कैसे करें व्यवहार स्वयं से और दूसरों से

टीम वर्क आधुनिक मेनेजमेंट का आधार भूत  स्लोगन है और यह माना जाता है  कि उसके बगैर कोई श्रेष्ठ मैनेजर नहीं बन सकता , वैज्ञानिक प्रबंध में टेलर , फियोल सब ने माना   कि  एक  चैन की तरह हमें एक दूसरे से जुड़ कर कार्य करने की प्रक्रिया से श्रेष्ठ परिणाम मिल सकते है । बड़ा कठिन विषय है यह , एक और एकला चलो रे का दर्शन शास्त्र , दूसरी और धर्म का यह कहना की आदमी केवल अपने आपके लिए सबसे अच्छा सोच सकता है , इन सबके बीच हमें एक ऐसा रास्ता निकालना हैंजो हमें श्रेष्ठ सिद्ध कर सकें साथ  ही हमे अपना उत्तर भी प्राप्त करना है कि अपने प्रति और दूसरों के प्रति कैसे  व्यवहार करें जिससे स्वयं की सकारात्मकता बनाये रखी  जा |

मनुष्य का स्वाभाव और मन बड़ा चंचल होता है उसकी सहज प्रवृति यही रही है कि  संसार में जो कुछ भी अच्छा हो  उसपर केवल उसका ही अधिकार हो सारे लोग उसे सबसे अधिक प्यार करें , सम्मान दें और सारे यश ,कीर्ति, और उच्च स्थितियों में केवल वही श्रेष्ठ हो | यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि  हर आदमी यही विचार लिए जीवन में आगे बढ़ने का प्रयत्न कररहा है ,फिर तो यह प्रश्न अधिक जरूरी हो जाता है की ऐसे समय में हम अपने आपको और अपने अस्तित्व को किस प्रकार बचाये   जिससे हमारे की सकारात्मकता और अधिक  प्रदर्शित की जा सके 

एक गुरु ने अपने तीन  शिष्यों को लकड़ी काटने जंगल भेजा घनघोर जंगल में सूखी लकड़ी ढूढ़ते हुए एक ऊँचे पेड़ और उसके नीचे बने कुँए को देख  बड़े शिष्य घबरा गए उन्होंने सबसे छोटे शिष्य से कहा चढ़ जा पेड़ पर और तोड़ तोड़ कर फेंकता जा लकड़ियों को दोनों बड़े शिष्यों ने आँखों ही आँखों में बात की और मुस्कुराने लगे , छोटा शिष्य गुरु आदेश मानकर चढ़गया और पर्याप्त लकड़ी तोड़ कर फेकने के बाद   पेड़ से उतरते में नीचे स्थित कुँए में गिर कर बेहोश होगया ,शिष्यों ने आवाज दी और कुछ देर बाद वे आश्रम लौट आये बताया कैसे कैसे उन्होंने लकड़ियां तोड़ी और बहुत मना करने के बाद भी छोटा शिष्य पेड़ पर चढ़ कर गिर गया ,गुरुने वहां जाकर गाँव वालों की मदद से बेहोश शिष्य को निकाला होश आने पर छोटे शिष्य ने बतायामेरी ही गलती थी सब और कहा  कि अभी वो अल्हड़ है काम में ,उसे कुछ अच्छे से आता नहीं है, बस गुरु सेवा के लिए प्रयास किया था, उसमे भी वो असफल हो गया ,उसे क्षमा किया जाए ,गुरुने अपनी दिव्य दृष्टि से सब जान लिया और उनके आंसूं निकल आये बड़े शिष्यों की दुष्टता और छोटे शिष्य की साधुवादिता से गुरु स्वयं समझ गए थे  कि जीवन में
टीम वर्क में काम करना बहुत आसान है मगर अपने अहंकार , क्रोध ,और वैमनस्यता को जीतना सबसे अधिक कठिन विषय है ,सबकुछ करके   भी यश की कामना का त्याग करने वाला  ही महान हो सकता है ,अचानक गुरु को अपने दादा गुरु सा नजर आने लगा छोटा शिष्य |

मन और मष्तिष्क से मनुष्य इतना शक्तिशाली है कि  उसे किसी भी रूप में नहीं जीता जा सकता ,असंख्यों मील दूर बैठे आदमी की ऋणात्मकताएं उसे प्रभावित करसकती है ,जो सकारात्मकता उसके जीवन का हिस्सा नहीं है वो उन्हें  भी अपने जीवन में प्रस्फुटित कर सकता है ,अपने समाज ,समूह , और अच्छा बुरा सोचने वालों की मानसिकता को भी वह उसी प्रकार बदल सकता है जैसे कोई कलाकार अपनी नई पेटिग पर फैले हुए किसी अन्य रंगको दूसरे रंगों से भर कर और खूबसूरत बनादे | 

