ब्रह्माण्ड की शक्तियों को समझिए और स्वयं में पैदा करें
एक राजा के राज्य में एक चोर रहता थानाम था वीर मणि बहुत ही शातिर और तेज दिमाग था उसके पास महल और नगर में ऐसी चोरियां करता था कि किसी को कानों कान खबर नहीं होती थी ,एक बार उसने एक बूढ़े साधु के वेश में महल में चोरी की और सामान लेकर भाग रहा था उसके पीछे सुरक्षा कर्मी लगे थे , अचानक उसने सड़क पर सोते हुए एक लड़के के पास चोरी का सामान रखा और थोड़ी दूर पर वो भी सड़क के एक कोने में सोने का नाटक करने लगा सुरक्षा कर्मियों ने लड़के को पकड़ लिया लड़का चिल्ला रहा था कि मैं तो कल रात ही गाँव से आया हूँ माँ की तबियत बहुत ख़राब है खाने के लाले पड़े है ,बहिन शादी को है, पिता मर चुके है ,मैं तो महल में काम करके धन कमाने की इच्छा से आया हूँ ,अधिकारियों ने एक न सुनी उसकी और जेल में डाल दिया|
आज घटना को तीन रातें गुजरगई थी वीर मणि पूरी रात सो नहीं पा रहा था ,उसे बार बार साधु के वेश के कपडे और उस लड़के के शब्द कानों में गूंजते मालूम पड रहे थे ----- सब कुछ ख़त्म हो जाएगा ,रहम करों सब मर जाएंगे ,और फिर मेरी तरफ देख कर भी बोला था इन साधू महाराज से पूछ लो मुझे कुछ नहीं मालूम मैं तो सो रहा था बस ,मुझे साधु शब्द सुनकर आत्म ग्लानि होने लगी कितना विशवास था उसे साधु और उन कपड़ों पर ,सुबह वीर मणि ने जाकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया , राजा ने पूछा जानते हो तुम्हे सूली पर चढ़ा दिया जाएगा , वीर मणि ने बताया हाँ महाराज जानता हूँ ,परन्तु मैंने पिछले तीन दिन इस प्रकार बिताये है स्वप्न में मुझे कई साधुओं ने घेर कर पिटाई की है मेरी , आत्म ग्लानि से कई बार मैं सूली पर चढ़ाया गया हूँ मैं ,और कई बार अपने आपसे घृणा का भाव पैदा हुआ है, राजा ने सत्य बोलने के लिए वीर मणि को देश निकाला ,और युवक को नौकरी देदी ,कालांतर में वीर मणि ने घन घोर जंगल में एक बड़े साधु को गुरु मानकर यह पूछा मेरे संग ऐसा क्यों हुआ गुरुदेव ,साधु ने कहा पुत्र तुमने जो वेश धारण किया था वो स्वयं अपराध था ,वहां ब्रह्माण्ड की अनेक शक्तियां तुम्हारे विरुद्ध एक जुट होगई ,उन्होंने तुम्हारे मन मष्तिष्क पर काबू कर लिया, यदि तुम अपना अपराध स्वीकार न करते तो वो शक्तियां तुम्हें नष्ट कर देती , दूसरे यह की तुमने जिस साधू स्वरुप का वेश रखा था वह तुममे जाग्रत होगया और उसने तुम्हे अपराध बोध देकर मुक्त कर दिया। वीर मणि ने एक बार गुरु बनाये साधु को देखा और दूसरी और ब्रह्माण्ड को ध्यान से देखा उसे लगा की एक परम शक्तिशाली शक्ति चारों और संसार को नियंत्रित कर रही है उसने दोनो को साष्ट्रांग प्रणाम किया |
