मन (विचार ),सफलता और शांति
मन (विचार ),सफलता और शांति Mind (thought), success and peace
प्राचीर का राजा अनंत सेन बड़ा पराक्रमी था हर युद्ध में उसे मन चाही सफलता प्राप्त होती थी ,राजा जिस की भी चाह करता था ,वह उसके होनी ही चाहिए थी ,, एक भयानक ताकत वर जिद्दी बच्चे जैसी सोच थी उसकी ,उसकी इन आदतों से उसकी पत्नी ,राजा के धर्म गुरु एवं उसके पिता बहुत दुखी थे ,क्योकि कभी कभी वो ऐसी ऐसी जिदें करता था जिसमे परिवार और मानवता दोनो शर्मिंदा होजाती थी ,एक बार राजा शत्रु का पीछा करते करते घनघोर जंगल में जा पहुंचा ,रात होने को थी, प्यास और भूख से मन व्याकुल था ,अचानक उसे दूर पर एक दीपक जलता हुआ दिखा और तत्काल वह वहां जा पहुंचा ,उसने बाहर से देखा कि एक सौम्य और अति बल शाली सन्यासी ,ध्यान में बैठे है ,उनके पास दो शेर बैठे चौकसी कर रहे है, महात्मा के चेहरे पर अपूर्व शांति और तेज छाया था, राजा शेरो को देख कर भयाक्रांत होगया ,अचानक सर्वज्ञ सन्यासी ने शेरो से कहा जाओ ,शेर उठ कर पीछे के दरवाजे से चले गए, फिर उसने राजा को आवाज दी ,अन्नंत सेन आजाओ ,राजा विस्मित सा जाकर बैठ गया ,साधु में उसे पानी फल दिया उसे लगा ये फल उसने कभी खाये ही नहीं है ,अद्वतीय स्वाद पानी ऐसा जैसे अमृत का सरोवर मिल गया हो ,राजा ने सोचा इतना बल शाली साधु , इतना तेज ,इतना वैभव ,और इतनी शान्ति और प्रसन्नता ,के साथ कैसे रह सकता है यह सन्यासी, मै राजा हूँ परन्तु इसके सामने तुच्छ महसूस कर रहा हूँ स्वयं को ,जबकि मैं इससे हर हाल में कमजोर अशांत और वैभव हीन हूँ मुझे भी यह सब चाहिए ,साधु बड़ी देर तक राजा को देखता रहा अचानक कहने लगा राजन ये सब जो तुम चाहते हो वो सब तो तुम्हारे पास भी है, परन्तु तुम्हारे पास थोड़ा रुक कर उसे भोगने का समय ही नहीं है ,इस लिए तुम कभी आकलन नहीं कर पाए ,राजा काफी शर्मिंदा हुआ उसके ज्ञान चक्षु अचानक खुल गए थे ,उसने कहा मुझे आप शरणागत मान कर इस अज्ञान से दूर कर सफलता और शांति का दान दें | साधु ने एक अपनत्व के भाव से उसे समझाना आरम्भ किया |
हे राजन शक्ति सम्पन्नता और शांति समय और आकलन पर निर्भर है आपके राज प्रासाद बहुत बड़े है मगर क्या उनमे वो सदभाव दिखाई पड़ा , तुम सम्राट हो मगर यदि आज ईश्वर तुम्हे पानी , भोजन नहीं देता तो तुम भी मर जाते , कितने कमजोर निराश्रित थे तुम ,तुम मन और बुद्धि को एकत्रित करके सोच ही नहीं पाए पुत्र शत्रुता से राज्य जीते जाते है मन हार जाता है और हारे हुए व्यक्ति में तो केवल पराजित होने का दुःख ही होगा न ,राजन दौड़ते दौड़ते थक जाओगे , कहाँ तक दौड़ना है उसकी अंतिम रेखा नहीं मिल पाएगी ,क्योकि तुम्हारे साथ समय भी दौड़ रहा है और अंतिम रूप से उसमे तुम्हे ही हारना है ,इसलिए भागो मत समय को स्तंभित रखने का प्रयत्न और त्याग यही से तुम्हें असली विजय प्राप्त होगी हे राजन मन की आपूर्ति और कामनाओं और वासनाओं की पूर्ती से हो ही नहीं सकती ,उसपर ध्यान न लगते हुए परहित के कार्य और जीवन समर्पण का उद्देश्य ही सर्वोपरि है ,राजा ने सर झुका दिया मानो उसे आज सही रास्ता मिलगया हो |
