दूसरों का मजाक मत उड़ाइये
सिकंदर महान को अरस्तु ने समाजिक राजनैतिक धार्मिक और मानवीयता वादी तमाम उपदेश और शिक्षा दी थी और उसके व्यक्तित्व में वे गुण परिलक्षित भी होने लगे थे,३४३ ईसा पूर्व मेसीडोनिया के शासक ने सिकंदर की शिक्षा के लिए महात्मा अरस्तु को बुलाया और और यही से सिकदर की शिक्षा का शुभारम्भ हुआ , हजारो नीति उपदेशों के साथ गुरु ने यह भी बताया पुत्र जो जीवन को भलीभांति जान लेता है उसमे अहंकार , क्रोध , लोभ ,मोह और लालच स्वयं ख़त्म हो जाता है , पुत्र स्वयं की रक्षा और वीरता ,राज़्य का नैसर्गिक गुण है , मगर अतुलनीय वीरता और परम बल के साथ जो क्षमा , दया और सहिष्णुता का भाव रखता है वही सर्वाधिक महान माना जाता है , पुत्र दूसरों के सम्मान को क्षति केवल हमारा अहंकार ही तो पहुंचाता है ,जबकि ईश्वर की हर कृति परमात्मा को अति प्रिय है फिर उसका अपमान ईश्वर कैसे सह सकता है |
ईराक के बाबिल नगर में जंगल भ्रमण में सिकंदर और उसकी सेनाएं आखेट पर थी जंगल में एक फ़कीर एक पेड़ के नीचे शीर्षासन लगाए ध्यान रत था , सिकंदर ने उसे देखा तो अपनी हंसी रोक नहीं पाया ,वो जोर जोर से घह हंसने लगा उसे हँसता देख कर साथ चल रहे सेना अधिकारी भी हंसने लगे और बोलने लगे , फ़कीर का ध्यान शोर की आवाज से टूट गया उसने ध्यान से हँसते हुए सिकंदर को देखा और अचानक उसकी आँखों से आंसू आने लगे फिर उसने गहरी साँस लेकर आकाश देखा और वो भी जोर जोर से हंसने लगा , सिकंदर ने प्रार्थना की कि यह बताये कि आप क्यों हंसे ----फ़कीर बोला फिर बताऊंगा यह सुनकर सिकंदर महल में लौट गया , मगर बार बार उसे उस फ़कीर का रोना, हंसी बड़ी रहस्य मयी और अजीब सी लगी थी |
कुछ दिन बाद एक बार फिर से सिकंदरने एक बड़े राज्य पर आक्रमण किया और लौटते में उसी जंगल से उसका पुनः गुजरना हुआ अफरात संपत्ति और लुटे हुए ख़जाने के साथ वह स्वयं को खूब सराहता रहा , चाटुकारों ने बताया वो सबसे अमीर है यह चर्चा चलते चलते सब लोग शयन हेतु चले गए परन्तु उसी रात्रि में सिकंदर की तबियत ज्यादा ख़राब हो गई तेज बुखार , और दस्त ने उसकी सारी शक्ति ली थी ,सुबह होते होते उसकी तबियत और अधिक ख़राब होगई ,अचानक सेना के अधिकारी उसी फ़कीर को लेकर आये ,जंगली दवाओं की थैली लिए था वो ,उसने ध्यान से सिकंदर और उसके चारोओर देखा, फिर प्रणाम किया , बोल बंद सिकंदर के मुंह में उसने एक जड़ का रस निचोड़ा २ मिनट बाद ही सिकंदर के बेजान शरीर में स्फूर्ति सी आयी ,उसने आँख खोलकर बड़े आर्त भाव से कहा मुझे बचालो , फ़कीर की आँखों में आंसू आगये ,वो कहने लगा सिकंदर यह रोग नहीं है यह मृत्यु है , देख यदि ये दस्त और बुखार जैसी बीमारी होती तो यह ठीक हो जाती ,देख यह कहकर फ़क़ीर ने कुछ जड़ी बूटियों को मसलकर पास के झरने में फेंक दिया ,झरना बर्फ जैसे जम गया ये पृकृति रुक सकती है तेरे दस्त न हीं क्योकि आज मृत्यु तेरे दस्त और बुखार के रूप में आयी है , और हाँ उस दिन जब तू मुझे देख कर हंस रहा था तो मुझे तेरी मौत दिखाई दी ,मैं रोया इसलिए की तेरे गुरु ने मुझे तेरी हिफाजत के लिए कहा था, और हंसा इस लिए कि मालिक कैसी लीला है आपकी कि इसे यह नहीं मालूम कि अगले छड़ मेरी मृत्यु खड़ी है |
