मौन की शक्ति
पूर्ण क्षेत्र का राजा विश्वजीत बड़ा ही पराक्रमी और दिलेर माना जाता था सारे इलाके में उसके शौर्य की चर्चा होती रहती थी ,राजा ने अपने सारे शत्रुओं पर विजय हासिल करली थी , सारे राज्य में सुख शान्ति थी और सभी लोग खुश थे एक दिन रात्रि में अचानक यद्ध के नगाड़ों की आवाज आने लगी राजा ने गुप्तचरों को चारों दिशाओं में हाल जानने भेजा गुप्त चरों ने बताया की ४ हारे हुए राजाओं ने यह हमला किया है , और वे सेनाये चोरों और बिछा चुके है ,कई दिन राजा ने अलग अलग तरीके से व्हियू रचना की ,मगर हर बार उसे लौटना पड़ा ,और ऐसे में बहुत निराश होकर वह चिंता में बैठा था ,अचानक उसकी पत्नी ने उससे कहा की मैं जानती हूँ यह समय विपरीत है ,मगर आप अपना धैर्य मत खोइए, हमारे राज गुरु इसका जरूर कोई उचित हल निकाल लेंगे ,राजा तत्काल गुरु आश्रम पंहुचा गुरु गहरी समाधि में थे , राजा नत मस्तक होकर उनके चरणो में बैठ गया, पता नहीं क्या परम शक्ति थी उस आश्रम में राजा भाव विभोर और विस्मृत सा बैठा रह गया ,अचानक गुरु ने उसे जगाया पुत्र उठो सुबह हो गई है , राजा ने गुरु को सारी समस्या बताई वे बोले मैं जानता हूँ पुत्र कि इस समय तुम संकट में हो ,अधिक चिंता , सोच और आवेग में तुम सही गलत का विचार ही नहीं कर पा रहे हो ,पुत्र एकांत में एकाग्रचित्त होकर अपनी मौन की परम शक्ति को जाग्रत करो वहां से तुम्हे शक्ति और समाधान अवश्य मिलेगा , राजा ने स्वयं को एकाग्र किया अचानक उसे आक्रमण कारी सेनाओं ने रसद बंद करने की नीत पर घेरा डालने की चाल दिखाई दी ,और हल भी साथ दिखा , कि किले के बड़े पहाड़ से जाने वाला जल ही एक नहर जैसे स्वरुप में निकलकर पड़ोस के राज्य में जाता है, राजा ने तुरंत उस जल की धारा बड़ी बाबड़ी की और करदी ,पानी बंद होने, गर्मी से आहात सेनाओं में व्याकुलता बढ़ गई सेनाओं का बड़ा भाग जब पानी के इंतजाम में भटका , उसी समय राजा की सेनाओं ने एक बड़ा आक्रमण कर शत्रु सेनाओं को परास्त कर दिया | राजा ने अपनी सभा में अपने गुरु को विजय का श्रेय दिया गुर ने गम्भीर स्वर में कहा सभा सदो यह जीत महाराज विश्वजीत की ही है , जब हमारे पास समस्याएं आती है तब सबसे पहले नकरात्मक विचार हजारों की संख्यां में हमारे मन मष्तिष्क पर कब्ज़ा कर लेते है , फिर निरंतर नकारात्मक प्रभाव स्वयं को और अधिक और अधिक नकारात्मक कर देता है और हम अपने स्वभाव के विपरीत गलतियां करने लगते है यही हमारी पराजय का कारण भी बन जाता है ,राजा ने जिस छण स्वयं को एकाग्र करके मौन का सहारा लिया उसे वह दिव्यरास्ता दिखने लगा जो उसे नहीं दिख रहता , मौन और एकाग्रता इन्हीं नकारात्मक विचारों से व्यक्ति को मुक्त करता है और वहीं व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है राजा सभासदों के साथ गुरु चरणों में नत मस्तक था |
जीवन विचारों की श्रंखलाओं का कोई सुगठित समूह है निरंतर चेतनाएं मनुष्य को एक ऐसी दलदल में फंसाए रखतीं है जहां सत्य का कोई भी नामो निशान होता ही नहीं है , वह संसार में जो भी कुछ दिख रहा है उससे प्रेम और जो अदृश्य और सत्य है उससे आँखें बंद रखने की चेष्टा करता रहता है , उसके विचारों में स्वयं को बड़ा और श्रेष्ठ बताने की लालसा उससे इतने पाप कराती है की वह स्वयं पापों को गिनने की गिनती भूल जाता है , स्वयं को बड़ा सिद्ध करने में सारे आदर्श , प्रतिमान और सिद्दांत धरा शाही होते है और सदैव की तरह अंतर का झूठ सच सा दिखने लगता है ,लगता यह है कि यह ठीक है ,मगर इससे आत्मा कभी भी सुख का अनुभव नहीं कर पाती है, और इसके विपरीत जब भी हम अपने बड़े होने का व्याख्यान दूसरों को देते है हमारी ही आत्मा हमे धिक्कारने लगती है जैसे हमने सब कुछ खो दिया हो |