मन की स्वच्छंदता कुछ समझती ही कहां है ,एक आपूर्ति होती नहीं दूसरी तमाम आपूर्तियाँ आपको खाली साबित कर देती है , तिनको का एक बड़ा पहाड़ एक चिड़िया को मिल गया ,जल्दी जल्दी तिनके इकठ्ठा करते और एकत्रित तिनकों की रक्षा में उसके प्राण चले गए , उसे चिंता थी कहीं कोई और न ले जा पाए ये तिनके, उसने जल्दी में दाना पानी तक नहीं लिया था उसने ,मरते मरते भी यही स्वप्न था कि उसने ढेरों तिनके इकट्ठे कर लिए है ऐसा ही परिवेश हम सबका हो गया है ,जिसमे हम मन को सर्वोपरि मान कर खुद स्वछंद हो बैठे है, परिणाम हमारी शांति सफलता भी भटक गई है और जीवन का अमृत घट हमारे मन की उद्विग्नता के कारण छलक कर ख़त्म होता जा रहा है शनैः शनैः मन का साम्राज्य हमारे दिलो दिमाग को अपंग और नाकारा बनाता जा रहा है फिर हमे जीवन से शिकायत क्यों है |
मन की स्वच्छंदता कुछ समझती ही कहां है ,एक आपूर्ति होती नहीं दूसरी तमाम आपूर्तियाँ आपको खाली साबित कर देती है , तिनको का एक बड़ा पहाड़ एक चिड़िया को मिल गया ,जल्दी जल्दी तिनके इकठ्ठा करते और एकत्रित तिनकों की रक्षा में उसके प्राण चले गए , उसे चिंता थी कहीं कोई और न ले जा पाए ये तिनके, उसने जल्दी में दाना पानी तक नहीं लिया था उसने ,मरते मरते भी यही स्वप्न था कि उसने ढेरों तिनके इकट्ठे कर लिए है ऐसा ही परिवेश हम सबका हो गया है ,जिसमे हम मन को सर्वोपरि मान कर खुद स्वछंद हो बैठे है, परिणाम हमारी शांति सफलता भी भटक गई है और जीवन का अमृत घट हमारे मन की उद्विग्नता के कारण छलक कर ख़त्म होता जा रहा है शनैः शनैः मन का साम्राज्य हमारे दिलो दिमाग को अपंग और नाकारा बनाता जा रहा है फिर हमे जीवन से शिकायत क्यों है |
सफलता का सीधा सम्बन्ध संकल्प से होता है और संकल्प की अस्थिरता का मुख्या कारक मन होता है मन का लक्ष्य हमेशा बदलता रहता है यदि उसपर बुद्धि अंकुश न लगा पाए तो , मन की गति हमेशा सुविधा ,मजा और स्वयं को बिना काम , मेहनत किये सफलता के उच्च शिखर पर देखना चाहती है ,इस पर सफलता के लिए तमाम सहानुभूति के संवाद ,नकारात्मक तर्क और स्वयं को कोसते रहने के शस्त्र है जिससे वो समाज के सामने बेचारा बन कर रहने की चेष्टा अवश्य करता है कारण केवल एक है कि उसकी मानसिक शक्तियों ने कम्फर्ट जोन ढूढना चालू कर दिया है और यही उसकी सफलता का बाधक तत्त्व भी है
सफलता का एक बड़ा बाधक तत्त्व है दूसरों का चिंतन ,आलोचना। और व्याख्या करना अनेक धर्म ग्रंथों ने इसे पाप की संघया दी है और इसके गंभीर परिणाम भी बताये है जिनका नकारात्मक असर आपके व्यक्तित्व पर पड़ना ही है
परम धरम श्रुति विदित अहिंसा --पर निंदा सम अघ न गिरीशा
को न काहु सुख दुःख कर दाता --निज कृत कर्म भोग सब भ्राता
रामायण
हमारा ८०%चिंतन केवल दूसरों के विषय में ही चलता रहता है , शायद जीवन इसका ही नाम है ,कि हम शारीरिक मानसिक आपूर्ति करते रहे ,लोग हमें हर हाल मे सम्मान देते रहें और हर वक्त हम अपने को ऊंचा बताने के लिए सबको छोटा सिद्ध करते रहें ,परिणाम हम स्वयं नकारत्मकताएँ बो रहे है ,जिनसे स्वयं का व्यक्तित्व कुंठित हो गया है ,द्वतीयतः हम सब अपने कर्मों के कारण ही सुख दुःख भोग रहे है ,अपने कर्तव्यों का उचित निर्वहन करके केवल अपने उत्थान का चिंतन करें जो सहायता करनी है अवश्य करें मगर अपने जीवन के मूल उद्देश्यं को छोड़कर आप न तो समाज को कुछ दे पाएंगे, न स्वयं का ही भला कर पाएंगे ,सफलता के लिए अपनी शारीरिक , मानसिक ,और उत्तेजनाओं ,क्रोध सबको नियंत्रित करना ही होगा |
