व्यक्तित्व विकास (११का जादू )
भारतीय दर्शन में ११ का अंक बड़ा महत्वपूर्ण है धर्म के अनुसार ११ सबसे अधिक ताकतवर माना गया है और यह जाना जाता है कि रूद्र अपने पूर्ण अवतारों में ११ की संख्या में सम्पूर्ण जगत के कर्तव्यों को पूर्ण करने में सामर्थ्यवन सिद्ध हुए अर्थात यह माना गया सम्पूर्ण जगत में स्वयं सिद्ध होने के लिए ११ मुख्य रूद्र गुणों की आवश्यकता अवश्य सकती है जिनसे सम्पूर्ण लोक और उसकी नियंत्रण शक्तियों को प्राप्त किया जा सकता है |
आधुनिक युग में व्यक्तित्व विकास हेतु मनुष्य को गुणात्मक आधारों की आवश्यकता अवश्य है और पूरे जीवन में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए गुणों की आवश्यकता है आज व्यक्ति और व्यक्तित्व को भी पूर्ण करने के लिए व्यक्तित्वविकास के मूल मन्त्रों को सीखना आवश्यक है जिससे जीवन को सफल बनाया जा सके यदि आप यह चाहते है कि जीवन के प्रत्येक भाग में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध होना है तो जीवन के इस ११ का जादू आपको स्वयं सिद्ध बना देगा |
व्यक्तित्व विकास की पृष्ठ भूमि में सबसे महत्वपूर्ण विषय है अपनी समस्त शक्तियों को समझना और उनका विकास करना ११ का चमत्कार बड़ा ही विचित्र है महा रुद्रों की संख्या ११ ही है और सम्पूर्ण संसार की महाशक्तियां ३३ बताई गई है और जिन्हें ३३ कोटि देवता संचालित करते है इन ३३ महा शक्तियों का आधार मनुष्य के अंदर और उनकी जाग्रति हेतु उसमे ३३ महागुण होने ही चाहिए जो सम्पूर्ण शक्तियों के साथ मनुष्य को श्रेष्ठतम सिद्ध करते है ये ही गुण व्यक्तित्व विकास की महाशक्तियां है जिन्हे पूर्ण करके मनुष्य महाशक्ति सम्पन्नऔर देवतुल्य हो सकता है |
व्यक्तित्व विकास के मूल ११ शब्दों के सपूर्ण शक्तियों को निम्नतः समझा जासकता है
1 P ------- purity-----passion -----power
जीवन में पहला शब्द पी पवित्रता ,शक्ति और जिद का प्रतीक है वह जीवन से यही मांगता है कि अपने पूर्ण सत्य को पवित्रता और पूर्णता से जीतने का प्रयास किया जावे , जीवन की पूर्णता सरलता और पवित्रता के आधारों में ही छुपी है उसी प्रकार पैशन यह चाहता है कि जीवन लक्ष्यों और अपने उद्देश्यों के प्रति इतना दृण निश्चय करले कि उसे जीवन के प्रतिपल अपने लक्ष्य की प्राप्ति का ही ध्यान बना रहे और तीसरा पी यही बताता है कि जीवन को पूरी ताकत और शक्ति से जीने का प्रयत्न करें जीवनको जो भी चाहिए ,जो उसके लिए आवश्यक हो पूरी ताकत से उसे प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाए |
2 E -------evaluation -------external knowledge --------experience
जीवन की दूसरी महत्व पूर्ण आवश्यकता है की हम तीनों ई को प्राप्त करें ,प्रथम ई यह बताता है कि जीवन सदैव स्वयं का मूल्यांकन करता रहे और हर कार्य के बाद हर बीतने वाले दिन के अंत में हम यह अवश्य विचार करें कि आज हमने स्वयं के कार्यों में कितनी सफलता पाई क्या कोई त्रुटि तो नहीं की , किसी के दुःख का कारण तो नहीं बने हम और कल आजकी त्रुटियों को सुधरने के लिए क्या निश्चय किया जाए ,दूसरा ई यह बताता है कि जीवन के प्रत्येक चरण में स्वयं को प्रासंगिक सिद्ध करने के लिए बाह्य जगत की आधुनिक तकनीकों का पूर्ण ज्ञान किया जावे उसके बिना आपके लक्ष्य पूरहोने में कठिनाई हो सकती है ,जीवन का तीसरा मुख्य ई है अनुभव जिसके बिना जीवन मूल्य नहीं बना पाता जीवन के कई अध्याय अनुभव गम्य होते है और उन्हें अनुभव से ही पूर्ण किया जा सकता है |
3 R--------rethinking -------research -------remember ------
