आत्म मूल्यांकन की कमी मतलब निराशा

आत्म  मूल्यांकन की कमी  मतलब निराशा
deficiency of self realization means depression 
(स्वयं को बचाये डिप्रेशन से )
कॅरोना महामारी का बड़ा भारी समय था , सम्पूर्ण विश्व उसकी चपेट में आगया था ,लाखों की संख्या में लोग बे मौत मारे गए थे  ,और सम्पूर्ण विश्वकी सारी मेडिकल की सस्थाए इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि इसका सबसे शक्तिशाली बचाव यह है कि घर में ही रुका जाए , आप कितनी भी चतुराई दिखा लें परन्तु ध्यान रखे कि  आप कैसे भी इस महा मारी से नहीं बच सकते, जब तक आप यह संकल्प न करलें  मैं घर के बाहर न  जाऊँगा न किसी से मिलने की कोशिश करूँगा, जब तक वह मेरे कर्त्तव्य  के सम्बन्ध में या स्वास्थ्य की दृष्टी से आवश्यक न हो| बड़ा भारी प्रचार प्रसार था मरने वालो की विडिओ अंत्येष्टि, स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा अंत्येष्टि और कोई मृत्यु उपरांत क्रिया न हो पाना बड़ा भारी प्रश्न खड़ा होगया था,  आर्थिक ढांचा चरमरा गया था , गरीबों  मजदूरों के लिए खाने के लाले पड़ने लगे थे, ऐसे समय में मानसिकता भी ऐसी ही नकारात्मक  होती जारही थी ,|

श्रेय के  दो बहिनें  थी ,वो डॉक्टरी की पढाई कररही थी, पिता एक बड़े फिजीशियन थे, और माँ रक्षा सस्थान में रिसर्च विभाग की हेड थी, एक अच्छा और पढ़ा लिखा परिवार ,जबसे कॅरोना के कारण देश में बंद की घोषणा की गई, तब से पूरा काम अस्त व्यस्त सा लगने लगा था, ५ घंटे की क्लास २-३ घंटे घूम कर रात में थोड़ा पढ़ाई हो ही जाती थी ,लेकिन लगता है की चलो कर ही लेंगे ,१५ दिन में क्या हो रहा है ,बार बार इस सोच ने उसे आलसी बना  दिया था ,नेट पर कभी कोई फिल्म देखी -कभी कोई गेम उठा लिया ,कभी ऑनलाइन गेमिंग के कम्पटीशन में आ गया और ३० लोगो में फर्स्ट आया हमारा श्रेय ,देर रात तक गेम में डूबा रहा और बताया यह  गया कि आप जो गेम जीते है उसमे आपको एक पावर बैंक इनाममें मिला है ,कहने का  आशय यह कि , पूरे दोस्तों में उसका सर ऊपर उठ गया था, , गेम देर रत तक जागना , खाना पीना सोना सब अस्त व्यस्त हो चुका था, मगर मजा बहुत आ रहा था ,१४ -१५ घंटे उसी माहौल में जीत हार होती रहती थी |

 

११ बजे थे सुबह के फ़ोन की घंटी बजे जा रही थी , उधर से आवाज आई मैं  प्रिया  बोल रही हूँ ,कैसा चलरहा है सब, सोचा कौन  इससे दिमाग खपाये ,कि कब सोया कब उठा तू बोल ,अरे कैसा चल रहा है ,सब ऐश चल रहा है अपना तो, सबी बढ़िया है ,बस बोरियत है ज्यादा है ,वैसे २-३ घंटा होटल बाजी ,बाजार ,क्लास सब हो जाता था ,मगर अब तो सब बंद है, कभी रहे कहाँ है हम ऐसे ,प्रिया बोली हाँ  तुम लोगो का क्या है ,सब बढ़िया है  ,हमारे यहाँ तो सब टोकते रहते है ,पढाई पढाई ,तो कुछ और कर नहीं कर पाते ,पढ़ाई जरूर थोड़ी चल रही है , मैंने तुझे इस लिए फ़ोन इस लिए किया कि रात  में इलेक्ट्रिक में कुछ पूछना था तुझसे ,अरे यार वही पढ़ने जारहा था मै , अच्छा  छोड़ ज़िंक का रिएक्शन के बारे में,अरे प्रिया वो ही छूट गया था मुझसे ,अच्छा तो रेशो एनालिसिस के बारे में बात करूँ ,नहीं प्रिया  मै  तुझे करता हूँ फ़ोन ,पापा आवाज दे रहे है ,कह कर जैसे तैसे रखा फ़ोन प्राण छूटे |