मानसिक शारीरक स्थितियां नित्य नई समस्याओं के साथ हमारा परीक्षण करती रहती है , और जैसे ही नयी समस्याएँ आई हमारे हजारों नकारात्मक विचार उसे घेर लेते है मन मष्तिष्क हल और भय के भविष्य की कल्पना में और अधिक संवेदनशील होजाता है , अलग अलग कल्पनायें हमारा सोच इस प्रकार बनाने लगती है कि हमारा सारा आत्म विशवास चूर चूर हो जाता है और हर आने वाले क्षण से हमें भय लगने लगता है , परिणाम यह कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व बदहवासी की स्थिति में एक हारे हुए प्रतियोगी की तरह जीवन से व्यवहार करने लगता है , और ऐसे में विजय की कल्पनाएं कितनी सार्थक होंगी ये आप भी समझ सकते है
भगवान बुद्ध से एक शिष्य ने पूछा परम गुरु आप यह बताये कि मौन की शक्ति क्या है और वह क्यों श्रेष्ठ है ,गुरु ने बोलना आरम्भ किया पुत्र हम जिस संसार में आज दृश्य मान है ,जानते हो वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अपनी पहिचान भी बड़ी मुश्किल से तय करपाता है , जब हम संसार के हिसाब से व्यवहार कररहे होते है तो हमारे सामने बहुत छोटा सा क्षेत्र होता है, समाज , प्रदेश देश या इक गृह मगर यह एक छोटी सी सोच होती है छोटा सा वातावरण होता है और उस दृश्य मान में हम सबसे श्रेष्ठ बनने की चाह और प्रयत्न में अपने जीवन के मूल उद्देश्य को ही भूल जाते है कि हमारा जन्म क्यों हुआ है और हमे क्या करना चाहिए ,ऐसे ही उस छोटे से कुंएं रुपी परिवेश में हम बार बार असफल होते घसटते , कराहते अपने आपको ही नहीं पहचान पाते ,इसी लिए मनुष्य जीवन यातना बना मालूम होता है , जबकि मौन में जिस अनंत की व्याख्या होने लगती है वह इतना अनंत होता है की उसे हर बार नए सिरे से अलग अलग समझ कर भी उसके अंदर की खोज जिज्ञासा कभी ख़त्म ही नहीं हो पाती और वही जीवन के मूल में जाकर उसके रहस्यों से नित्य नए परदे हटाती रहती है ,और यही कारण है कि गहन समाधि के बीच का साधक मौन की गहराइयों में हजारों गुना सकारात्मक और क्रियान्वित रहता है , और बुद्ध ने कहा हजारों वर्ष की साधना के बाद भी हर बार साधना में कुछ नया जानने को शेष रहजाता है अतः योगी सदैव ध्यान और मौन में ही रहना चाहते है |यही जीवन का अमृत्व भी है |
दुनिया के हर धर्म में मौन और उसकी शक्तियों का प्रयोग प्रत्यक्ष दिखता है , ईसा को सूली परचढ़ाया गया वहां स्वयं उस देव पुरुष ने अपने प्राणों को समाधिस्थ करके एक नियत समय के लिए सम्पूर्ण पीड़ा से स्वयं को मुक्त रख कर स्वयं को उस अन्नत में समाहित कर लिया और बाद में अपनी चेतना के लौटने पर जीवत हुए , भारतीय धर्म में शिव को समाधि का देवता भी बताया गया है , निरंतर समाधि और मौन की शक्ति से देवता ओतप्रोत है ,नानक , कबीर ,और हर धर्म का साधक और देवता इसी मौन और साधना से अपनी चरम शक्ति प्राप्त करते है
कलाकार दार्शनिक और साहित्य की सृजनात्मकता इसी मौन की शक्ति से पैदा होती है , असंख्य समस्याओं और उलझनों का हल है यह मौन एक सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र बिंदु जहाँ से सम्पूर्ण शक्ति एकाग्र होकर जीवन को वह लक्ष्य दे देती है जो आदमीको देव तुल्य बना देता है , मौन का चिंतन क्षेत्र इतना वृहत है की जिसकी खोज में कई जन्मों की तपश्चर्या कम पड़ जाती यही खोज जीवन के सार्थक उद्देश्यों को इतने पास से दिखाती है जहाँ दुनियां की हर दृश्य अदृश्य शक्तियों का भेद स्पष्ट हो जाता है|