छट,पटाते हुए सिकंदर के माथे पर फ़कीर ने बहुत प्यार भरा हाथ रख दिया, जिससे छण भर में सारे दर्द शून्य हो गए,
फ़कीर ने कहा हे सम्राट आपके गुरु का मानसिक सन्देश आया था ,कि मैं आपके पास ही रहूं और आपको सारे ऋणों से मुक्त करने का उपाय बताऊँ , सिकंदर ने आँखे बंद करली और कहना चालू किया हे, महात्मन मैं सब समझ गया हूँ ,मरने के बाद मेरे हाथ ताबूत से बहार लटका दिए जाएँ, जिससे लोग जान सके कि अकूत संपत्ति के भंडारण के बाद भी संपत्ति ,एक साँस तक नहीं बढ़ा सकती ,और आदमी को खाली हाथ ही जाना होता है , और ये हाथ यह भी बताएँगे कि अहंकार और शक्ति की प्रतीक ये भुजाएं स्वयं अपना भी भर तक नहीं उठा सकती है ,और संसार इतना छोटा है कि कल मैंने जिसका उपहास उड़ाया ,आज वही मेरे गुरु का सन्देश लेकर मेरे जीवन की कामना करते हुए रो रहा है ,|यह कह कर सिकंदर ने फ़कीर को प्रणाम किया और पूछा मेरे गुरु की क्या आज्ञा है , साधु ने ध्यान में देखा और कहा आपके गुरु कह रहे है जाओ सिकंदर तुम मुक्त हो अपने कर्मों से तुम महान हो और तुम्हारा प्रयाण भी पूर्ण होना चाहिए -- यह कहकर फ़कीर ने जाते हुए सिकंदर को देखा तृप्त , शांत , और पूर्ण सा |
महाभारत का मह युद्ध केवल उन थोड़े पात्रों के इर्द गिर्द सिमटा दिखता है जो अपने बल पौरुष और स्मिता के लिए लड़ते झगड़ते रहे , यहाँ मैं पूर्ण ब्रह्म कृष्ण को सबसे अलग औरपृथक रख रहा हूँ क्योकि वे ही इन सब पात्रों के मूल्यांकन कर्ता रहेंगे , पांचों पांडवो की सेना और अनगिनत कौरव सैनिक केवल द्रौपदी के उस वाक्यांश का शिकार बन बैठे जिसमे उसने यह कहा कि अँधोंकी संतानें भी अंधी होती है इसके बाद की सारी कथाएं बड़ी विचित्र और अहम के प्रदर्शन की कहानी ही है ध्रुपद के पास द्रोणाचार्य का जाना और ध्रुपद द्वारा द्रोणाचार्य का अपमान और द्रोणाचार्य द्वारा ध्रुपाद के नाश की प्रतिज्ञा और अर्जुन द्वारा ध्रुपद को हराना बंदी बनाना और फिर क्षमा मंगवा कर छोड़ देना ये सब भी किसी पात्र के उपहास उड़ाने के कारण ही पैदा हुए है और अंत में द्रोणाचार्य को ध्रुपद के पुत्र द्वारा ही मारा गया , ये सब राज नीति ,कूट नीति का सम्बन्ध किसी के उपहास उड़ाने का प्रतिफल ही तो रहा है |
जब स्वयं के अहंकार की आंधी चलती है तो वह हर आदमी हमारे सामने नगण्य होजाता है और हमारा क्रियान्वयन भी ख़त्म होजाता है ------फिरतो -----सुंदरता, रूप, रंग, बल श्रेष्ठता , ज्ञान ,आदर्श और सहजता ,सरलता और अनेकों गुणों में हम स्वयं को सर्व श्रेष्ठ बताने की चेष्टा में उलझे अशांत , अनमने और अपूर्ण से बने रहते है ,परिणाम यह कि हम उस जीवन को जान ही नहीं पाते जिसकी डोर हमारे हाथ में थी ही नहीं , बस हम एक बैलगाड़ी के नीचे चल रहे कुत्ते की तरह गौरवान्वित बने रहते है जो चलती बैलगाड़ी के नीचे चलते चलते यही सोच रहा होता है कि इसे तो मैं ही चला रहा हूँ |
अहंकार के समक्ष स्वयं को ऊचां बताने के सिवा कुछ होता ही कहां है ,जबकि हम केवल अपना ही आंकलन करने में सर्वदा असमर्थ होते है , क्योकि हमे अपनी दृष्टी से केवल वे लोग दिखते है जो बहार होते है ,यहीं से आ त्मा अवलोकन का विषय ख़त्म हो जाता है और अतुलनीय स्थिति में हर इंसान छोटा कमतर और स्वयं से दीन जान पड़ता है फिर तो जीवन का हर भाग, क्रिया और दृश्य मान, विषय बन कर रह जाता है मन से शान्ति ख़त्म हो जाती है सोच कुंठित हो जाती है और मन -मष्तिष्क की हर सोच स्वयं को ऊंचा बताने की फिक्र में खुद अपने पतन की और जाने लगती है ,|