तृतीय शब्द R यह बताता है जीवन आपसे निरंतर यह मांग करता है कि आप स्वयं के आचार -विचार ,कार्यों और व्यवहारों को पुनर्चिन्तन के माध्यम से चुस्त और दुरुस्त बनाये रखिये , जैसे ही मन और बुद्धि को ढीला करके जीवन जीने की कोशिश की जीवन पर बहुत सारी नकारात्मकताएं हावी होने लगेंगी नकारत्मकताओं की चोटी अपने पुनर्चिन्तन के हाथ में रखिये ,द्वतीय आर यह बताता है की जीवन को शोध का विषय बनाकर रखिये हिन्दू दर्शन यही कहता है कि आप जिज्ञासु भाव जगा कर स्वयं को सम्पूर्ण प्रकृति के लिए अधिक से अधिक सार्थक बनाये रखिये ,यह कार्य शोध से ही संभव हो सकता है ,तृतीय आर यह बताता है ,आपको सम्पूर्ण जीवन के सकारात्मक -नकारात्मक पल याद रहने चाहिए ,समय व्यवस्था को सदैव याद रखना चाहिए जो त्रुटियाँ जीवन करे उनकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए |
4 S-------skill---------smile---------sacrifice
S चौथा शब्द है वह बताता है कि जीवनकेवल कुशलता को ही प्रोत्साहित करता है उसपर त्रुटि सुधारने और बार बार गलतियां करने का समय है ही नहीं अतैव वह पूर्ण कुशलता की कामना करता है जीवनको अपने प्रयत्नों से पूर्ण कुशल बनाने का प्रयत्न करें बस उसके लिए अपने निश्चय को आधार बनाया जा सकता है ,दूसरा एस यह बताता है कि जीवन हर पल नई समस्याओं ,लोगों और नए परिवेश के साथ आपकी परीक्षा लेने को तत्पर रहेगा आप हर परिस्थिति में मुस्कुराते रहिये देखिये आपके नकारात्मक कार्य सकारात्मक होने लगेंगे | क्योकि मुस्कुराहट से आप संसार को प्रेम से जीत सकते है ,तृतीय एस यह बताता त्याग,जीवन में हर इंसान एक लक्ष्य के लिए जी रहा है और उसकी अधिकाँश सफलता दूसरों के प्रतियोगी भाव के कारण है यहाँ उसमे त्याग का गुण उसे चिरस्थाई सफलता का आधार बना सकता है |
5 O --------oath-------observation --------organized
o के मूल शब्दों का आशय ओथ यानि एक प्रतिज्ञा से आरभ है यह शब्द यह बताता है कि जीवन के हर भाव को जो प्रतिज्ञा के भाव से जीता है उसे दुनियां में कोई पराजित नहीं कर सकता , जीवन एक ऐसी प्रतिज्ञा है जिसमे परहित का ध्यान , स्वयं से सम्पूर्ण जगत का उत्थान और जीवन के प्रत्येक भाव पर , कर्त्तव्य और दायित्व पर एक अनवरत प्रतिज्ञा है जिसका पालन पूर्णता है द्वतीय शब्द बताता है की जीवन की प्रत्येक क्रिया को बड़े ध्यान से परखने की आवश्यकता है और यह कला आतंरिक और बाह्य दोनों रूपों में चलतेेे रहनी चाहिए ,और तृतीय शब्द यह बताता है कि जीवन के हर भाग क्रिया और मन बुद्धि को एक संगठनात्मक व्यवस्था के अंतर्गत पूर्ण रूप से संचालित किया जाना चाहिए मन ,वाणी एकाग्रता , और कार्य कारी सफलता प्रभावी संगठनात्मक स्वरुप पर संभव है |
6 N--------nationality -------new-vision --------nectar
जीवन में प्रथम ऐन यह यह बताता है कि राष्ट्र मर्यादा और उनका गर्व आपके व्यक्तित्व की प्रथम सोच होनी चाहिए हिन्दू धर्म में स्पष्ट लिखा है कि
जननी जन्म भूमि स्वर्गादपि गरीयसा
राष्ट्रीयता की भावना हजारों स्वर्गों से भी उत्तम मानी जा सकती है अतः जीवन में अपनी राष्ट्रीयता पर सदैव गौरवान्वित रहना सीखिये द्वतीयतः सैदेव नया दृष्टि कोण बनाये रखिये क्योकि यदि समय के साथ दृष्टिकोणों में परिवर्तन नहीं हुआ तो आपका पतन निश्चित है ,समय के साथ सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ तृतीय ऐन यह बताता है कि जीवन एक अद्भुत विषय है इसकी सम्पूर्णता इतनी अभूतपूर्व है जो जीवन को किसी भी स्तर पर लेजाने की शक्ति रखती है अतः जीवन की बहुमूल्यता का भाव रख कर उसे उच्चतम शिखर पर ले जाए |
