करोना प्रवास और भारतीय मूल्य

करोना प्रवास और भारतीय मूल्यkarona migration and indian values 
छोटा सा गाँव था हमारा, ज्यादातर कृषि काम गार ही थे , ज्यादा विकास   नहीं पाया था ,साल में एक दो बार सारे पैसे ख़त्म होजाना एक आम बात थी ,एक दूसरे की सहायता से अनाज लेना ,सरपंच और  पैसे वालों के यहाँ काम करना सामान्य बात ही थी, पांच वर्ष पहले गाँव में एक शादी के कार्य  मुरारी  बाबू आये ,बड़ी सेवा की  थी सबने, दिल्ली  कोई  काम करते थे, बात बात में कहने लगे चलो बड़ा काम चालू हो रहा है ,पांच सो रुपया और खुराक रहने की  जगह सब देंगे ,सपना सा था यह सब, खलबली मच गई गांव में तैयार  हो गए थे दस  बारह  लोग, शर्मा ,बोहरे ,राजू  बिरजू शाक्य ,मुन्ना पठान और रहीम दोनो भाई ,सुखिया और राज अरोरा तथा और गुप्ता और विलियम्स ,व तेजा आदिवासी भी साथ हो लिए ,काम पर, पहुँचते पहुँचते डेढ़ दिन लग गया बस से,सारा  इंतजाम हो गया था हम सबका ,दिल्ली तो कमसे कम ढाईसौ कोस   होगी न गांव से |

 पांच साल से नयी नयी बिल्डिंग पर काम करने  पहुँच ही जाते है हम लोग, कुल मिला कर बारह पंद्रह आदमी काम पर बने ही  रहते थे  ,इतने सालों में तनखाह अच्छी हो गई थी ,काम का और शहर का भी अंदाज हो गया था, तो ज्यादा तकलीफ नहीं होती थी ,घर वालों को काफी सहारा हो गया था ,मुरारी जब कभी जरूरत हो पैसा दे ही देते थे, अलग अलग जगह का काम लेकर वही  रहने खाने की व्यवस्था होना,  पार्टी होना और रात में घोड़े  बेच के सो जाना ,अचानक एक रात खबर मिली कि चीन में कोई कीड़ा वायरस , चमड़गादर और सांप  खाने से फ़ैल गया है ,समझ में कुछ नहीं आया कि ये कोई ये खाने की चीज  है क्या, पर खबर यह लगी कि वहां लाख पचास हजार आदमी मर गया है |और एक दुसरे को छूने से फैल जाता है | 


खबर की गंभीरता का कोई असर नहीं था हमे ,जानते ही नहीं थे कुछ ,मुन्ना बोलै उटपटांग चीजे खाओगे  तो अल्लाह का कहर टूटेगा न  , उन चपटो को मिला नहीं कुछ ,  शर्मा जी बोले खाये साले ये भुगतें हम , बोले अरे छोड़ों वाहे गुरूजी का  खालसा सब ठीक होगा ,,विलियम्स बीच में बोलै आज जाता हूँ ,चर्च कुछ कुछ अच्छा ही होगा , डरे हुए थे सब ,शाम होते होते सब अपने अपने धर्म स्थानों की शरण में पहुँच गए , पूरी ताकत से अपने अपने  अल्लाह ,भगवान् ,गुरु ,और क्राइस्ट को मनाने  लगे, देर रात को सब इकठ्ठा हुए, कुछ कुछ प्रशाद लेकर आपस पे  बांटा गया और आधे आधे डर में  सब  सो गए , रात २ बजे मोरारी बाबू  आये बोले कल से सारा बाजार काम सब बंद कर दिया गया है ,  दिल्ली में भी पहुँच गया है कॅरोना बहुत लोग मरे  है , और कोई आदमी अपनी जगह छोड़ कर नहीं जा सकता ,जहाँ हो वहीँ रहो उसी से बचाव है , नाक से मुँह और आखों से फैलता है ये ,कोई चीज बीमार छूले और उसे तुम छुओ तो तुम्हे भी हो जाए,  जैसा प्लेग , छुआछूत का बुखार , चेचक और छूत  का रोग होता है वैसा ही | मोरारी बाबू ने यह भी कहा  आज से कोई ज्यादा मदद नहीं कर पाएंगे हम ,अभी इतना ही पैसा है लेलो बाँट लो , यह कह कर मुरारी बाबू आठ नोसौ रुपया हरेक को देकर निकल गए ,पैसा तो बहुत जमा था हमारा उनपर, पर खैर देखा जाएगा |