शांति का सीधा सम्बन्ध चेतना शक्ति से है धर्म ग्रंथ उसे सोल , आत्मा , आत्म ब्रह्म आदि नामों से जानते है यही जीवन का न्यायालय है जो प्रथमतः हमारे हर कार्य पर सटीक निर्णय देता है और उसका निर्णय ही हमे जीवन की उन्नति या अवनति के रूप में मिलता है , हम जो कर रहे है जो देख रहे है जो अनायास महसूस कररहे है उसका एक निर्णायक बनकर आत्मा जो निर्णय करती है निर्णय करती है शायद वही शांति दे पाती है , शांति का सीधा सम्बन्ध अपनी सम्पूर्ण चेतनाओं से पूर्णता का भाव है सामायिक रुप में जो संतोष दिखता है उसे तात्कालिक संतोष मजा सुख कह सकते है मगर जब जीवनमें आत्मा उसे चिरंतन बना दे सुख संतोष समर्पण और किसीचिज की जरूरत ही न रह जाए आप समझलो यही परम शांति है और यह सांसारिक जीवन में समाज और कर्म के साथ सहजता से प्राप्त की जा सकती है |
- रोज के कार्यों में १० मिनट स्वयं को एकाग्रकरने का प्रयत्न करें उसके लिए स्वयं की आती जाती स्वासों को देखना सर्वश्रेष्ठ उपाय हो सकता है इससे मानसिक शक्ति में परिवर्तन होगा |
- चितन को ३ भागों में बांटे प्रथम वह जो आपके संकल्प और उद्देश्य हो द्व्तीय जिसके लिए आपकार्य योजना बनाये और उसे क्रियान्वित करें और तृतीय वो जो प्रकृति के आधीन है उनपर धनात्मक विश्वास |
- व्यक्तित्व में घमंड न आने दे क्योकि आपके हर पतन का रास्ता यहीं से पैदा होगा चाहे वह शरीर ,समाज या सहायता का हो आपको उससे बचाना चाहिए |
- आपको किसी से भी तुलना नहीं करना है अच्छे और आदर्श लोगो से कुछ जरूर सीख सकते है मगर तुलना से आपका कद जरूर नीचे होगा ये हमेशा याद रखें |
- दूसरों की आलोचना और चिंतन बिलकुल न करें क्योकि इससे आपका ब्रह्मांडीय ओरा स्वयं नकारात्मक वेव्स छोड़ने लगता है और वह व्यक्ति आपका आलोचक हो जाएगा ,जो आपके मार्ग की बड़ा बनेगा |
- हर इंसान अपने कर्म योग से बंधा है आपको अपने कर्म की सकारात्मकता को बनाये रखना चाहिए यदि उसमें कमी हुई तो व्यक्तित्व भी प्रभावित होगा अतः प्रति दिन अपने कामों की समीक्षा अवश्य करें |
- मन को अनुशाशन के अंकुश में अवश्य रखे यही से गांधी कीमहानता पैदा होती है और यही से व्यक्तित्व का गंदला परिवर्तन आदमी को गर्त में गिरा देता है ,उसकी स्वच्छंदता पर विचारोंका नियंत्रण लगाइये |
- स्वयं अपनी आत्मा से साक्षात्कार अवश्य करें जिसमें सिर्फ अपने सकारात्मक चिंतन एवं अपने दुष्कर्मों के लिए ईश्वर से क्षमा का भाव हो इससे आप थोड़े ही समय में एक अनोखी शक्ति से परिपूर्ण हो जाएंगे |
- संकल्प की स्थापना से ही आप स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध कर सकते है जब आप अपने संकल्प को बहुत बार दोहरा कर उसे पूर्ण करने के प्रयत्न करेंगे तब आप सफलता के लिए आश्वस्त हो सकते है |
- स्वयं को बेचारा कमजोर नाकारा न बनाये उस सैनिक बारे में सोचे जो माइनस ५० डिग्री पर देश के लिए प्राण न्योछावर करने को संकल्पित है केवल रास्ता है देश प्रेम रक्षा और बलिदान आप कैसे युवा है अपने आपको ही कोसते कोसते कमजोर होते जारहे है एक बार उठो और संकल्प की प्रबलता में खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करो |
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