कर्म और सोच ही निर्धारित करती है जीवन को
कर्म और सोच ही निर्धारित करती है जीवन को
Karma and thinking determine your life
(दुष्कर्मों और आलोचनाओं से बचें)
वीर का जन्म बड़ी मन्नतों के बाद हुआ था राज परिवार में बड़े जश्न मनाये गए थे ,बन्दूकें चली ,सारे आस पास के गाँव में भंडारे खिलाए गए ,पूजा का प्रशाद गया बाँटा गया और जीवन चलने लगा , संयुक्त परिवार की मान्यताओं में बढ़ते हुए परिवार थे, वीर की तीन ताई और तीन ताऊ थे ,और उनके छै भाई और चार बहिने , वीर की भी परवरिश इसी माहौल में होने लगी थी, चार साल के वीर को माँ यही समझा समझा के रखती थी ,उनके घर नहीं जाना, ये ताऊ बेकार है ,वो वाले ताऊ बेमान है, फिर यह समझाती , हमारी तो शादी बहुत बड़े ख़ानदान में होरही थी ,तुम्हारे बाबा नाक रगड़ने पहुँच गए ,इस घर में ज़िंदगी ख़राब हो गई मेरी,तमाम झूठ सच इसी तरह की बातों में बढा पलाथा वीर|
समय बीतता गया स्कूल कॉलेज में ज्यादा सफलता मिलनी ही नहीं थी, सो नहीं मिली ,वीर किसी की भी सुन नहीं सकता था ,कॉलेज में रिवाल्वर लटकाकर जाना ,एक गुट बना कर नकल करना, फिर थर्ड डिवीजन से पास होना फिर शराब का जश्न हवाई फायर इस तरह बी ए पास होगया था ,हमारा अपना वीर ,जरा जरा सी बात में गंदी गालियां देना और हर बात पर अपने दृष्टी कोण को थोपना काम था हमारे वीर का ,कही से भी कोई क्लेश का बिंदु छूट नहीं सकता था उससे ,दिन भर किसी न किसी बात पर उलझते रहना और हर २-४ दिन बाद उसकी लड़ाई थाने
जाना बड़ा निश्चित था |
जिन राजनैतिक पार्टियों में वो लड़ाई झगडे और वर्चस्व की लड़ाई के लिए जाता था, वहां पर ही उसके मत भेद खड़े होने लगते थे जो एक पुराने लीडर थे ,उनसे पैसों के लेन दैन को लेकर मतभेदहो जाता था परिणाम यह था कि दूसरे राजनैतिज्ञ वीर का उपयोग करने में पीछे नहीं थे ,एक दिन अनायास खबर आयी की पुराने वाले नेताजी किसी सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए है ,सम्बन्ध जो भी हो वीर के परिवार से बहुत निकट सम्बन्ध थे ,नेताजी का बड़ा प्रभाव था ,उनका अपने क्षेत्र में, लाखों लोगो की भीड़ थी ,बड़ा भव्य रथ के साथ अंतिम संस्कार हुआ ,वीर परिवार के साथ सबसे आगे था , नेताजी के परिवार को उसने उतनी सहायता दी थी ,जितनी सहायता नेता जी अपने परिवार को कभी नहीं दे पाए थे, छोटे लड़के के बिज़नेस को ५० लाख लगा कर नए मुकाम पर खड़ा कर दिया ,बड़े पुत्र को बड़े कृषि जमीन को हाउसिंग के प्लान में परिवर्तित कर लिया गया और नेताजी की पत्नी भी उसके उपकार को देखते हुए उसे अपना तीसरा पुत्र मानने लगी थी |चुनाव का समय था ,नेताजी की सीट पर नेताजी का बड़ा पुत्र और पत्नी ने उस सीट पर वीर को उतारने की सहमति दे दी थी ,पार्टी नेताओं को इस निर्णय पर राजी भी कर लिया गया था ,नेताजी की बड़ी फोटो के साथ चुनाव में वीर खड़ा हो चुका था बड़े बड़े नेता आकर उसे भविष्य का श्रेष्ठ नेता मान चुके थे ,क्योकि उन्हें पालूम था उसके पास सारे तरह के बल काम करते है ,चुनाव का परिणाम वीर के पक्ष में ही आया और फिर बड़े जश्न मनाये जाने लगे ,