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र मनुष्य को केवल वैज्ञानिक आधारों पर सिद्ध करने का प्रयत्न करता है वह यह बताता है की मनुष्य में हजारों लाखों घटक कार्य करते है उनकी कमी और अधिकता से रोग , स्मरण और विस्मरण तथा शारीरिक -मानसिक समस्याएँ पैदा होती है जबकि कई बार यह देखने में आया है कि कोई समस्या नहीं होने पर भी अचानक कोई विपरीत परिस्थिति खड़ी हो जाती है , सारे लेबोटरी टेस्ट श्रेष्ठ होते हुए भी इंसान , जीवन से हार जाता है ,भारतीय पुरातन सिद्धांतों में यही कहा गया है , कि
मृत्यु से पूर्व सब कुछ सामान्य और ठीक हो जाता है
शायद यह तथ्य अधिक महत्वपूर्ण है ,वही यह भी देखने में आता है कि कहीं कोई शक्ति उसके मन बुद्धि और क्रियाओं को नियंत्रित अवश्य कर रही है |
I TREAT HE CURES
की परंपरा पर चलने वाला चिकत्सीय विज्ञान यह मानता है कि सारी परिस्थितिया सामान्य होने के बाद भी कुछ ऐसा है जो बुद्धि और मन से परे है कुछ अलग घट रहा है सामान्य स्थितियों में चिकित्सा विज्ञान के ये शब्द आपको विस्मित अवश्य कर सकते है
PLEASE START PRAYER THERE IS NO SIGN OF LIFE
अर्थात आप जिस भी धर्म को मानने वाले हों आप प्रार्थना आरम्भ कीजिए यहाँ जीवन का कोई संकेत नहीं मिल रहा है और प्रार्थना चालू की जाती है तथा कई बार विस्मय कारी परिणाम आपके सामने होते है जिसे आदमी अपनी ही जीत बताने लगता है | कई लोगो के संस्मरण में मृत्यु के बाद उनका पूरे ध्यान में एक अलग लोक का वर्णन करना और वहां की घटनाएं बताना , ये सब झूठ कैसे बता सकते है आप |
एक विस्मय कारी घटना में अभी हाल ही में दिल्ली के प्रतिष्ठित अस्पताल में घटित हुई ,एक मरीज का ओपन हार्ट सर्जरी किया गया सब कुछ सामान्य था मरीज डॉक्टर को बोला मुझे बचा लीजिये मैं मरना नहीं चाहता डॉ बोले आप बिलकुल ठीक है और धीरे धीरे आपके टांके ठीक हो रहें है , मरीज आश्वस्त नहीं हो सका पत्नी को भी यही कहा सब कुछ सामान्य होने के बाद भी एक ७ वे दिन सोते सोते अचानक तेजी से उठ गया सारे टाँके टूट गए और वह मर गया |
आप इन घटनाओं को सामान्य कैसे मान सकते है |
भारतीय धर्म की मान्यताओं के अनुरूप जो महत्वपूर्ण मान्यताएं आतीं है उनपर जरा दृष्टी डालें
दिखारावा मातही निज अद्भुत रूप अखंड॥ रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्माण्ड
हरी अनंत हरी कथा अंनंता ॥ कहै सुनहि सब विद्धि सब संता
सोहास्मि इति वृत्ति अखंडा ॥ दीप शिखा सोई परम प्रचंडा
अर्थात प्रथम पक्ति में ब्रह्माण्ड की अनंतता का वर्णन है यहाँ यह बताया गया है कि जैसे उस सुप्रीम पावर गॉड के शरीर के हर रोम ब्रह्माण्ड की गैलक्सी की तरह है जिसमे करोड़ों या अनगिनत ब्रह्माण्ड या गृह समाये हुए है ,जिसे वैज्ञानिक मानते है कि यह ब्रह्माण्ड का विस्तार है या ब्रह्माण्ड बढ़ रहा है |
द्व्तीय पक्ति में यह कहा गया है कि उस सुप्रीम पावर गॉड का रूप और विषय बहुत बड़ा और अन्नंत है उनका जितना अध्ययन और शोध किया जाएगा उतनी ही गहराई प्रकट होगी ,यह दोनो बड़े शोध के विषय है ,|
