सफलता का सशक्त साधन है चिंतन

एक समय तीन तपस्वी गहन तपस्या में  लीन थे   तभी  एक ईश्वर का दूत वह से गुजरा उसे  पहले सन्यासी ने प्रणाम करउससे प्रार्थना की कि कृपया आप ईश्वर से यह पूछना की वो मुझे कब मिलेंगे कई वर्ष होगये है मुझे ,इसी प्रकार तीनों सन्यासियों ने उस दूत से प्रार्थना की कि एकबार आप पूछ कर अवश्य बताना  कि  ईश्वर हमें कब मिलेंगे ,थोड़े समय बाद वह दूत लौटा और उसने पहले सन्यासी को बताया कि ईश्वर ने कहा है वोआपको १००  वर्ष बाद मिलेंगे ,दूसरे को बताया की आपको वे ५० वर्ष बाद मिलेंगे और तीसरे को उसने बताया की आप जिस पीपल वृक्ष के नीचे तपस्या कररहे है उसके जितने पत्ते हों उतने ही वर्षों बाद ईश्वर आपको दर्शन देंगे | पहले और दूसरे सन्यासी ने यह तय किया जब ईश्वर ५० और १०० वर्ष बाद ही मिलाने है तो  अविधि पूरी होने के एक वर्ष पहले आकर फिर तपस्या करलेंगे ये सोच कर वे दोनो अपनी भोग भरी जिंदगी में लौट गए | तीसरे सन्यासी ने ईश्वर को लाख लाख धन्यवाद दिया और यह सोच कर और गहरी साधना में जुट गया की अबतो यह निश्चित हो ही गया है की उसे उसके आराध्या अवश्य मिलेंगे ,दोस्तों उसी समय ईश्वर प्रकट होकर उसके सामने आगये अर्थात वह पूर्ण सफल होगया | 

जीवन में भी हम हजारों कामनाएं लिए भागे जारहे है एक चीज पूरी हो नही  पाती दूसरी के लिए परेशान होने लगते है और जीत हार हार , हार और फिर जीत कहने का आशय यह कि  जीवन में जीत कम हार अधिक होने लगती है क्योकि हम चाहते बहुत कुछ है परन्तु प्राप्ति के बाद उसका सुख को भी नहीं जी पाते जिसके लिए हमने एड़ी छोटी का जोर लगाकर सारी शांती नष्ट कर दी थी ,और जो कामनाये हम चाहते है उनके चिंतन और धनात्मक सोच के लिए हम पर समय ही नहीं है दोस्तों हम उन पहले और दूसरे सन्यासियों जैसे है जिन्हे लक्ष्य बनाने , बदलने , और  छोड़ने ,में जरा भी समय नहीं लगता परिणाम यह की हम जीवन भर उपलब्धियों से हारते चले जाते है और अपने को भाग्यको ,और ईश्वर को दोष देते रहते है ,जबकि इन सबके लिए हम और हमारा चिंतन ही दोषी है | 

मूल लक्ष्य  को पाने के लिए हजारों छोटे छोटे चरणों  की पूर्ती भी की जानी होती है और उनके लिए संकल्प एवं सशक्त चिंतन की आवश्यकता अवश्य पड़ती है और यह चिंतन निरंतरता के साथ बना रहता है तो सफलता की निश्चितता सामने दिखाई देने लगती है ,परन्तु हम तात्कालिक लाभों और शारीरिक मानसिक प्राप्तियों के लिए वो सौदे करजाते है जिनका मूल्य ही नहीं जानते हम ,दोस्तों जीवन की तमाम सफलताएं आपके चिंतन और क्रियान्वयन से बंधी है ,प्रथम और द्वतीय सन्यासी हम जैसे है वो अपने लक्ष्य , साधना ,क्रियान्वयन के प्रति  अकर्मण्य भाव रखते है और फिर देखेंगे , फिर सही इन्ही बातों में जीवन निकाल कर स्वयं को दोष देते रहते है जबकि तीसरा सन्यासी इस बात से प्रसन्न हो जाता है की मेरी दिशा और क्रियान्वयन सही है  बस  लक्ष्य थोड़ा दूर है मैं  पहुँच  अवश्य जाऊँगा यह भाव  सर्वोपरि  है ,यही कर्म गीता का सार भी है | 