खाने का सामान ख़त्म होगया था, एक फ़ोन नं  देगये थे मुरारी बाबू ,सो उस फ़ोन पर बताया हम १४ लोग इस बिल्डिंग में फँस गए है ,बाबूजी २ दिन से रोटी नहीं मिली, आप कुछ मदद करो उन्होंने तुरंत ३ नंबर हमे लिखवाये ,दो बंद थे ,  तीसरे पर कोई बैठा था, वो बोला , नौकर है तुम्हारे क्या रात दिन होगया ,तुम जहाँ से बोल रहे हो ४० किलो मीटर है ,देखेंगेबाद में , कह कर फ़ोन पटक दिया गया ,मोबाइल फ़ोन पर मुख्य मंत्री मीटिंग ले रहे थे ,हमने छै लाख लोगो को खाना  बांटा है ,मुन्ना दौड़ के छुपते छुपाते पीछे की मस्जिद में  पहुंचा, मौलवी साहब के घर भी काम कर आया था ,एक बार में सब बताया , मौलवी साहब ने १० रोटी और थोड़ी सब्जी बांटने वालों से लेकर देदी ,अरोरा गए गुरुद्वारे ,उन्होंने भी काम किया था, बोले कुछ  मदद करो, ग्रंथि बोले कुल आठ रोटी रख है  लेलो ,बड़ी ख़राब स्थिति है बेटा , पर रोटी लेकर लौटते में भी पुलिस के चार छे डंडे खाने ही पड़ें | भूख और डंडे क्या कहिये दोनो के अलग अलग तकलीफें है ,उस तीसरी रात एक डेढ़  रोटी मिली सबको ,सोचा यहाँ मरने अच्छा तो हम अपने घर को निकल चलें पंडित शर्मा बोले ढाई सो कोस ज्यादा होता है पर सब बोले  दस दस कौस भी सुबह शाम  चले तो पहुँच ही जाएंगेयहाँ तो मरना निश्चित है , गांव में कुछ नहीं तो खाने की कमी तो नहीं है न ,|


अचानक खबर मिली बस जारही है, दौड़ के अपनी अपनी पोटली लेकरदौड़  चले हम सब भी ,मालूम हुआ खबर झूठी थी और पुलिस वलोवालों ने खूब डंडे चलाए,हम सब भाग कर सामने की पहाड़ी पर चढ़ गए,  दो  सायकल थी हम पर, सोचा पहाड़ी पहाड़ी ,ऐसे सीधे चलेंगे हम, एक आदमी सारी  पोटली और सामान लेकर साथ चले और दूसरा आगे आगे पगडंडियों पर चलकर यह बताये की रास्ता ठीक है ,और खाने का कुछ जुगाड़ है क्या , सुबह से दोपहर हो गई थी सायकल वाले ने बताया ८ कोस बाद एक गुरु द्वारा है , वहां और दो  घंटा चल कर पहुँच गए ,गुरु द्वारे वाले संत जी अच्छे  आदमी थे ,वे बोले   बूढ़ा आदमी हूँ , अरोरा उसके पांव दबाने लगा एक शब्द सुनाने लगा ,शर्मा जी रोने लगे बाबा जी ४ दिन में डेढ़ रोटी खाई है , बेटा  बना लो आप , सबने बनाया भोग लगाया और पेट भर खाना खाकर चल दिए वो संत जी क्या थे कहीं के राष्ट्र पति से बड़े जान पड़े थे वो , बाबा ने बची १५ -२० रोटियां भी दे दी थी |

