प्रचंड युवा शक्ति के ज्ञान को संस्कार दो
प्राचीन काल में हिमालय की तराई में एक राजा राज्य करता था , स्वाभाव से वह बड़ा क्रूर ,अजेय और क्रोधी था उसके स्वाभाव गत गुणों में चापलूसी ,हत्या ,फांसी , दूसरे की धन सम्पति , अश्व, स्त्रियां,बच्चों का अपहरण करना दूसरे की पीड़ा में प्रसन्न होना और तरह तरह की यातनाओं से प्रजा को परेशान करना उसका स्वाभाव बन गया था | राजा की सैन्यशक्ति और हथियारों के सामने कोई राजा सिर नहीं उठा सकता था।,उसी राज्य में एक सिद्ध तपस्वी भी निवास करते थे यदा कदा हिमालय से उतर कर अपने आश्रम में आजाते थे , राजा ने उनका बहुत नाम सुना था उसने अपने मंत्री से कहा की तीनों राजकुमारों को वो ही शिक्षा देगा ,तपस्वी को पकड़ कर लाया गया और बताया की तुम्हे तीन राज कुमारों को शिक्षा देनी है सोचा कि ईश्वर मानवता की भलाई के लिए मुझसे सहयोग मांग रहे है चलो यही सही ,तीनों तपस्वी ने राजकुमारों को राज महल जैसी सुख सुविधाओं में रखा , शिक्षा में मन न लगने पर उनकी रूचि अनुसार कार्य दिया , उनके अनुसाशन को राजा के कहे अनुसार शिथिल कर दिया गया और धीरे धीरे तपस्वी ने उन्हें , अमोघ शस्त्रों से सुसज्जित कर दिया परन्तु दया, धर्म , संस्कार , सत्य , आदर और मानवीयता के सम्पूर्ण गुण धर्म उन्हें रुचिकर ही नहीं लगे जिससे वो उन्हें सीख पाते । और एक दिन अमोघ शस्त्रों की होड़ में तीनों राज कुमारों ने राज्य पर हमला कर दिया क्योकि मानवीयता के गुण सम्मान आदर औरमानवीयता के गुण उन्होंने सीखे ही नही थे , इसी प्रकार राजा राजकुमार सब अमोघ शस्त्रों से राज्य के लालच में मारे गए , तपस्वी ने राजा के एक सत्यनिष्ठ मंत्री को राज्य सौपा और वह पुनः हिमालय चला गया |
संस्कारों और आदर्शों के बिना अजेय और अमोघ शक्तियां भी वैसी ही मालूम होती है जैसे किसी बड़े बम से पिन निकालने की चेष्टा करता कोई अबोध शिशु
सम्पूर्ण विश्व आज भारत की सबसे अधिक युवाओं की शक्ति , देख कर हतप्रभ है कि एक प्रगति शील देश विज्ञान , शिक्षा , ज्ञान , विकास , और तकनीकी क्रान्ति के क्षेत्र में अग्रणीय पक्ति में खड़ा हो गया है , कम्यूटर, क्रान्ति , जीवन निर्वाह के सम्पूर्ण उत्पादों , तकनीकी ज्ञान के प्रत्येक आयाम पर भारत ने अपना लहरा दिया है ।दोस्तों ज्ञान , शक्ति,धन वैभव और अमोघ विनाशकारी शस्त्र केवल विनाश जानते है उनमे अपना पराया होता ही कहां है । अति ज्ञान , शक्ति और अमोघ शस्त्र एक अबोध या अत्याचारी के हाथ में देने का आशय है विनाश ,और कमोवेश हम भी उसी विनाश पथ पर जाने को लड़खड़ा रहे है ।
जिस ज्ञान और बल से विनम्रता ,मानवहित , धर्म , अहिंसा और परमार्थ की भावना और संस्कार न जुड़े हो तो वह शक्ति स्वयं अपने स्वामी को समाप्त कर देती है , सत्य ,अहिंसा, अपरिग्रह ,और परहित के समर्पण को जीने वाले को प्रकृति गुण संपन्न समझ कर इतिहास के सुनहरी पन्नों में संजों देती है यही उच्चतम मानवीय गुण भी माने जाते हैं ।
आज जब हम सब लोग विकास संस्कृति और सर्वांगीण परिवर्तन की दौड़ में आगे आने कोशिश कररहे है तब ध्यान यह रहे कि हम विकास का सही अर्थ अवश्य समझे ,यदि समाज राष्ट्र और हमारे पूर्ण परिवेश का सही अर्थों में विकास न हुआ तो हम स्वयं को पूर्ण सिद्ध नहीं कर पाएंगे , अभी हम अपने नियत लक्ष्य पर नहीं पहुँच पाये है , आज जब हम विकास की बात करते है तो तो व्यक्तिगत स्तर पर आकलन किये जाने लगते है और व्यक्तिगत आकलन का समाज और धर्म की दृष्टी से कोई मूल्य ही नहीं होता , हम पशु वत आधारों पर जीने की इस कला को पूर्ण नहीं मान सकते जब तक वह स्वयं से समाज कओ पोषित करने का माध्यम न बन जाए |