मनुष्य का जन्म और उसका चरम लक्ष्य है कि वह परमानन्द की अनुभूति तक पहुँच सके वहां है जैसा है वैसे ही स्वयंको सोचना आरम्भ करदे तो शायद वहीँ कहीं से उसका मूल उद्देश्य उसके पास आजाता है
आज संसार के हर प्राणी की सोच ऐसी होगी कि वह स्वयं को यह नहीं बता पाता जो वास्तव में वो स्वयं है, इससे संसार में वैमनस्यता जन्म लेगी ,प्रतियोगिता जन्म लेगी और वहीँ से हमारा पराभव आरम्भ होजायेगा , हम जिन गुण दोषों के साथ है ,उन्हें सोचकर उनसे बचने का प्रयास न करें, यदि हम अपनी कमियों को प्रदर्शित करने का संकोच बनाये रखते हुए स्वयं को कुछ और बता कर कुछ और प्रदर्शित करते रहेंगे ,तो जीवन भर हम स्वयं में सुधार कर ही नहीं पाएंगे अतः स्वयं का आंकलन करते हुए अपने दोषो को कम और गुणों को बढ़ाने का प्रयत्न अवश्य करें |
निम्न का प्रयोग अवश्य करें
ईश्वर ने आपको बहुत सी खूबियों और कमियों के साथ पैदा किया है आपको अपनी कमियों पर अंकुश लगाकर स्वयं के गुणों का विकास करते रहना चाहिए अन्यथा आप स्वयं भ्रमित हो जाएंगे |
किसी का उपहास मत उड़ाइए क्योकि इसकी चोट यदा कड़ा इतनी गहरी होती है जो मन मष्तिष्क को इसतरह घायल करदेती है जहाँ अच्छे बुरे का विचार ख़त्म होकर जीवन बदले की भावना में परिवर्तित हो जाता है |
हर व्याक्ति की अपनी शक्तियां है और हमे उनका सम्मान करना ही चाहिए क्योकि यदि हम उनका सम्मान कर सकेंगे तो ही अपना सम्मान पाने के हक दार बन पाएंगे |
भारतीय धर्म का आधार यही है कि जो पिंड सोई ब्रह्मांड बहुत बड़ी परिभाषा है मनुष्य और उसकी शक्तियों की क्योकि धर्म मानता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जो शक्तियां निहित है वो ही मनुष्य में निहित है आवश्यकता उन्हें जाग्रत करने की है |
मनुष्य का शरीर और उससे जुडी हुई हर चीज नश्वर है और वह समय के आधीन है परन्तु उसकी चेतन और आत्मानुभव बहुत शक्तिशाली और श्रेष्ठ है उन्हें जागृत करने हेतु स्वयं में स्थित रहना सीखें |
जब भी आप दूसरों से अपनी तुलना करेंगे तो आपकी अशांति चरम पर होगी ,क्योकि आप पहले नकारात्मकता को पैदा करते है फिर उस चश्मे से स्वयं का आंकलन करना चाहते है ऐसे में आपमें और नकारात्मकता बढ़ने लगेगी |
स्वयं का आंकलन करते समय किसी का विचार मन में मत लाये क्योकि हर व्यक्ति पद और आकार की एक सीमा है जबकि विकास आपका कद और आपकी प्रकाश सम्भावनाएं असीमित है ,उनका चिंतन करें |
यह मानकर चले कि मनुष्य और प्रकृति के विकास की सम्भावनाएं असीमित है और इस असीमित को जागृत करने के लिए सर्व प्रथम आपको स्वयं को एकाग्र करना होगा यही से आपको आगेके मार्ग प्रशस्त होंगे
अपनी संभावनाओं और विकास की पहली शर्त यह है कि आप दूसरों से तुलना करना छोड़ दे क्योकि यहाँ आपका ध्यान केवल अपने उद्देश्य पर हो दूसरा बीच में आते ही आपका मार्ग अवरुद्ध होजाता है अतः अपने संकल्प में किसी को प्रवेश न दें |
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