मौन और साधना के प्रत्यक्ष प्रभाव से चेतना का धरातल प्राप्तियों और अप्राप्त के भाव से दूर होकर अपने पूर्ण लक्ष्य की तरफ मुड़कर चलने लगता है जीवनका क्षेत्र और सूक्ष्म होकर सांसारिक और पारलौकिक शक्तियों से जुड़ने लगता है , अनंत की खोज में एक सतत अमृत की धार साधक के दिल दिमाग में स्पष्ट हो जाती है , नश्वर और अनश्वर की पहिचान होने लगती है , सुख और दुःख के कारण और परिणाम अपना अर्थ खो देते है ,और जीवन साश्वत सत्य की और चलने लगता है जहाँ न चोरी का भय होता है ना ठगी का , ना लूट की चिंता होती है और, न होती है ख़ूबसूरत और बद सूरत की भावना तथा वहां केवल्य भाव होता है ,और हमारा पूरा समाज और समूह होता है, जिज्ञासु जिसे उस अमृत पान की लत लग गई है ,और उसका सम्पूर्ण जीवन बदल गया है |
जीवन के इस इस अध्याय में इन्हें भी याद बनाये रखिये
मौन का सम्बन्ध आतंरिक चेतना शक्ति से है और हम यह प्रयास स्वयं के साक्षात्कार हेतु कर रहे है जिससे हम क्या है और किस उद्देश्य के लिए प्रयासरत है यह स्पष्ट हो जाएगा |
मौन की साधना से पूर्व स्वयं को एकाग्र करें संकल्प लें कि सारी समस्याओं और सारी जीवन की विषमताओं का समाधान हम इस साधना के बाद सोचेंगे ऐसा करने से साधना में अधिक शक्ति आ जावेगी |
साधना से पूर्व यह स्पष्ट चिंतन करें कि हम जिस संसार को जानते है उससे हजारों लाखों गुना संसार हमारे लिए अनभिज्ञ है और आज हम उस अनभिज्ञ को समझने की चेष्टा कर रहे है |
जीवनके बाह्य स्वरुप से अंतर्मुखी होकर हम स्वयं की चेतना का आंकलन कर रहे है अतैव बाह्य आवरण से सम्बंधित तथ्य आपको प्रभावित नहीं करें इसके लिए स्वयं को एकाग्र करें |
मौन और साधना के लिए वातावरण तैयार करें सादे कपडे अनंत का ध्यान , और सकारात्मक चिंतन यहीं से आरम्भ होगा आपका सहज योग |
अपने चिंतन को शून्य से सकारात्मकता की और मोड़नेका प्रयत्न करें , यह प्रयास करें की आप सहजता और शून्यता की स्थितिमे प्रवेश कररहे है |
विचारों को रोकना और उन्हें अपने हिसाब से सोचना दोनों ही सहज नहीं है अतः केवल स्वयं को शिथिल और शिथिल तथा शरीर में और शरीर से बाहर स्थापित कीजिए |
एकाग्र और चिंतन रहित स्थिति के लिए आपको केवल यह प्रयास करना चाहिए या तो आप स्वयं की स्वांस को एकाग्रता से देखे या अपनी नाक के अग्रभाग या अपनी भ्रू मध्य को देखने का चिंतन और प्रयास करें |
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां अखिल ब्रह्माण्ड में समायी हुई है और उन सारी शक्तियों की उपस्थिति का अनुभव आपको करना है और ध्यान में आप उसका प्रयास कररहे है |
समस्याओं विषमताओं , और साधन और रूप हीनता को आप जैसे ही ध्यान की गहराई में जाएंगे आप सब भूल जाएंगे , मन स्वयं उस रस से ओतप्रोत और स्वाभिमान का अनुभव करने लगेगा |
मौन और ध्यान का मध्य भाग आपके चिंतन से बड़े छोटे अच्छे बुरे और हीन और सर्वोत्कृष्ट का भाव ख़त्म करदेगा एक सहज प्रेम कीअनुभूति देगा यह मौन |
मौन और साधना से प्राप्त शक्ति और बदलाव आपको और अधिक विनम्र और जहाज बनाएंगे , उनसे प्राप्त शक्तियां आपको और अधिक सज्जन और सहज बनाएंगी |
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