प्रेम सत्य और उसका स्वरुप

प्रेम

अनादि काल से इंसान के मष्तिष्क में यह प्रश्न उठता रहा की वह कोंन ही विषय स्थिति है जो मानवीय अस्तित्व को अमर और शाश्वत बनाए रखती है |जन्म के समय से ही उसने अपने आस पास सहज प्रेम की अनुभूति की थी और उसका विकास भी उसी परिवेश में हुआ था |उसने चंदा मामा सूर्य और प्रकृति के प्रेम को अपनी अबोधावस्था में बहुत पास से देखा,अनुभव किया था |


तोता, मैना, कौओ,कबूतरों को पकड़ने का प्रयास औरउन्हें  देने की जिद उसने बहुत की थी |कई बार चींटी चीटों के साथ खेलना नन्हीं सी मखमल की गुड़िया और जुगनू छोटे छोटे हाथो में बंद कर उन्हें रखे रहना तथा अनेक खेलो के प्रयोजनयही सिद्ध करते थे की वह ईश्वर के घर से एक अमर प्रेम लेकर चला था, और वही उसके भविष्य का सत्य होना चाहिए था

प्रकृति ने मानव को यही सिखाया कि प्रेम का रूप आकार प्रकारअनंत की सीमा से भी परे है |कवियों और साहित्य के शब्द बोने पड़ जाते है ,चिंतन और विचारों की दूरी साथ नही दे पाती मन मष्तिष्क इस परिभाषा को उम्र भर समझाने की चेष्टा करता रहता है और उस अनंत को अपने अनुसार ही समझ पाता है |प्रकृति ने मनुष्य को परिवरिश दी ,सूर्य ने उसे जीवन बचाए रखने का उपहार दिया ,हवाओं ने उसे जीवन संरचना की गति, साँसे दी ,मिटटी ने उसे जीवन बनाए रखने के लिए उपज दी,और अन्तरिक्ष ने उसे अनंत तक की नई परिभाषाये दी |


इन सब विषय स्थितियों वह पलने के बाद वह धीरे धीरे बड़ा होने लगा परिवार के वातावरण के हिसाब से उसने व्यवहार चालू कर दिया था ,पहले तो उसने दुनिया की हर चीज़ से अधिकता की पराकाष्ठा तक प्रेम किया मगर धीरे धीरे उसने परिवार और अपनो के बीच के मतभेद भी समझे | वो परिवार और अपने कल तक जो निर्विकार और पूर्ण भाव से केवल प्रेम दे रहेथे वेआज अपनो परायों और समाज का मूल्यांकन कर यह बताने लगे कि
किसको कितना और किस हिसाब से प्यार बंटाना है |किसको देखकर हसना है, किसको देखकर चुप होजाना है ,और किसको कितना महत्व देना है |प्रकृति और इंसानियत का मूल मंत्र कलयुग के दुर्विचार का शिकार होगया था | हम परिवार एवं अपनों की मिलकियत बन बैठे थे हमारा मन मष्तिष्क गुलाम और ग़लत दिशामे अपना रूप लेरहा था, मगर इस उम्र मी हमें इन सबकी परवाह ही कहाँ थी |धीरे धीरे यही हमारा अस्तित्व बन गई और घर एवं अपनों के व्यवहार के स्वार्थ,फरेब झूठ और कृत्रिम व्यवहार हमने उनसे भी अच्छी तरह सीख लिया क्योकि हमारी ग्रहण शक्ति अद्वतीय थी |
आज में बड़े , सफल और समाज के बहुत बड़े पदपर आसीन था ,सबको हमारे हुक्म मानने थे और हम सबके साथ व्यवहार तय करते थे ,मगर यह विडम्बना थी की हमें कोई असली प्रेम करने वाला था ही नही|हम हुक्म ,पैसे, पद से अपने अनुसार व्यवहार करा रहे थे लेकिन सब कुछ बनावटी लग रहा था |पत्नी पिता माँ और समाज के बीच हमारा बड़ा पद आगया था परिणाम पत्नी भोग्या रह गई पिता माता समय से छोटे जान पड़ने लगे और समाज वह तो मेरे अधीन था,उसे मेरे व्यवहार की आदत डालनी थी जो हम से कही नीचे थे अब वो मेरे ज्यादा करीब आना चाहते थे मगर मै जान चुका था की स्तर हीन लोगो  को  मैं  अपने कद से  बहुत छोटा मान चूका था  और उन्हें प्यार नहीं दया की जरूरत थी |

प्रेम को पवित्र बनाएँ और निम्न को अपनाने का प्रयत्न अवश्य करें | 


  सर्वप्रथम यह तय करें  आप स्वय के मानदंडों  पर हर सम्बन्ध का  करें।, जिस प्रकार अधिक  कूड़ा करकट     नकारात्मक ऊर्जा का  सृजन करता    करते रहें ।  
 प्रेम को  सहानुभूति,हादसे और दया का पात्र मानकर सम्बन्ध न बनाएँ जाएँ क्योकि ये सम्बन्ध  प्रभावी नहीं  हो हो पाएंगे 
आप अपने व्यवहार और अपने सम्बन्धों के व्यवहार पर  पूर्ण सचेत रहें । 
 कोशिश यह करें कि  आपको अपने उद्देश्य और लक्ष्य स्वयं   ही पूरे करने है और उनमे आप अकेले है । 
दोस्तों जो सुख दूसरों पर आधारित होगा उसमें दीर्घ काल में आपको दुःख ही मिलेगा अतः सबसे बहुत  अच्छा व्यवहार करें मगर उम्मीद बहुत कम लोगों से रखें 
अपनी और अपने आदर्शों कि सीमा पार न होने दें और प्रायस यह करें कि जीवन ! कार्य आपके सामने साफ हो कि आपको कहाँ तक जाना है । 
शरीर मन और एकाग्रता को बड़े रचनात्मक उद्देश्य में लगाएं तो बहुत  सारी नकारात्मक भावनाओं से बचाव किया जा सकता है । 
 सम्बन्धों के लिए झूठ फरेब और  व्यवहार करना पड़े वो सब एक दिन आपको कष्ट देंगें । 
जब भी आप स्वयं में  सुधार का प्रयास करेंगे कुछ कठिनाइयों के बाद आपको आत्म बल मिलने लगेगा 
प्राकृतिक सहज और सरलता से स्वयं को जीतने का प्रयास करें जिससे आपकी सुंदरता और निखार सकें 
खान  पान  रहन सहन   और  घूमने फिरने की प्रवृति को रचनात्मक दिशा दें । 
दोस्तों यही सब  कारक आपको जीवन में एक ऐसे जीवन का परिचय देंगें जिसमे आपको अपने आपसे शिकायतों के स्थान पर स्वयं संतोष का अनुभव होने लगेगा । जीवन में संतोष प्राप्त  करलेना और उसे दूसरों में बाँट देना सबसे दुर्लभ और अद्वितीय उपलब्धि है । 
यही सिद्ध करता है कि  इंसान ईश्वर के घर से एक अमर प्रेम लेकर चला था और वही उसके भविष्य का सत्य होना चाहिए था

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