 पूरी रात सो नहीं पाया था श्रेय आज प्रिया के प्रश्नों के उत्तर कहाँ पढ़ पाया था, मैं चलो कर कर लूँगा ये सब तो ,करना है चलने दो सब , और इसी तरह मूवी, गेम और फोटो चैटिंग में चलने लगा कारोबार ,कभी गेम में हारता था तो पूरे दिन क्रोध ,खाना, पीना, सोना ,रहना ,सब ख़राब हो गया था , पढाई में मन नहीं लग रहा था ,घबराहट हो रही थी ,पापा की सिगरेट ,बच्चे की ब्रांडी सब चख कर देख लिया था, लेकिन घबराहट होना कम नहीं हो रही थी , देर तक जागना ,देरतक उठाना और समय असमय खाना पीना , घरवाले जैसे ही कुछ बोले चढ़ बैठना ,दीखता नहीं है पढ़ाई चल रही है और क्या करूँगा , परन्तु मन की घबराहट कभी कभी जब  सामने खड़ी  हो जाती थी तो पूछती जरूर थी कि  कौन से पढ़ाई कररहे हो भैय्या , कोई जबाब नहीं होता था ,सब लोग पढ़ाई का ढिढोरा पीटते है मगर मिलते तो हर समय ऑन लाइन ही है ,नहीं आया यह मैथ्स कभी भी समझ में |


२० दिन हो चुके थे अभी कोई राहत के आसार नहीं दिख रहे थे,  रात भर जागना २-३ बजे मैगी पिज्जा मेकरोनी बना कर खाना १२-१ बजे उठाना और फिर नाश्ता करके ऑन लाइन आजाना ,पूरी ऐसी दिन चर्या ने श्रेय को बीमार कर दिया था ,घबराह्ट और जब जब पढ़ाई का कोर्स उसके सामने आता था ,सारी  तकलीफें और बढ़ जाती थी, ,पिछले ५ दिन से उठा नहीं था वह ,किसी से बात करने की इच्छा नहीं थी ,मन डूबता सा लग रहा था, जोर जोर से
 रोने का मन कर रहा था ,एक शून्यता बढ़ती जा रही थी, और बार बार लगता था की मरने के टास्क वाले गेम में कैसे जीतते होंगे लोग ,क्या मिलता है उन्हें , शायद यही सोच का बिंदु यह स्पष्ट कररहा था ,कि हमारा श्रेय भारी अवसाद या डिप्रेशन का शिकार हो गया है , कोई बात का कहो बस रोना ,मुझे अकेला छोड़ दो जाओ आप सब आदि |


पिताजी ने चेक अप किया, नहीं समझ आया, तो २-३ साइकेट्रिस्ट बुलाये, दवा देना चालू  किया गया, ज्यादा आराम ज्यादा से ज्यादा दिमाग को मिलना चाहिए तो नशे में लेटा रहा ,मरणासन्न सा ,कोई विकल्प नहीं दिख रहा था,  डॉक्टर्स  का  कहना था ,काफी समय से इसको समस्या रही होगी इसे, अभी दवा चालू रहने दे हम बाद में कम कर पाएंगे ,इस दवा का डोज ,पूरा परिवार चिंतित था ,बहुत ज्यादा परेशां भी लग रहा था, कोई विकल्प नजर नहीं आ पा रहा था,ऐसे ही बीतने लगे दिन |
 अचानक फ़ोन की घंटी बजी ,दूसरी तरफ से आवाज आई बेटा हम सर्वेश्वरानन्द है , हम बद्री नाथ से चले थे ,यहाँ आकर मालूम हुआ स्टेट लॉकडाउन  है ,पापा तुरंत बोले आ जाइये गुरूजी ,आपकी बहुत जरूरत भी है ,गुरु जी को श्रेय के बगल में ही कमरा मिला था , बचपन से श्रेय की गुरूजी से पटरी भी काफी खाती थी ,श्रेय से गुरूजी ने मिलते ही कहा,बेटा बहुत अच्छे दिख रहे हो, जब छोटे थे तब मैं  और तुम ही ध्यान करते थे इस घर में , मुस्कुराहट आ गई थी श्रेय में चेहरे पर , गुरु जी के शिष्य ने रोटी हलुआ दाल बनवा कर ,भोग लगा कर श्रेय को भी खिलाया , बड़ा परिवर्तन लगा था श्रेय में ,गुरूजी ने कहा पुत्र नहाना ,ध्यान फिर मै  वेद पढूंगा ,तू अपनी पढाई करना ,हम दोनो समझायेंगे एक दूसरे को अपने अपने विषय और ऐसा हुआ भी , काफी परिवर्तन था श्रेय में ,एक टाइम टेबल गुरूजी का टांग दिया गया ,एक टाइम टेबल श्रेय का टांग दिया गया और दोनों अपने अपने काम में पूर्ण सफलता से लग गए ७ दिन बाद कोई दवा नहीं लाइ गई , पिताजी को विश्वास  होगया की उनका बेटा पुनः अपनी सफलता की सीढ़ी पर चढ़ने लगा है ,| पिता ने देर रात्रि इस पूरे घटना क्रम का कारण गुरु देव से पूछा तो गुरु जी ने कहना चालू किया|----