तृतीय पक्ति में यही बताया गया है कि मनुष्य उस ब्रह्माण्ड का शक्तिशाली अणु है और उसकी परम चेतना यह भाव पैदा करती है कि वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्तियों का उपयोग कर सकता है । अर्थात मनुष्य की चेतना सबसे शक्तिशाली विषय है जिसके विस्तार का प्रयास करना ही चाहिए ।
उसकी सकारात्मकता और अबूझी पहेलियों पर निरंतर शोध, चर्चा होती रहनी चाहिए
चीन रोम भारत तथा ज्ञान और तपस्थली के रूप में , तिब्बत का तवांग मठ ज्ञान गंज ,चीन, कश्मीर , बिहार और नालंदा के शोध स्थल तथा मोहोम्मद साहब ,नानक देव, और अनेक वैज्ञानिक संतों ने केवल परम चेतना के भाव से ऐसे ऐसे चमत्कार किये और किये जारहे है जिसे विज्ञान की भाषा में असंभव ही कहा जाएगा
कितने बौने और कमजोर है हम कि जिस बड़े काम को हम असंभव मानते है उसे तुरंत नकार देते है की यह हो ही नहीं सकता, विज्ञान पोलीग्राफ , ईसीजी और हर्ट ब्लड प्रेशर तो नाप सकता है मगर इंसानी चेतना की उँचाइयों को नापने का कोई स्ट्रूमेंट आज तक नहीं बना पाया है , वह तो केवल एक दौड़ के खिलाड़ी की तरह बार बार गिरता खड़ा होता और फिर भाग कर अपनी परम शांति की खोज में लगा रहता है, ,उसकी गति इस प्रकार की होती है जैसे एक पागल आदमी के हाथ में बड़ा बांस है, और उसके सिरे पर लाल रूमाल बांधा गया है ,और वह तेजी से भागता रहता है बांस आगे किये पर जीवन भर वो रूमाल उसकी पकड़ में नहीं आ पाता क्योकि उसकी चेतना ही तो शून्यता प्रकट कर देती है |
विश्व भर के इतिहास में यदि दृष्टी डाली जाए हजारों स्थान पर ऐसी धार्मिक प्रयोग शालाएं थी जिनका प्रयोग ब्रह्माण्ड को समझने के लिए किया गया है , आज अनेक स्पेस सेंटर , परमाणु केंद्र और वैज्ञानिक जो प्रकृति को समझने की चेष्टा कररहे है वो हर रोज कुछ न कुछ नया कररहे है अपनी चेतना शक्ति से , सारे फॉर्मूले फ़ैल होजाते यही , सहज एकाग्रता में नया फार्मूला तय करलिया जाता है , किसी की सफलता के प्रयास में कुछ और सफल हो जाता है और हम बड़े प्रसन्न बने रहते है की हमने यह किया या वो किया ,
संसार के हर इंसान को मैं दो मिनट आत्मानुभव का मौका देता हूँ दोस्तों ९०%लोगो को अपने आपमें बड़ा खालीपन लिए मालूम होते है ,क्योकि उनके पीछे जीवन को समझने की शक्ति नहीं है ,
शरीर रिस्पॉन्ड नहीं कररहा है ,इसलिए आधुनिक चिकित्सा काम नही कररही है ,
मन में भोग और विलासता के बीच कुछ एकाग्रता का भाव नहीं बना पा रहा हूँ इस लिए इसके अलावा सब बेकार है यह सब स्वयं की चेतना को नही समझने के कारण है ,कहने का आशययह कि आप स्वयं की परम चेतना को जाग्रत कीजिए तब आप नये जीवन की शुरुआत करपाएंगे |
परम चेतना को परिष्कृत कर ब्रह्माण्ड से शक्ति प्राप्त करने के लिए भारतीय तंत्र शास्त्र के इन बिन्दुओं को अपनाइये