व्यवहार की कसौटी पर अपने मन को बहुत कुछ चाहिए होता है और वह त्याग करने को तैयार ही नहीं होता ऐसे में उसकी स्थिति उस लुटेरे जैसी होती है जो अपनी सम्पूर्ण शक्ति के अनुसार दूसरोंके  हक  पर डकैती डालने की होड़ में लगा है , जिसमे जितनी शक्ति है वो दूसरो के किये गए प्रयासों के यश को  अपनी झोली में डालने का प्रयत्न  यह जाने बगैर  कि  जीवन में  समय , बुद्धि , और अन्याय का काल बहुतसीमित  होता है और सत्य की शाश्वतता के सामने यह नकारात्मकता वैसे ही क्षण भर में लुप्त हो  जैसे सूर्य के प्रकाश में जुगनुओं की बड़ी फौज |


अंत में बस यही सार है की दूसरों का सम्मान  और उनसे कुछ सीखने की ललक बनाये रखें जीवन में हम जो दूसरों को दे रहें है वाही हमारे पास लौट कर आना होता है ,  मनुष्य  ईश्वर की अनमोल कृति है और उसके गुण  धर्म भी आदर्शों के साथ चलने चाहिए ,आप अपने काम से सम्बन्ध रखिये परिणाम के प्रति अति उत्सुकता के कारण आपको दुःख हो सकता है ,आप एक तटस्थ भाव से अपने व्यवहार से दूसरों को जीतने का प्रयास अवश्य कीजिए ,आपको सफलता अवश्य मिलेगी ,अपना आकलन करते समय सदैव सकारात्मक सोच का सहारा ले , वर्त्तमान की समस्याएं आपको यह बता सकती है  कि आपके पास कोई  विकल्प नहीं है मगर ध्यान रखे की जिसका विकल्प नहीं होता वो समस्या ही नहीं बना सकता ईश्वर और आपमें वो शक्ति है की आप सारी समस्याओं को हल कर सकते है |

निम्न  का प्रयोग करके देखें 
एक सीमा से ज्यादा किसी प्रतिद्वंदी का चिंतन न करें क्योकि अधिक चिंतन से आपका अपने पर से ध्यान बंट सकता है जिससे आप अपने साथ समुचित सोच नहीं रख पाएंगे |
अपने काम पर विश्वास रखें सीमा से अधिक परिंणाम वादी नहीं बनें अन्यथा आप परिणाम आने से पूर्व ही अपनी  लिए सशंकित हो जाएंगे और यह जीवन की नकारात्मकता को पैदा करेगी | 
यहाँ सब अपने को श्रेष्ठ बताने की होड़ में कुछ  करने को तैयार खड़े है आप अपने आदर्श बनाइये और ज़ीरो पर ही यात्रा आरम्भ कीजिए इक दिन ये ज़ीरो आपको हीरो अवश्य बना देगा | 
प्रकृति ईश्वर और या अपनी सकारात्मक चेतना शक्ति को बार बार सोचिये और तय कीजिए कि   मैं  अपने अनुरूप बना रहा हूँ और संसार आपके अनुरूप बनेगा  यह विश्वास रखिये | 
दूसरो को छोटा बताने , उनके हक़ पर आधिपत्य ,और दूसरों के किये कार्य का श्रेय स्वयं लेने की भावना आपका अस्तित्व नष्ट कर डालेगी अतैव आपको उन्हें प्रोत्साहित करते रहना चाहिए | 
सम्मान एवं तिरस्कार का केवल एक नियम है कि वह तुरंत ब्याज सहित वापिस होता है ,आप अपने से ऊपर एवम अधीनस्थ  व्यक्तियों को पम्मन और प्रेम देते रहिये आपको आंतरिक शांति मिलेगी | 
बड़ों को सम्मान और छोटों को नाम लेकर पूछा जाए कैसे है आप , मित्रों यह जादू आरंभ कीजिये और एक सप्ताह में उसका परिणाम देखिये आपके मन को अच्छा लगेगा | 
दूसरों की आलोचना के सामूहिक आनंद में आप हिस्सा न बने क्योकि आलोचना से केवल नकारात्मकता उत्पन्न होती है  आपकी सकारात्मकता को हानि पहुंचा सकती है | 
अपने बारे में एवम अपने किये हुए व्यवहार के लिए चिंतन अवश्य बनाये रखें जो त्रुटियाँ हो उन्हें तुरंत मान कर उसमे परिवर्तन करें | 
विनम्रता , लोच ,और सरलता ये सब जीवंतता की निशानी है जबकि अकड़ना ,लोच ख़त्म होजाना और बेहद कड़ा हो जाना ये सब मृत्यु की निशानी है ,बहुधा लाशें कड़ी हो जाती है ,आप अपने को विनम्र बनाये रखें |

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