जीवन का चरम लक्ष्य और हम

शुभम परीक्षा की तैयारी में था मन बहुत  अशांत था ,कोई तो नहीं था उसके दुःख सुख की कहानी सुनने वाला, एम। टेक  का आख़िरी सेमिस्टर था ,  माँ ,पिता और बहिन अभी हाल ही मे एक कार एक्सीडेंट में गुजरगए थे , चाचा , ताऊ और रिश्तेदारों ने सारी संपत्ति पर कब्ज़ा करलिया था ,तमाम कोर्ट कचहरी के बाद एक छोटा भाग जिसमें कभी बाबा के जमाने में नौकर रहते थे शुभम को मिल पाया था , और सबकुछ मिलने के बाद भी मन में एक गहरी वेदना थी ऐसा जैसे भयानक वेदना के बाद उसे रोने नहीं दिया जा रहा हो ,उसने तय किया की इस  तिरस्कृत जीवन से  बेहतर यह है कि  इस समाज को ही छोड़ दूँ यह सोचकर  उसने अपने जरूरी कागज़  २-३ कपडे बैग में डाले और एक ट्रैन में सवार होगया उसे कब नींद आ गई पता नहीं | , 
ट्रैन चली जा रही थी लगभग १६ घंटे बाद उसकी नींद खुली उसने उसने यन्त्र वत  भाव से  सबको देखा , मन में फिर माता  पिता , और रिश्तेदारों के अन्याय के विचार आने लगे और उसे लगा कि अब है ही क्या , अचानक वो एक पहाड़ी स्टेशन पर उतर गया और एक ऊँचे पहाड़ी टीले पर से उसने जीवन समाप्त करने की छलांग लगा दी , ५ दिन बाद उसको होश आया तो उसने देखा कि एक साधु की कुटिया में वो लेटा  है ,साधु उसकी सेवा कररहा है एक ऐसे भाव से जैसे वो उसका ही पुत्र हो , कुटिया  में छोटे छोटे ग्रामीण बच्चे उसकी सेवा में थे कोई हाथ मल रहा था कोई पाँव दबा  रहा था कोई उसके सिर  में दवा युक्त तेल लगा रहा था ,और वह पूर्ण आराम में था | ,
साधु ने बताया पुत्र आप एक पेड़ में अटके थे आप कैसे गिरे मालूम नहीं था मगर बच्चे आपको यहाँ लेकर आये बताया आप बहुत  पढ़े लिखे हो ,फिर ऐसी नादानी क्यों की आपने ,साधु निर्बाध गति से बोले जा रहा था ---
पुत्र मैं  सब जानता हूँ की तुम्हारे साथ क्या हुआ ,,परन्तु वो सब नहीं होता तो तुम सफल भी नहीं हो पाते , ईश्वर ने तुम्हारा रास्ता उस दलदल से निकालकर एक अजेय और परम सत्य का मार्ग दिया है ,तुम उसकी चिनौती स्वीकार करो और जीवन को सफल बनाओ , बेटा निष्काम कर्म का मार्ग सबसे कठिन है ,मगर आज से आप उस कर्म का संकल्प करो, जीवन तुम्हें क्या क्या देता है ,यह देखते जाओ ,साधु की बात और अपनी मेहनत से शुभम ने पहली बार में आई.ए.एस.की परीक्षा पास की और पिछड़े -दलित और निस्सहाय लोगो की सेवा में लग गया ,उसे यह रहस्य मालूम हो गया था जीवन बहुमूल्य है और निस्सहाय को ख़ुशी देने का अर्थ और सुख क्या होता है | आज उसे सन्यासियों का ईश्वर ,पैगम्बरों का अल्ल्लाह और गुरु परम्परा  में नानकका एक ओंकार और प्रेयर में डूबे पादरियों का ईसा सहज ही मिल गया था | 

संसार का एक ही नियम है कि जब आप बहुत बड़े आदर्श लक्ष्य का मार्ग तय करते हो तो  वह आपकी इतनी परीक्षा लेता है कि आप अपना साहस ही खो देते है ,मगर ध्यान रहे यदि आपके पास एक  विश्वास , कर्म की शक्ति और संकल्प की लाठी होगी तो आप समय और हर समस्या को सहज ही लांघ जाएंगे , आपके रिश्ते, नाते , अपने और दोस्त केवल बाह्य भावनाओं के साथ संसाधनों से जुड़े रहते है मगर सबमे एक सहज ईर्ष्या का भाव हमेशा बन रहता है परिणाम यह कि  वे किसी बुरे शत्रु से अधिक आपको हानि पहुंचाते रहते है ,क्योकि उनके मूल स्वाभाव में स्वयं को सर्वोपरि बताने की होड़  बनी ही रहती है | 

