स्वयं का साक्षात्कार

एक बहुत बड़े संत ने अपने शिष्यों  से पूछा तुमने आज तक कैसा जीवन जिया है ,और तुम संसार और जीवन को क्या समझते हो, शिष्य सुनते  रहे  फिरप्रथम शिष्य  बोला   गुरुदेव  मैं एक करोड़ पति पिता का पुत्र था ,और जीवन के हर ऐशो आराम को जीवन  मायने समझ कर जिया हूँ, मैंने संसार को शराब अय्याशी और क्लबों के शोर में देखा है , और हर ऐशो आराम की वस्तुओं का  मैं  ढेर बन  गया था मेरे अपनों ने ही मेरी संपत्ति शांति सब कुछ लूट ली  है मुझसे | दूसरे शिष्य ने कहा गुरुदेव दुनिया में आभाव है गरीबी है धोखा है और मैंने बड़ी मुश्किल से जीवन यापन किया है जीवन मेरे लिए निराशा है ,और विपत्ति काल में कोई अपना होता ही  कहां है ,तीसरे शिष्य ने कहा  गुरुदेव मैंने शिक्षा , ज्ञान ,शास्त्रों के अम्बार लगा दिए और हजारों ग्रंथों के ज्ञान के बाद मैं सशंकित हो गया हूँ की वास्तव में जीवन  और संसार और उसका नियंता है भी या नहीं , मैं  जीवन के इस बिंदु पर स्वयं अनजान और अबूझी पहेली सा समझ  रहा हूँ | 
 लम्बे मौन के बाद गुरु ने  कहा  बेटा एक पर साधन थे वो अपने साधनों के लुटे जाने पर परेशान है , दूसरे पर साधन नहीं है वो उनके न होने पर परेशान है ,और तीसरा ज्ञान और शिक्षा के उच्चतम शिखर पर भी अनजान और ठगा हुआ सा खड़ा है अर्थात  और संतोष की स्थिति में कोई नहीं है | क्योकि हमने जीवन , संसार , रिश्तों और साधनों की व्याख्या तो की मगर हम अपना मूल्यांकन करना भूल गए की हम संसार   के लिए कैसे उपयोगी है , और जीवन भी हमे वही देगा जो हम उसे दे रहे है | जिस जीवन में स्वयं को आत्मसात करने का  गुण नहीं है वह अपनी अंतरात्मा की कामनाओं को ही नहीं समझ पाता  परिणाम हमारी हर उपलब्धि व्यर्थ सी दिखाई देने लगती है । 
हम संसार में  साधनों ,सम्बन्ध , ज्ञान और दुनियां की हर विषय वस्तु का तत्काल मूल्यांकन कर देते है और जब जब अपना खुद का मोबाईल डायल करते है हम  स्वयं को व्यस्त पाते है और इसी तरह सम्पूर्ण जीवन निकल जाता है ,हम अपनी अंतरात्मा से यह कभी नही पूछ पाते की हमे चाहिए क्या इसलिए दुनिया भर की उपलब्धियों के बाद भी हम खाली ,निराश और लाचार ही बने रहते है क्योकि जबतक हम स्वयं से साक्षात्कार नहीं करेंगे तब तक हम हाशियों  पर पड़े हुए जीवन को सफलता नहीं दे पाएंगे अतः जीवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है की आप अपने आपसे परामर्श कर यह तय करें कि आप संसार , जीवन , और मानवता के लिए कहां तक उपयोगी है जिस दिन यह साक्षात्कार पूर्ण होगया जीवन स्वयं आपको फर्श से अर्श पर पहुंचा देगा । 
तीनो शिष्यों की भूल भी यही थी एक साधन संपन्न रहा ,एक अभावों में रहा और तीसरा ज्ञान की पर काष्ठा पर रहा मगर जीवन और संसार को समझ ही नही पाये क्योकि अपने स्वयं को समझने से पहले संसार और जीवन को समझना असंभव है और हम सब भी वही गलतियां कर रहे है , जो उन तपस्वी शिष्यों ने की थी स्वयं को जानने से पहले  हम कुछ समझ ही नही सकते और हम हर उपलब्धि के बाद समाज परिवार और परिवेश से प्रसंशा की कामना अवश्य करते है जबकि हमारी अंतरात्मा की प्रसंशा ही सच्ची प्रसंशा है यह भूल जाते है 