उस रात ३ बजे तक चलते ही रहे थे हम, एक खंडहर जैसा था उसकी पटियों पर सो गए थे हम , ८ बजे चरवाहों मवेशियों की आवाज से जागे पूछा दिल्ली कितनी दूर है, आगंतुक बोल ३० कोस , बाबा की रोटियां बाँट कर खाई गई और अगले सफर पर फिर चल दिए, ३ घंटे बाद सायकल वाले ने बताया एक मोहल्ला है यहाँ, उसके साइड से निकल चलो बाहर बड़ी मस्जिद है ,मुन्ना बोले  सायकल हमें दो ,एक घंटे से नमाज का टाइम होने को है, हम करते है कुछ इंतजाम ,एक कह कर मुन्ना रहीम आगे निकल  गए , मुन्ना और रहीम ने नमाज से पहले ही गाँव के बुजुर्ग को बताया ऐसे भूखे प्यासे भाग रहे है ,रहम करो कुछ हो जाए तो , अचानक वृद्ध के आँखों में आंसू आगये ,क्योनही बेटा करता हूँकुछ , बंटवारे के समय जब हजारों उन्मादियों ने हमें घेरा ,तब एक पंडित जी ने ही हम ७ लोगों को बचाया और महीनों छुपाये रखे , अल्लाह ने मरने से पहले नेकी का मौका दिया है ,हम जरूर करेंगे मदद ,नमाज ख़त्म होगई  थी, मुन्ना ,रहीम और मियां जी का लड़का जावेद ,खाना लेकर पहाड़ी पर खाना खिला रहे  थे बांकी बचा उसे भी फिर बांध गए थे|

अनवरत चलने की प्रक्रिया चालू रही फिर तीन दिन खाने का एक टुकड़ानहीं मिला , २-४-२-४ बिस्कुट आदि से समय  निकलना पड़ा ,क्योकि गाँवों में भी पुलिस घूम रही  थी ,छठवे दिन ऊपर पहाड़ी से सायकल वाले ने बताया  कोई चर्च का घंटा बजा है ,तुरंत विलियम्स ने सायकल ली और चल दिया लोगो को कहा कि ,आप आराम करो मै  देख कर  आता हूँ ,सुबह का समय था ,शायद रवि वार ही था ,काफी सख्ती के बाद ४-५ लोग ही रहे होंगे चर्च में ,विलियम्स वहां पहुंचे , प्रार्थना की और प्रार्थना करते करते मन में भाव आया, कि घर पहुँच भी पाएंगे कि नहीं ,आँखों से आंसू बहने लगे ,प्रार्थना ख़त्म होने पर पादरी बोले बेटे काफी परेशां हो,   ----हाँ  फादर पूरी कहानी सुनाई और बताया की पिछले चार दिन से भूखे है , फादर ने खा लो थोड़ा खा लो ---विलियम्स ने खा नहीं फादर हम १२ लोग है , लगा प्रार्थना कर लून तो आगया था थैंक्स आपका ,सब सुन कर फादर  की आँखें भी भर आई , उनके पीछे उनकी १५ वर्ष की बेटी अचानक आई, उसके हाथ में बहुत बड़ा केक था ,फाथर कुछ बोलते उससे पहले बोली, मैंने सब सुना ,कल मेरा बर्थ डे है ,मगर कोई आना कहाँ है लॉक डाउन है , ये अमेरिका से दीदी ने भेजा है मुझे, जरुरत नहींहै ,जीसस ने इसलिए ही इतना बड़ा केक भेजा है ,विलियम्स और पादरी दोनों निरुत्तर थे आँखों में आंसू लिए खड़े थे और विलियम केक लेकर चल दिया था,ये सोचते हुए किसको है इतनी चिंता हमारी | 

आखिरी दिन और चलने की हिम्मत दिखानी थी ,गाँव से १० कौस दूर दुर्गा मंदिर की पहाड़ी पर  हम पहुँच गए थे ,पंडित जी दूर से देख कर जोर से चिल्लाये ,राजू ,बिरजू ,शर्मा तुम कहाँ से आ रहे हो ,बाबा  की प्रेम भरी बाते करते देख सब जोर जोर से रोने लगे थे,  किसी ने कई सालों से इतने अधिकार और प्यार से बात हीकहाँ की थी, अधिकार से बाबा डांटते हुए बोले ,एक तो दूर दूर बने रहना ,अपना अपना अंगोछा साबुन से धोके सूखा कर  मुँह पर बाँध लो और सामान वहां रखे दे रहे है अपने हाथ बनाओ और खाओ अबकाहे की चिंता माँई तुम्हे सकुशल ले तो आई है , है इतना जरूर जान लो की दूर दूर बने रहना ,घर खबर करा देते है गांव में नहीं जाना है अभी तुमको १५ ,दिन गांव के पास वाली पहाड़ी पर जो राजा का खंडहर है ,वहीँ रहना,सामान सब पहुँच जाएगा नहर है सो पानी की कमी नहीं है ,नहीं  तो यदि रोग हुआ तो ,गाँव में भी फ़ैल जाएगा ,बात समझ आ गई थी ,सब अपने अपने हिसाब से बचाव करते हुए गांव के पास वाले पहाड़ी पर डेरा डाल दिया था   , गांव का चरवाहा आने से पहले सामान रख आया था ,सारा गांव संकल्पित था गावके लोग लगे थे अथितियों को क्वारेंटाइन कराने में। 