भारत विश्व गुरु की पदवी पर इस आसीन हुआ कि यहाँ सनातन की परंपरा में सर्व धर्म संभाव का मूल मंत्र निहित था यहाँ की संस्कृति ने धर्म का आशय यह बताया कि सः धारयते इति धर्मः अर्थात जो सबके धारण करने योग्य था वो धर्म था , भारत की धर्म व्यवस्था इतनी विशाल है जिसमे अनेक संस्कृति अनेक धर्म और पुरानी गूढ़ परम्पराएँ अन्तर्निहित है , गीता का वैराग्य , रामायण की मर्यादाएं , भागवत महापुराण का निश्छल प्रेम , कुरआन शरीफ की गहन आयतें गुरुग्रंथ साहेब की चेतावनियां और उपदेश बाइबल की जीवन शैली और ऐसे ही अनेक पुराण उपनिषद और हजारों स्थानीय आदर्श ग्रन्थ भारत की विश्व गुरु परंपरा की एक छोटी सी बानगी भर है | जो यह बताते है कि जीवन में कोई भी विकास यदि संस्कारों और आदर्शो के साथ हो तभी श्रेष्ठ साबित हो सकता है ,
एक और ज्ञान और दूसरी और धर्म मान्यताएं और मर्यादाएं यदि इनका उचित सामंजस्य हो जाए तो भारत एक बार फिर विश्व गुरु की पदवी पर स्वयं को प्रतिस्थापित करसकेगा , विकास के साथ निम्न का ध्यान अवश्य रखें
शिक्षा , ज्ञान अर्जन के साथ पारिवारिक , सामाजिक , और राष्ट्रीय भावनाओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिए क्योकि यही हमारी असली पहिचान है |
विकास के साथ रिश्तों की गरिमा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए , और सबको यथोचित सम्मान अवश्य दें क्योकि हम जो दे रहे है वही कई गुना होकर हमे मिलेगा यही सोचें |
हमारे व्यवहार और कार्यों से दूसरों को कोई कष्ट न पहुंचे , क्योकि यदि हमारा व्यवहार लिए दुःख का विषय बना तो हमे भी उसकी नकारात्मकता उठानी होगी
ध्यान रहे कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं हैअतैव दूसरे की आलोचनाओं से अपने आपको बचाएं क्योकि यदि आप स्वयं को ऐसी आलोचनाओं से न बचा पाये तो आपका व्यक्तित्व भी नकारात्मक होने लगेगा ।
आप यह याद रखें की आपका हर समय आकलन किया जारहा है और आप इस दृष्टा भाव को देखते रहें तो आप स्वयं का आकलन करके उसमे सुधार कर सकते है ।
एक परम शक्ति शाली परमेश्वर आपको प्रत्येक पल अपनी ऊर्जा प्रदान कर रहा है अपनी चेतना को पूर्ण शक्ति से उसकी और लगा कर हम स्वयं में जैसा चाहे वैसा परिवर्तन ला सकते है |
माता, पिता ,गुरु , अपने शरीर और आत्मा के प्रति आप अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते और आपको इस सेवा से सुख, श्रेष्ठ कार्य संतोष ,संतान, आय, पराक्रम , तथा बल ,शौर्य , निरोगी काया और शांति एकाग्रता और शून्यता प्राप्त होगी यही धर्म का मूल भी है ।
अपने संस्कारों आदर्शों को जीवन में थामे रखे ध्यान रखे कि इन्हीं के सहारे आपको जीवन की परम शान्ति प्राप्त हो सकेगी क्योकि आदमी का अंतिम लक्ष्य परम शान्ति की और ही है |
घ्यान विज्ञान और संस्कारों और आदर्शों के चयन में आप पूर्ण भाव से दूसरों के हितार्थ लक्ष्य तय करें क्योकि यह तो ऐसा सौदा है जो बिना मोल भाव किये आपको असंख्यों उपलब्धियां देगा |
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