राजनैतिज्ञों की कतार में वीर का अच्छा नाम माना जाता था ,उसकी पत्नी बच्चे उसकी अत्याधिक महत्वांकांक्षा के कारण उससे अलग होगये थे ,और उसके जीवन की केवल एक प्यास रह गई थी , यश यश और केवल पैसा यश और जो अच्छा लगे वो उसका हो | बढ़ता हुआ समय और मन की अस्थिरता ने वीर को एक दम अशांत कर दिया था ,जो भी सम्बन्ध वो ताकत और धन बल से पैदा कर लेता था ,वे भी बड़ी भारी अस्थिरता ही देकर जाते थे ,काम के बदले रिश्ते धन, वैभव संपत्ति,ले देकर भी कोई शांति प्राप्त नहीं कर पाता , शरीर शुगर ,हाई बी पी और अनेक बीमारियों का केंद्र बन चुका था ,खाना, पीना, रहना ,सोना सब एक अज्ञात भय के साये में था ,कि कारण क्या है,यह भी समझ से परे है , कभी कभी अतीत की घटनाएं बहुत परेशां करती थी ,जो किसी को बताई भी नहीं जा सकती थी |
कई बार एम्स जैसे बड़े अस्पताल में दिखा दिया ,लेकिन आज तक कोई बीमारी नहीं पकड़ पाया, दिन ब दिन शरीर ख़त्म होता जा रहा था |इसी बीच सुना की कोई बहुत बड़े साधू हिमालय से आये है ,वीर ने अपने पी ए को कहा मिलना बहुत जरुरी है,एकांत में बाबा वीर से बोले बेटा ,तेरा कर्म चक्र तुझे सताने पर आगया है, तू अपने जीवन की सारी भूल मेरे सामने बता कर प्रायश्चित कर , बाबा की आवाज में एक भारी सम्मोहन था ,वीर एक कठ पुतली की तरह बोलता गया महाराज दो हत्याएं हो गई है ,लेकिन मालूम किसी को नहीं है ,बाबा बोले नहीं बेटा १५ वर्ष की उम्र में एक दोस्त को जिसे ज्यादा पीटा था ,वो भी मर गया था ३ हत्याएं की है तूने ,फिर तो पूरी कहानी तोते की तरह बताता चला गया था वीर ,साधु बोले बेटा तुमने जिन नेता जी को मरवाया है वो तो पुत्र जैसा मानते थे तुमको।,आज तुमपर अफरात दौलत है ,शोहरत है, मगर तुम पागलपन के उस स्तर पर पहुँच चुके हो ,जहाँ किसी चीज से तुम्हे शांति नहीं मिल पा रही ,घर वाले पत्नी और रिश्तों को तूने तुच्छ समझ कर एक पेशेवर व्यक्ति की तरह व्यवहार किया ,आज तेरे लिए वो सब भावनात्मक सम्बन्ध न रह कर पेशेवर सम्बन्ध हो गए है, तू उनको लूटना चाहता है वो तुझे लूटना चाहते है | फिर शांति कहाँ से लाएगा , तेरी सारी नकारात्मकता का आरम्भ जो तूने अपनी माँ ,पिता परिवार और समाज से पाया है , उसका फल तुझे ही भुगतना पड़ेगा और उसके लिए तुझे अपनी स्वीकारोक्ति पैदा करनी ही होगी ,यदि तू जीवन का पश्चाताप ही करना चाहता है तो, जीवन सेकैसे भी जीतने की इच्छा और राजनैतिक दांव पेच सब निकाल दे ,और अपनी गलतियों के पश्चताप हेतु स्वयं को झूठ फरेब लाभ हानि से दूर कर , अपने किये के लिए अपनी सजा और अच्छे कामों का निर्धारण कर ,शायद वो ईश्वर तेरी सजा कुछ कम कर दे जिससे तुझे थोड़ी शांति मिलपाये |
आखिर कौन दोषी था उसके जीवन का --- वीर के सामने माँ का बात बात में झूठ बोलने के लिए प्रेरित करना ,पिता का निरीह पक्षियों का शिकार करना, दूसरे की तकलीफ में सुख मिलना ,खान पान रहन सहन और पूरे समाज में जो खुद को अच्छा न लगा उसके लिए मारपीट हत्या और साजिशों की एक पूरी सूची उसके सामने घूम रही थी, लोग उसे धर्मात्मा कहते थे मगर उसकी आत्मा हमेशा दुत्कारती रही और जीवन बड़ी ग्लानि लिए खड़ी थी ,लगता था इससे तो मुझे फांसी हो जाए ,छूट तो जाऊँगा इस मन की तिरस्कार भरी सोच से ,करूँगा साधु महाराज ने जो प्रायश्चित कहा है वो यही सोचते सोचते गहरी नींद में सो गया था वीर |