 

सफलता संकल्प और चिंतन की दासी है ,परन्तु सफलता अपने चारों और अनेकों प्रलोभन रखती है वह अपने आप तक सबको पहुँचाने ही नहीं देती उसके प्रलोभनों में सामाजिक सम्बन्ध ,शारीरिक मानसिक आपूर्तियाँ , साधनों का आकर्षण , समाज में अपनी पहिचान के शॉर्टकट , कैसे भी काम निकालने की तकनीक , और अत्याचार झूठ फरेब और अनाचार से  जीता हुआ जीवन , ये सब सफलता के प्रलोभन है दोस्तों जो इन प्रलोभनों से बच कर पूर्ण चिंतन  और क्रियान्वयन के साथ अपने लक्ष्य  पर चलता रहा उसे सफलता  अवश्य  मिलेगी इसमें कोई संदेह नहीं है , 


सफलता के  चिंतन के लिए निम्न प्रयोग अवश्य करें 

 

  • लक्ष्य का निर्धारण बहुत चिंतन के बाद करें तथा सबके विचार परामर्श सुनें और फिर अपनी योग्यता और शक्ति का ध्यान रख कर लक्ष्य नियत  करें | 
  • एक परम शक्ति आपके हर कार्य में आपको दिशा निर्देशित कररही है एकाग्र होकर उसकी मंशा को समझे और अपने कर्त्तव्य के लिए सजग रहें | 
  • चिंतन करने से तपस्वी यदि ईश्वर पा सकता है  तो यह अवश्य समझ लें कि  जीवन की सफलता को भी यदि चिंतन के आधार में रखा गया तो सफलता में संदेह नहीं हो सकता | 
  • चिंतन की निरंतरता का भाव सबसे महत्वपूर्ण विषय है हमारी असफलता का एक मात्र कारण यह की हम पूरी ताकत से सोचते है  परन्तुचिंतन की  निरंतरता के अभाव में हम सब कुछ हार जाते है | 
  •  अपने लक्ष्य को  बार नहीं बदलें अन्यथा सफलता को कई जन्मों का इंतज़ार करना पड़ेगा क्योकि जैसे ही एक काम पूर्ण होने को होगा आप लक्ष्य बदल डालेंगे| 
  • चिंतन एवं लक्ष्य की नीवें स्वयं , समाज और राष्ट्र के हित  में धनात्मक हों तो आपकी सफलता  की संभावना शत प्रतिशत हो सकती है | 
  • चिंतन के समय आप किसी भी नकारात्मक व्यक्ति या कर्म के बारे में विचार न करें अन्यथा आपका सम्पूर्ण प्रयास असफल या पूर्ण सफल नहीं हो पायेगा , नकारात्मक चिंतन आपकी शक्ति निचोड़ लेता है | 
  • अपने लक्ष्य प्रयास और कर्म में सफलता और विजयी होने की भावना के अतिरिक्त कुछ नहीं होना चाहिए क्योकि सारे रिश्ते नाते और सामाजिक  ताना बाना इस बात पर निर्भर है की आप सफल हुए की नहीं | 
  • अपने लक्ष्य की आपूर्ति के प्रथम चरण में आप स्वयं खुश रहना और अपने परिवेश को खुश रखने का प्रयास  करें साथ ही यह ध्यान अवश्य रखें  कि आप एक सीमा तक ही किसी के सुख दुःख के साथी है  , अतः आप अपने समय और प्रयासों को धनात्मक रख कर अपने व्यव हार पर अंकुश लगा कर रखें|  
  • सफलता के प्रलोभनों में नहीं फंसे सफलता से पूर्व हजारों सम्बन्ध , साधन , और  शारीरिक और मानसिक आपूर्तियाँ प्रलोभन देती रहती है और मित्रों इसमें ९० % लोग उलझ कर अपनी सम्पूर्ण उपलब्धियां  शून्य करलेते है , बस आपका एकमात्र लक्ष्य यह हो की सफलता के पहले कुछ नहीं है | 
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