भगवान महावीर समय को सबसे बड़ा संकल्प साधन मानते थे उनका मानना था कि जिस समय का प्रयोग सत्कर्म और सकारात्मक स्वरुप में किया गया ,वह धर्म है ,यहाँ यह स्पष्ट समझ लें कि सकारात्मक संकल्प का आशय यह है कि आप स्वयं के अविनाशी , अतुलित शक्तिस्रोत , और एक परा सत्ता  के निष्काम कर्म का माध्यम हो इसे समझना आवश्यक है , उनका सामायकि मंत्र यह बताता था  कि अब संसार का चिंतन नहीं वरन अपने मूल स्वाभाव का चिंतन करें जो अति शक्ति संपन्न है , आपका जन्म उस अजेय कार्य को सिद्ध करने के लिए हुआ है जो आपको और आपके जीवन को स्वयं सिद्ध कर देगी ,आवश्यकता आपको स्वयं का घ्यान ,एकाग्र और निष्काम भाव के संकल्प की है | 

एक युवा शिष्य ने गुरु से पूछा कोई नहीं है मेरा क्यों न मैं आत्म हत्या कर लू ,गुरु ने कहां पुत्र तुझे  ५०० वर्षों की यातना के बाद फिर पैदा होना होगा ,फिर तेरे बच्चे  पत्नी और तेरे अपने आत्महत्या कररहे होंगे,क्योकि पूर्व में तूने उन्हें ये दुःख दिया था ,और यदि यहाँ भी तूने वोही मार्ग अपनाया तो आगे के १००० वर्षों तक फिर यातनाएं भुगतेगा यहाँ फिर तुझे अकाल मृत्यु  में जाना होगा और जन्मों तक यह क्रम चलता रहेगायही हिन्दू धर्म का सर है , इस लिए निष्काम भाव से कर्म करो और जहाँ हो , जैसे हो , अपने संकल्प की शक्ति से अनवरत चलते रहो एक दिन हर सफलता आपकी होगी | 
 हार, दुःख ,धोखा ,अन्याय और यातनाएं आपको और अधिक मजबूत और कर्म के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव देती है ,वो यह स्पष्ट करती है कि व्याक्तित्व के किसी कौने में परीक्षा की तैयारी अच्छे से नहीं हुई है उसमें और परिष्करण की आवश्यकता है ,समाज और संसार आपको केवल तुलनात्मक रूप में सहायता करता मिलेगा ,जबतक आप बेसहारा , बेचारे , यातना पाते, और निचले स्तर  पर उनसे दया की याचना करने वाले हुए तो वह स्वयं को बड़ा बताने की चेष्टा में आपको सहानुभूति अवश्य देगा, जैसे ही आप आदर्शों , नीतिगत ,सत्य और आचरण में थोड़े बड़े होने लगे समाज और मेरे अपने सारे अस्त्र शस्त्र लेकर आपपर हमला  कर देगें और यह सिद्ध करने की कोशिश करेगें की वो ही सर्व श्रेष्ठ है | यही है आपका और मेरा संसार फिर इनकी चिंता कैसी |

जीवन का चरम लक्ष्य आर्थिक और भौतिक संसाधनों की बड़ी भीड़ खड़ी करना नहीं है ,न ही दूर नजरों तक फैले अनगिनत क्षेत्रों तक जमीन जायदाद और आसमान छूते बड़े राजप्रासाद है ,अनगिनत खजाने और राज्यों की सीमा कब्जा कर  स्वयं को बड़ा बताने की चेष्टा भी व्यर्थ है , उस लक्ष्य का सम्बन्ध  हजारों शक्तिशाली लोगो का हुजूम और सम्राटों की पदवी भी नहीं है , और न ही सांसारिक उपलब्धियां उसे  श्रेष्ठ साबित कर सकती है ,
जीवन के इस चरम लक्ष्य का सम्बन्ध उस स्थिति से है जहाँ जहाँ मेरा तुलना का भाव समाप्त होजाये ,जहाँ सम भाव में मेरे साथ "सर्वे भवन्तुः सुखिनः "का भाव प्रधान हो जावे | 