 मैं ढूढ़ता रहा  था खुद अपने आपको ही , जीवन के लम्बे समय तक मुझे अपने लिए समय ही नहीं मिल पाया परन्तु यही सोचता रहा कि  मेरी उपलब्धियां , संसार की झूठी प्रसंशा और मेरी साधन , ज्ञान और सांसारिक आपूर्तियाँ , ये सब मेरे अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए आवश्यक है , दोस्तों क्या हमे ऐसा नहीं लगता की हमारी सारी क्रियाएँ , प्राप्तियां और संतोष का आधार दूसरों पर आधारित होकर रह गया है ,हमको बड़ा कहने वाले होने चाहिए तब हम बड़े हो पाएंगे , दिखाने के लिए साधनों  का ढेर होना चाहिए और उसे लोग बहुत बड़ा माने , इसी प्रकार धन, संतान, रूप, सौंदर्य, पद , ज्ञान और भी बहुत सी उपलब्धियां दूसरों को बता कर ही हम संतोष पाना  चाहते है  जबकि यहाँ एक  कटु सत्य यह है की हमारे समाज मे दूसरों की उपलब्धियों से प्रसन्न और संतुष्ट होने वाले है ही नही , वे तो दूसरों को समस्या से घिरे  हुए और सहानुभूति का पात्र बना देखना चाहते है जबकि हमारी उपलब्धियों पर सही निर्णय देने वाला हमारा मन मष्तिष्क हमारे व्यवहार से छुब्ध  और उपेक्षित ही पड़ा रहता है । 


आपकी अंतरात्मा आपके हर कार्य को दिशा देती है , वह आपको बार बार यह प्रेरित करती है की आप धनात्मक रहें और उसके निर्णयों का पूर्ण ध्यान रखें । 
हम यह अवश्य सोचें की हम अपने क्रियान्वयन में कहाँ नकारात्मक हो रहें है और उसका प्रभाव सबसे ज्यादा क्या ख़राब हो सकता है , और हम उसमे कैसे सुधार कर सकते है । 
प्रति दिन ५ ---- १० मिनट ध्यान अवश्य करें इसने आपका मानसिक विचलन , उतावलापन और क्रोध इन सब स्थितियों में सुधार होगा । 
हर समस्या के समाधान को  हूँ केयर्स कह कर नहीं  छोड़ें क्योकि जीवन सूर्य चन्द्रमा और प्रकृति यह शब्द नहीं दोहरा सकती है अतः आप पूर्ण मनोयोग से चिंतन कर समाधान निकालें | 
आपकी सारी उपलब्धियां आपके स्वयं के लिए है और इन उपलब्धियों से आपको और आपकी आत्मा को संतोष होनाचाहिए आप इन उपलब्धियों से दूसरों को छोटा बनाने का प्रयत्न न करें । 
प्रकृति , ईश्वर , और अंतरात्मा इन तीनों के सम्बन्ध को समझने का प्रयत्न करें इन तीनों में एक विशेषता है की ये दूसरों के लिए ही कार्य करते है ,  आत्मा मनुष्य , शरीर और इच्छाओं के लिए प्रकृति ईश्वर संसार के हिट के लिए , हमें भी  वही  मूल विशेषतायें ध्यान रखनी है ।
जीवन के संवादों में सबसे बड़ा महत्वपूर्ण  संवाद है स्वयं अपने आपसे  किया हुआ संवाद और यहीं जीवन को पूर्ण गति भी देता है जीवन की हर समस्या और क्रियान्वयन के लिए आत्मा से सतत सवाद की आवश्यकता है यही इंसान को आदर्शों का इतिहास बना देता है एक बार प्रयत्न करें समय, प्रकृति सब आपका साथ देने को एक साथ खड़ी हो जाएंगी और आप स्वयं सर्वश्रेष्ठ साबित होंगे । 

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