 

 मनुष्य को ईश्वर ने पूर्ण सकारात्मक ,गतिशील और एक वृहत अनुशासन से बांध कर ही पैदा किया है, उसका सोना, उठाना ,खाना, पीना- शरीर के लिए किया जाने वाला हर  उपक्रम और आत्मा के लिए किया जाने वाला प्रत्येक उपक्रम सब नियत है ,उसके अनुरूप ही जाने ,अनजाने हम  अपना कार्य करने लगते है -बाद में यही समझते है कि यह अनुशासन हमारा अपना है, समय वैज्ञानिक आधार पर प्रगति कररहा है, मगर ये जो बड़ी बड़ी कम्पनियाँ खड़ी होकर अपनी ग्राहक संख्या को बढ़ाने के लिए वो सब करती है ,जो इंसान की मूल भूत गति को अस्थिर करने लगती है , हेड फोन लगाकर अनियंत्रित ध्वनि से मष्तिष्क की गति में अंतर पड़ने लगा है, और तरह तरह के रोग पैदा होने लगे है , जब कि जीवनकी क्रमबद्धता, गतिशीलता और उसके कार्य करने की अनुशीलता तय है ,तो हम उसकी कार्य शैली में व्यवधान उत्पन्न करके उसे अस्थिर और असवेदन शील बना देते है ,परिणाम यह कि धीरे धीरे वह अपने अनुशासन को छोड़ कर ,सांसारिक बिज़नेस के जगत का खिलौना बनने लगता है , हजारो अध्ययन के बाद बड़ी कम्पनियां  ये समझ पाई कि  जब हार्मोनल परिवर्तन हो ,तब उसे उत्तेजना की सामिग्री दें ,जब व्यक्ति में हार पैदा हो रही हो तब एक कृत्रिम जीत से उसे ठगा जाये यदि उसका मन यह चाल समझ गया और रचनात्मक होगया  तो फिर उनका बिज़नेस तो नहीं चल पायेगा न |

गुरूजी बोलते गए पुत्र मनुष्य का शरीर ऐसा  है ,यदि उसको स्वतंत्र छोड़ दिया तो ,वह कहाँ जाएगा यह तो पता नहीं, बस यह जरूर निश्चित है की वह अपना सारा सयम शांति और स्थिरता नष्ट कर लेगा ,इसके लिए धर्म ग्रंथों ने यही बताया की मनुष्य का समय पर कोई अधिकार नहीं है,  उसका मृत्यु का समय कब है ,कब उसका भाग्योदय है ,यह सब अनभिज्ञ है लेकिन इतना अवश्य है कि , उसपर समय की कमी है ,आप अंदाज लगाइये की २५००० दिनों की संख्या में जीवन ख़त्म होने की तैयारी करने लगता है ,जब हम ये सोचने लायक होते है तब १०या १५ हजार दिन निकला चुके होते है , अर्थात यदि जीवन की उपलब्धियों को पाना है ,तो आपको उसे घोड़े को तरह कसी लगाम में लेकर स्वयं को तैयार करना आवश्यक है ,पिता हत प्रभ से सुनते रहे  और हाथ जोड़ कर  नत  मस्तक होगये |