जीवन में प्रत्येक जीव के साथ एक अंतर्निहित भाव सम्पूर्ण जीवन चलता रहता है वह हर पल उसे हर कार्य की प्रेरणा और प्रोत्साहन तथा आलोचना प्रदान करता रहता है , उसे  भय , लालच , मोह , और असत्य कुछ भी प्रभावित नहीं करता ,परन्तु दुनिया का हर समय , घड़ी ,और कार्य भी रुक जाए तब भी वह अविनाशी भाव आपका आकलन अवश्य करता रहता है , योगी ,ऋषि , मुनि और परम सत्ता को जानने वाले इसे साक्षी भाव कहते है और यही सिद्ध करता है कि मैं जो हूँ और जैसा दिखाने की कोशिश कररहा हूँ उसमे  अंतर है , वह दूर बैठा जीवन के हर कार्य की समीक्षा करता रहता है और बताता रहता है की जीवन की गति की सफलता किस और है , यही सहज ,सरल और सत्य का वह भाग है जो आपको बता देगा कि  आपका चरम  लक्ष्य पूर्ण हुआ की नहीं बस आवश्यकता एक बार खुद के अंतर में बैठे साक्षी भाव से साक्षात्कार की है | 

चरम लक्ष्य  की समीक्षा में इन्हें प्रयोग अवश्य करें 

सबसे पहले आप अपने से जुड़े नकारात्मक संसार के हर सम्बन्ध और व्यक्ति को माफ़ कर दो और उनका चिंतन बंद करदो माफ़ करने का मतलब उनको अपने मन मष्तिष्क से ख़त्म करना है | 
स्वयं को सिद्ध करने के लिए वाद विवाद और जिरह की आवश्यकता नहीं है समय का इंतज़ार और पूर्ण मनोयोग से कार्य करने का भाव बनाये रखिये समय आपको स्वयं सिद्ध कर देगा | 
हमारा सुख जितने बड़े संसार के सुख का कारक होगा हमें उतना ही अधिक सुख मिल पाएगा , खाने का सुख हमे ही मिला , परिवार को मिला तो और सुख हुआ, नगर को मिला तो और अधिक सुख , कहने का आशय आपका सुख जितने समाज को साथ लेकर चला आपको उतना सुख मिलेगा | 
सत्य का भाव आपके चरम लक्ष्य की पवित्रता और सहजता को बनाये रखेगा क्योकि , झूठ एक दिन आपको खुद अपमानित और समस्या में खड़ा कर  देगा क्योकि झूठ केवल झूठ होता है | 
स्वयं को जानना और अपने को सिद्ध करना सबसे बड़ा कार्य है , उसके लिए आपको स्वयं का ही चिंतन करना होगा वो भी एकाग्र और पूर्ण साधन में स्वयं पर विचार करके | 
जीवन को निष्काम कर्म के साथ जोड़ने का प्रयत्न करें ध्यान रहे की यह आपकी और से निष्काम हुआ तो प्रकृति की और से हजारों गुना सफलता का कारक होगा यह निष्काम कर्म | 
अहंकार और खुद का झूठा प्रदर्शन आपको शक्तिहीन , भिखारी और निस्तेज कर देता है वहां आप दूसरों की कृपा पर आजाते है की वे आपको सच माने अन्यथा आपका सारा प्रयत्न व्यर्थ हुआ | 
स्वयं की तुलना न करते हुए निरन्तर गतिशील रहने का प्रयत्न करें , आप यह निश्चित जनले की आपकी निरंतरता आपको एक दिन अवश्य सफल बनाएगी | 
आवश्यक नहीं कि आप बहुत बुद्धिमान , पढ़ेलिखे और अति ग्यानी हो आपको सत्य संकल्प से अपना मार्ग तय करना है और निरन्तर उसे मन में जाग्रत रखना है आपको सारी उपलब्धियां जल्दी मिल जाएंगी | 
        ||  असफलता - नैराश्य और जीवन को ख़त्म करने का भाव  आपको बार बार पैदा होने के बाद उसी उपलब्धि पर खड़ा कर देता है जहाँ से आपने जीवन छोड़ा था फिर आपको उसी असफलता को सफलता में बदल कर आगे की यात्रा करनी होती है, तो आप जहाँ असफल हुए है वहीँ से स्वयं को और शक्तिशाली बनाइये और एक बार फिर पूरी ताकत से अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में जुट   जाइये ध्यान रखना कि एक दिन सारी दुनिया की सफलताएं आपके इस प्रयास के सामने नत मस्तक हो जाएंगी ||

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