जीवन और संसार को समझने का प्रयत्न करें अपने लक्ष्य और अपने आस पास की स्थितियों को समझे और उनके अनुसार स्वयं को सकारात्मक रखें |
स्वयं को एकाग्रता का भाव प्रदान करने के लिए दिन में १य़ा २ घंटे मौन धारण करने का प्रयत्न करें इससे आपकी चेतना को विस्तार मिलना आरम्भ हो जाएगा |
स्वयं को एकाग्र करके अनन्तायः नमः (ANAN-TAAYAH -NAMH--)को ३ से ५ मिनट तक आँख बंद करके रिपीट करें ध्यान रहे कि आप पारलौकिक सत्ता से जुड़े है |
प्रथम स्थिति के बाद आपको शांत और एकांत में अपने भ्रू बिंदु का चिंतन करना चाहिए यहां आपको जितना संभव हो दोंनो आखों से भ्रू मध्य को देखने का प्रयत्न करें |
स्वासों को नियंत्रित रखकर आँख बंद करके स्वयं की चेतना से उन्हें देखना आरम्भ करें जैसे आपकी स्वास आरही है तो वह सकारात्मकता लारही है और जाने वाली स्वास ऋणात्मकता लेजारही है यह बहुत प्रभावी योग माना गया है |
अपने सारे कार्यों में पूर्ण मनोयोग रखें एवं हर कार्य के लिए उन शक्तियों को धन्यवाद अवश्य करें जो आपके साथ सहयोगी और अदृश्य है , इससे आपको अहम और घमंड नहीं पैदा होगा |
स्वयं को हर कार्य में पूर्ण मनोयोग देकर भी आप निर्लिप्त बने रहें ध्यान रहे कि जीवन बहुत सारे भागों में बंटा हुआ कोई सत्य है और हर स्तर पर आपको स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करना है |
जिन स्थितियों पर आपका नियंत्रण नहीं हो उनमे सकारात्मक रुख अपनाये रखें क्योकि अतीत भविष्य और दूसरो के सम्बन्ध में आप निर्णय लेकर भी कोई कार्य नहीं करवा सकते |
नियमित स्वरुप में स्वयं के कार्यों का आकलन अवश्य करें और जहाँ आप गलत हों अगले आने वाले समय में वह गलती की पुनरावृत्ति न होने दें ।
आकाश में रोज बैठ कर आकाशीय दृश्यों का अवलोकन करें और अपने मंत्र का जाप करें , इससे आपको अनभिज्ञ को जानने में सरलता होगी |
रोज कुछ समय पानी में थोड़ा सा नमक डालकर पांव डालकर अवश्य बैठे इससे आपकी नकारात्मक ऊर्जा निरंतर कम होती जाएगी |
ध्यान के समय एक पानीके चौड़े पात्र में कोई इत्र डालकर आँख बंद करके ध्यान करें , यह अवश्य ध्यान रहे कि जहाँ ध्यान किया जा रहा है वहा कम से कम से सामान हो |
ध्यान के समय सुबह पूर्व दोपहर २ बजे के बाद पश्चिम और संध्या के बाद उत्तर की और मुंह करके ध्यान करें , अमावस्या , रविवार , में गरीबों को दान एवं एक दो सिटिंग दक्षिण की और भी ली जा सकती है |
ब्रह्माण्ड का मूल भाव देना त्याग और सबको खुश रखना है , आप ब्रह्माण्ड साधना के लिए ऐसे ही भाव जाग्रत रखे क्योकि इससे आपको नित्य नई ऊर्जा मिलेगी |
दूसरों के कार्यों की आलोचना और आंकलन करना आपका विषय नहीं है और इससे आपमें भी ऋणात्मकता पैदा होगी आप जीवन के प्रति सकारात्मक रवैय्या अपनाइये |
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