दुनियां का सबसे बड़ा पाप था ,आलोचना करना और इसके प्रभाव असंख्य गुना प्रभावी होते है ,ध्यान रहे जब हम किसी की आलोचना करते है तो, उसकी नकारात्मकता ब्रह्माण्ड में घूमती हुई एक नियत शुन्य में जा कर टकराती है ,और उसकी नकारात्मकता से तीव्र सयोजन कर ,उस व्यक्ति तक लौटती है जिसकी आलोचना की है, फिर यह उस की जीवन तरंगों ओरा से प्रभावित होकर ,उसी व्यक्ति तक पहुँचती है जिससे ये नकारात्मकता निकली थी ,फिर इस व्यक्ति को नैराश्य ,अवसाद पागलपन ,मिर्गी,और मानसिक रोग होना स्वाभाविक है न ,यह केवल आलोचना का प्रभाव है , कर्म का प्रभाव इससे लाखों गुना तेज और सटीक है, उससे कोई नहीं बच नहीं सकता ,मगर एक मार्ग है जितना जल्दी स्वयं को सही रास्ते पर लाते हुए ,प्रायश्चित किया जाए और स्वयं को सत्मार्ग पर लगाने की चेष्टा करें इससे शायद जीवन की शान्ति , अर्थ और उसकी उपलब्धि प्राप्त हो सके |
अपनी जीवन शैली में निम्नांकित का प्रयोग व चिंतन अवश्य करें|
- बच्चो की शिक्षा में वर्तमान के काम चलाने की प्रक्रिया से अधिक महत्व पूर्ण है उनके जीवन मूल्यों की रचना में सहयोग प्रदान किया जाए |
- व्यक्ति निर्माण के लिए सब पर दया एवं अहिंसा का भाव ,व्यक्ति का स्वाभाविक रूप है ,निर्दयता और हिंसक स्वभाव से दूरी बनाये रखे |
- सत्य ,शान्ति और सदाचार व्यक्ति को जीवन के अंतिम उद्देश्य देने में श्रेष्ठ माने गये है ,और यहाँ से ही स्वयं का विश्वास अपने प्रति प्रगाढ़ होता है |
- तुच्छ उपलब्धियों के लिए स्वयं के मूल्यों से समझौता न किया जाए, क्योकि ये मूल्य ही एक दिन आपको शान्ति सौहार्द और उन्नति के मार्ग पर लेजाने वाले है |
- हर किसी की आलोचना का अर्थ है कि , आपके अंदर बहुत सारी नकारात्मकताएँ अभी शेष है ,पहले स्वयं का निर्माण आवश्यक है |
- कर्म का फल आपको चाहते न चाहते मिलना ही है ,तो कर्म करने से पहले स्वयं को स्थिर करके अच्छे बुरे पर विचार करना आवश्यक है |
- सांसारिकता में डूबा हुआ श्रेष्ठ व्यक्ति जो सदाचार की परिभाषा जानता है ,वह जगल में बैठे हुए योगी से कई गुना श्रेष्ठ है, शायद उसे ही विदेह कहा जाना उचित है |
- दुनियां की सारी उपलब्धियां जो आपने अपने परिश्रम और सत्य व ईमानदारी के स्त्रोतों से अर्जित की है ,वे आपको शान्ति और उपभोग का सुख देगी, कुमार्ग से कमाया हथियाया और लूट ,बेईमानी से अर्जित धन तुम्हारी पीढ़ियां नष्ट कर देगा|
- मृत्यु और ईश्वर के सन्मुख रहने का विचार आपको तमाम नकारात्मकताओं से बचा सकता है ,क्योकि आपके कर्म आपकी शक्ति के अहंकार के कारण ख़राब होते है |
- अहंकार शरीर, पद ,पैसे, संतान या भौतिक या आतंरिक शक्तियों का हो, वह यह बताता है की आपका अंत निकट है ,क्योकि जब आपको अपना गलत अनुमान होगा ,वही से आपका पराभव आरम्भ हो जाएगा
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