7 A-------active --------accuracy --------acceptance
व्यक्तित्व के सातवें आधार के रूप में जो शब्द है वह ए यह बताता है कि जीवन के सभी भाव यह प्रप्रदर्शित करते है की जीवन स्वयं संचालित होना चाहिए कर्मा का सिद्धांत यही बतलाता है की जीवन की क्रियाशीलता ही उसका स्पंदन ही उसकी जीवंतता है है उसे क्रियात्मक स्वरुप में सकारात्मकता का भाव देते रहिये द्वतीय ए यह इंगित करता है कि जीवन में निश्चितता होनी चाहिए आप का इसप्रकार का नियंत्रण बना रहे कि जीवन में समरूपता बनी रहे किसी भी कार्य या भावका बाहुल्य अथवा कमी नहीं होनी चाहिए तृतीय ए यह बताता है की जीवन में हर परिस्थिति की स्वीकार्यता होनी ही चाहिए दुःख सुख लाभ हानि जय पराजय आपको पथ से डिगा नहीं पाये आप सब को सम भावसे स्वीकार करें |
8 L--------leadership---------listening ----------love
व्यक्तित्व का आठवां प्रमुख शब्द है एल यह बताता है कि जीवन में नेतृत्व का गुण बना ही रहना चाहिए एक और नेतृत्व आपकी आंतरिक शक्तियों का नेतृत्व करता है दूसरी और आपके परिवेश समाज राष्ट्र को भी दिशा देने की शक्ति रखता है दूसरे एल का आधार है प्रभावी श्रवण का गुण अर्थात दूसरों के विचारों को आत्मसात करके स्वयं को दिशा के आधारों पर स्थिर रखना तृतीय आधार सबसे महत्व पूर्ण भाव बताता है वह यह सिद्ध करता है कि जबतक आप में मानव मात्र के प्रति प्रेम नहीं होगा आप सफल और श्रेष्ठ व्यक्तित्व के स्वामी हो ही नहीं सकते |
9 I --------intuition ----------improvement --------imagination
व्यक्तित्व का नौवां महत्वपूर्ण भाग या शब्द है आई प्रथम आई यह बताता है कि आपस्वयम् की आवाज सुन सकते है कि नहीं आपके व्यक्तित्व का सबसे शक्तिशाली गुण यही होना चाहिए कि आप का आंतरिक चिंतन इतना सशक्त हो की वह आपको आधी सफलता द्रण निशचय के साथ ही प्राप्त हो सके द्वतीयतः आपमें स्वयं को सुधारने के गुण भी होने चाहिए आप अपनी त्रुटियों को समय रहते सुधार कर शक्तियों में बदल सकें तृतीयतः आपकी चिंतन शक्ति इतनी प्रभावी हो कि आप जो भी सकारात्मक सोच बनाये वह आपको मूर्त रूप में मिल सके | आप जीवन को इतनी शक्ति के साथ सोचिये कि आपका जीवन मार्ग सामने बिलकुल स्पष्ट हो जाए सभी सफलता प्राप्त है |
10 T----------target----------thought ----------transfer
व्यक्तित्व का दसवां शब्द यह बताता है कि जीवन के प्रत्येक भाग में से आपक्या प्राप्त करना चाहते है उसका लक्ष्य पहले से निर्धारित रखें और समय समय पर उसका मूल्यांकन करते रहें द्वतीयतः आपमें निरंतर विचार श्रंखला पैदा होती और समयानुसार उसका सकारात्मक प्रयोग करती दिखाई देनी चाहिए साथ ही आप सकारात्मकता के गुणों को दूसरी पीढ़ियों को हस्तांतरित अवश्य करें |
11 Y----------young ----------you -----------yoga
व्यक्तित्व का अंतिम शब्द यह बताता है कि आपकी सोच एकदम युवा ही होनी चाहिए जिसप्रकार युवा सोच में शक्ति , बल , तीव्रता होती है वैसे ही व्यक्तित्व में चिर युवा सोच रहनी चाहिए ,द्वतीयतः व्यक्तित्व में केवल तुम का भाव आपको सम्पूर्ण सफलता बड़ी आसानी से दे सकता है यहाँ हमेशा मैं से अधिक बल तुम पर देना आवश्यक है तृतीयः आपसंयोग से योग का महत्व समझे दुनिया की हर सफलता के मूल में योग है वह भी निश्चित योग चाहे वह मन शरीर का हो या सम्पूर्ण शक्तियों का हो योग व्यक्तित्व विकास का प्राथमिक सफलता का आधार है |और वाही मानसिक संतुलन का विषय भी है |
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