प्रेम वर्तमान आप और वैलेंटाइन मै प्रेम था इसलिए

मै  प्रेम था इसलिए बे जुबान था समाज ने अपने अपने हिसाब से मेरा उपयोग किया और मैं  वैसे ही खड़ा अपनी बेबसी पर आंसूं बहता रहा ,लोग आते गए और मैं वही खड़ा अडिग सा अपनी बदलती हुईं परिभाषाएं देखता रहा उदास और अनमना सा , मुझे  याद आने लगे  राम रहीम और वो ऐतिहासिक किस्से जिनमे बलिदान के बड़े बड़े अध्याय थे मुझे याद आने लगा वो ५ वर्ष के कृष्ण और राधा का अविरल और पूर्ण समर्पण का प्रेम जिसमे केवल देना होता थ सब कुछ न्योछावर करने का भाव !जहा कुछ भी अपना होता कहाँ  था ,जरा सी खुशियों कि इच्छा के साथ चलता था ये प्रेम |

युग बीते समर्पण का भाव बहुत मंहगा हो गया तो  वह तो लुप्त प्रायः होगया राग का नामोनिशान नहीं रहा और अनुराग व्यथित होता रहा परिणाम यह कि हम वस्तु हो गए और आत्मा सौदागर एक बेहद चालाक सौदागर मूल्य खत्म होते गए व्यवसाय परिष्कृत होते रहे और हम इस माहौल में प्रेम ढूढ़ते रहे शायद यह रेगिस्तान कि मृग मरीचिका से भी अधिक दुष्कर खोज थी |

फिर वैलेंटाइन  ईसा गांधी और मदरटेरेसा का प्रेम देखा अथाह प्रेम वहा भी सब कुछ लुटाने की होड़ थी और आज तक मैं  यह नहीं तय   कर  सका कि उनमें जीता कौन सब अपनी अपनी जगह महा वैराग्य और महा त्यागी रहे और उनमे भेद करना मानवीयता का अपमान ही होगा सो उन्हें उस ऊँचे मुकाम पर ही हम सब पूजनीय मानते रहें ||


आज प्रश्न है इस बदलते युग में प्रेम कि परिभाषा का कि क्या हो सकती है वह इस अति वैज्ञानिक और अति जानकारियों वाले युग में अलग अलग लोगो के लिए अलग अलग ही थे
एक ने कहा क्या बात करते हो प्रेक्टिकल बनो और वैसे ही जियो
 कहाँ चककर में डालते हो दोस्त क्या ऐसे मैं  सबसे कहां  तक  रेलेशन बनाऊंगा
एक का मत था विदेशों में जानते हो पूरी स्वतंत्रता है वहाँ है लाइफ तो यहा तो सब बेकार है
एक कह रहे थे कि आज दौड़ का ज़माना है और बहुत खर्चा है  फिर कैसे भी पैसा कमाओ सब जायज है
और एक का मत था कि हम सब वयस्क है अपना अच्छा बुरा सोचते है हमें किसीसे  क्यां
एक जोर जोर से बोल रहे थे  तेरी नानी मारी तो मई क्या करूँ[हूँ  केयर्स ].           


यही है आज के समाज  की अधिकाँश मानसिकता  आज नए युग में अनेक प्रतिउत्तर है युवा के पास अनेक तर्क है और पिछले २० वर्षों से इन्हीं तर्कों को सम झा. ती शैक्षणिक  पद्धति है शायद यही है विकास |
मेरे दोस्त एक वर्ग आज भी  मेरे तर्कों से सहमत हो सकता है बस प्रेम के स्वरुप में इन बातों का ध्यान अवश्य रखें

 

  • प्रेम का आशय राग है जिसमें क्रियाओं का महत्व नहीं वर्ण आत्मा की कशिश का महत्व है 
  • ज्ञान  स्तर  विवाह और प्यार यह क्रम आपको सफलता या असफलता के बिंदु पर लेजायेगा इसका क्रम कैसे भी नहीं बदला जा सकता | 
  • प्रेम का आशय व्यवसाय नहीं होना चाहिए | 
  • प्रेम को समर्पण  की परा काष्ठा है परन्तु सहज ही उसका विशवास करने से पूर्व उसकी कठिन परीक्षा करें | 
  •  जीवन में अपने उद्देश्य और अपने मार्ग सु निश्चित करें और अपने उद्देश्यों से प्यार करने वाले सफल ही होते है 
  • जीवन में हर अजनबी के साथ बहुत से प्रश्नों के साथ मिलें जीवन में धोखे कम हो 
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