कौन सी संस्कृति और किस  जाति  धर्म और व्यवस्था की बात की राज नीति कररहे हैलोग , आप हिन्दुओं मुस्लिमों और ईसाइयो और पंजाबियों को लड़ाने की नाकारात्मक सियासत,के आलावा क्या कर पाए है और इससे किसीको कुछ हासिल भी नहीं हुआ है   ,आज तक जहाँ तक आप सियासत  और सामाजिक सहृदयता की बात करते है ,वह तो हो ही नहीं सकती न ,उदाहरण बड़ा ह्रदय विदारक था ------यदि सियासत में आप मानवीयता ढूढ़ने का प्रयत्न कर रहे है तो आप अपना समय व्यर्थ गँवा रहे है ,सम्राट ने अपने सारे भाइयोंको क़त्ल करा दिया, पिता को बंदी बना लिया, राज्य पर कब्जा कर लिया , और एक शासक तो ऐसा भी रहा जो अपने नमाज करते भाई का सर कटवा मंगवा लिया फिर सिर देख कर कई घंटों रोया ----और बोला तू भाई है उसका दुःख है ,मगर तू राज्य के लिए प्रति द्वन्द्वी है इसलिए ये हत्या भी जरूरी है ------- ये है सियासत और मेरी कहानी है असली भारत | 


कहानी के अनुकरणीय बिंदु 

  • जीवन का संघर्ष हर कदम पर नया हल माँगता है आवश्यकता यह है कि आप हर परिस्थिति के लिए तैयार रहें 
  • कोई भी कार्य कठिन नहीं हो सकता ,जब समस्या बहुत बड़ा पहाड़  सा विशाल काय बनकर खडी  होजाती   है तो उस  चुनौती को  इतने छोटे छोटे भाग में बाँट दो, कि उसका स्वरुप और विशालता ही ख़त्म हो जाए | 
  • दुनियां में उस मालिक ने सबको अपने अपने हिसाब से शक्ति दी है ,और उसका सदुपयोग और समय के अनुसार सकारात्मक निर्णय लेना आवशयक है | 
  • जब ईश्वर ने आपको जन्म दिया है ,तो उसे आपकी परवाह भी है, लेकिन आप ऐसा करें जिसमे सम्पूर्ण मानवता का हित हो | 
  • जाति , , धर्म वर्ण और विभेद ये आपकी शक्ति है, कमजोरी नहीं, आप इन को अपनी कमजोरी न बनाएं ,आप जिस परिवेश में  पैदा हुए है उस पर गर्व करें | 
  • राज्य धर्म सबसे बड़ा धर्म है आप जिस देश समाज और व्यवस्था में पैदा हुए है, उनके नियमों का अनुशासन का पालन करे उसके बाद अपने धर्म का निर्वहन करें | 
  • जाति धर्म की सियासत न की जाए ,क्योकि यहाँ स्वय से अधिक दूसरों की आलोचना में लोगों की रूचि है ,इन सबसे नकारात्मकता का माहौल स्वयं केलिए पतन का कारण बन जाता है | 
  • स्वयं पर विश्वास बनाये रखिये अन्यथा मिली हुई जीत भी ,पल भर में असफलता बन जाती है 
  • संकल्प की शक्ति को जगाये रखिये ,उसे इतनी बार दोहराइये कि  वह आपने सत्य आपके सामने प्रकट करने लगे 
  • हर पल इसे याद रखिये आपको जिसने जन्म दिया है ,उस मालिक को आपकी बहुत अधिक फिक्र है, और उसके हिसाब से समय के साथ जो परामर्श आपको दिए जाते है ,उन पर अमल करें ,क्योकिकेवक आप में ही नहीं सब में ईश्वर का अंश है | 
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