच,शब्द,और उसकी आकृतियाँ जीवित अवस्था मे होकर सघर्ष करती है कारण यह कि सूक्ष्म के लिए पंचतत्व से केवल शुन्य और वायु आकर लेकर हमारी आलोचनाओं को जीवित बनाए रहते है ,एक दिन उन तरंगो को जब नियत परावर्तन तरंगे मिल जाती है तो वे अनगिनत वेग से वहां वापिस आती है जिसकी आलोचना कि गई है और उसकी जीवन तरंगों से टकरा कर वह फिर हम तक आती है और हमे बैठे बैठे निराशा के भाव मे आ जाते है बिना कारण
जीवन में समय कम है क्या मै सबके सुधार के लिए हू ,शायद ईश्वर ने हमे अपने विकास के लिए भेजा है हम केवल अपने परिवेश से जुड़े |
प्यार इस तरह बाटें कि जीवन से निंदा ही ख़त्म हो जाए |
हमे विचार करना चाहिए की क्या कोई हारा हुआ विचार हमे जीत का सुख दे सकता है या नहीं|
शेष फिर

मित्रो आपके प्यार और सुझाव सरमाथे मै प्रयत्न रत हू की ब्लॉग की नियमावली और अपनी त्रुटियों को समझ पाऊआपके असीम प्रेम का साथ रहा तो मै और प्रयास अवश्य करूंगा |

Previous Post

अतीत को वर्तमान से जीतो भविष

Next Post

बदलता समय और उसका मूल्यांकन

Related posts

Comments0

Leave a comment