हम सब कमोवेश डिप्रेशन  में जी रहे है ,यदि आप सोचते है ऐसा नहीं है तो इन बिंदुओं पर विचार करके अपना आकलन अवश्य करें ये डिप्रेशन की प्राथमिकी है आप अवश्य देखें कि कही आप भी धीरे धीरे , मानसिक उद्वेग, क्रोध , तीव्रता ,प्रतियोगिता ,श्रेष्ठ बनने की भावना ,स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताने की होड़, और अपने मन से अलग  प्रकार से प्रयत्न कररहे है कि , हम अपनी कला  अपना चित्र अपने आपको निखार कर दिखाने की कोई स्थिति नहीं छोड़ना चाहते ,समाज में तरह तरह ने नशे और उनका श्रेष्ठता के लिए प्रयोग आपको और अधिक नकारात्मक ंबनारहा है , बहुत अच्छे कपडे ,लोगों की   चाह और वो सब उपक्रम जो आपको कुछ और बताने की कोशिश कर रहा है वो सरे कार्य आपको एक डिप्रेशन कीहम स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध कर सकें , आप स्वयं को लाइक्स के जाल में फंसाये हुए, अपने आपको ढूंढ  रहे है ,असंतुष्ट , अनियंत्रित और हारते हुए व्यक्तित्व की तरह , आवश्यक है स्वयं में स्थिर होकर ,जो है उसमे अभिमान ,प्रसन्नता , तृप्तता  और संतुष्ट रहना सीख लें ,शायद यहीं से जीवन की सकारात्मकता आपको सफलता के उस बिंदु पर खड़ा करदेगी, जहाँ समय आपके सामने आपको इतिहास पुरुष बना देगा तब आपमें समारात्मकता का भंडार स्वयं पारिलक्षित होने लगेगा |
निम्नांकित पर विशेष ध्यान  दें

  • व्यक्ति का निर्माण उसकी एक सकारात्मक गतिशीलता के साथ हुआ है ,उसके लिए स्वयं को सकारात्मक गतिशीलता के लिए तैयार रखे ,उसका अवलोकन करें | 
  • सुख का सम्बन्ध अंतर में छुपी कोई भावना है, उसे बाह्य संसाधनों में ढूढ़ कर ,आप समय व्यर्थ गँवा रहे है आपको अपने अन्तः के सुख की खोज करनी है | 
  • जब आप नशे में ढूढ़ते हो चाहे वह वस्तुओं का हो धन का हो संपत्ति का हो या संतान का हो ध्यान रहे एक दिन आपके अहंकार के ये साधन ही आपके पराभव का कारण बन जाएंगे  | 
  • स्वयं की भावनाओं पर एक कसी हुई लगाम लगाइये ,और नियत गति से ,रचनात्मक दौड़ में स्वयं को लगा दीजिये ,यदि स्वयं को स्वतंत्र छोड़ दिया तो ,आपका पराभव निश्चित है ,क्योकि मन की गति आपसे कई गुना तेज है | 
  • आप जब स्वयं से झूठ बोलते है, तब आपका ही व्यक्तित्व आपको झूठा सिद्ध करने लगता है ,आपको तमाम ऐसे प्रयत्न करने चाहिए ,जहाँ आपका अन्तः का स्वरुप और आप एक जैसे हो जाए | 
  • आपको नैराश्य से बचनेका एक प्रयत्न यह भी है कि, आप एक समय सारिणी बनाये और कड़ाई से इसे पूर्ण करने का प्रयत्न करें, आप पर समय ही नहीं होगा, नकारात्मकता के लिए | 
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रयोग उपयोग बहुत आवश्यक है ,परतु उसपर  निर्भरता आपके व्यक्तित्व को ख़त्म करदेगी, और एक दिन ऐसा अवश्य आएगा, जब आपके  प्रयोग के  ये गैजेट ही आपका उपयोग करने लगेंगे ,जैसा आज कर रहे है | 
  •  प्रतियोगिता दौड़ किसके साथ ,आप अपने आप में अलग हो ,आपकी योग्यताये अलग है ,आपका दूसरों से तुलना करना आपकी नकारात्मकता को बताता है ,आप पूर्ण हो उसे पूर्ण ही रहने दें | 
  • नशा किसी भी तरह का हो ,मगर धीरे धीरे उसका असर प्रभाव कम होता जाता है, परिणाम आप जिस सांसारिक  नशे की चाह कररहे हो ,वो आपको नैराश्य ही दे पायेगा रचनात्मकता नहीं | 
  • हम जो है बस वो ही बने रहने का प्रयत्न करे ,जैसे ही हम कुछ और बनने का प्रयत्न करते है ,हमारा पराभव स्वतः आरम्भ हो जाता है |
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