सफलता के अनेक मार्ग है --मन को एकाग्र करें

बहुत सी विचारधाराएं है ,बहुत सी क्रियाएँ है, और बहुत से माध्यम है सफलता के, बहुधा हम ऐतिहासिक विचारधाराओं  से सीख लेकर चलने का प्रयत्न अवश्य  करते है परन्तु न वैसा बन पातें है ,और न ही अपनी मौलिक सोच और आदर्शों को ही बचा पाते  है ,परिणाम कुछ करने की ललक के जाल में हम और अधिक तृस्त होते  जाते है फिर बहुत से उद्देश्य बनाते है छोड़ते है और  जीवन को इसी प्रकार निकाल कर दुखी होते  रहते है कि हम कुछ अच्छा क्यों नहीं कर पाये |

समय ,पृकृति ,और सम्पूर्ण ब्रह्मांड गतिशील एवं परिवर्तन शील है और हमारा परिवेश हमारी सोच और समस्याएं भी नित्य बदल रही है और उनके अनुरूप है हमे भी परिवर्तन स्वीकार करना होगा यदि हम समय कि दौड़ के साथ अपने विचारों ,संस्कारों और क्रियाओं में समयानुरूप परिवर्तन नहीं करपा रहे  है तो हम अपने को अनपढ़ ही माने शिक्षित होने केवल यह प्रमाण है कि आप समयानुरूप स्वयं में परिवर्तन कर के समय के अनुसार उपयुक्त ज्ञान प्राप्त करते रहें  |

माता पिता एवं अधिकाँश पालक  अपने बच्चों  को अपनी मति और सुविधा के अनुसार वो मार्ग देना चाहते है जो उनकी नजर में ठीक है उनपर इनके तर्क भी होते है , बाप दादाओं की बड़ी वकालत कि लाइब्रेरी कौन देखेगा ,पीढ़ियों से खुला अस्प्ताल बंद करदें क्या, और ऐसे ही  अनेकों तर्क , आशय यह कि वे अपनी संतान को अपने अनुसार  ही विकसित होता देखना चाहते है ,संतान कि इच्छा क्या है , उसमे क्या योग्यताएं है उसकी क्रियान्वयन कि दिशा कहाँ सफलहोसकती है इन बातों का उनके लिए अधिक महत्व नहीं है| 


यहाँ केवल एक हुल है और कुछ विचार है जिसके अनुरूप सफलता सहज पाई जा सकती है

 

ऐतिहासिक महापुरषों कि जीवनियां ,कार्यपद्धति और  आदर्शों  के पालन में समय नियम और जिस राष्ट्र में रहते है वहाँ के क़ानून का पालन करना नहीं भूलें ,आज जब राष्ट्रपिता और रामकृष्ण विवेकानंद तथा हजारों ऐसे ही महा पुरषों का नाम आगे रख  कर जब हम कोई स्वार्थो से प्रेरित बात करते देखते है तो शायद हम उनसे वो समर्पण नहीं सीख पाते जो हमे सत्य दिशा दे सकें , जिससे हम केवल उनका नाम न लेकर उनके आदर्शों को आत्मसात करें | 
अविभावकों को युवा की योग्यता और उसकी सोच के अनुरूप  ही आदर्शों का चयन   करना चाहिए नहीं तो बार बार अपने उद्देश्यों के परिवर्तन से सफलता में संदेह उत्पन्न हो सकता है | क्योकि जीवन में सबसे कम यदि कुछ है तो वह समय ही है | 
समय के अनुसार  शिक्षा ,तकनीक और समाजार्थिक परिवर्तन हो रहे है उनका समयानुरूप  भी युवा के लिए आवश्यक है | 
उद्देश्य का निर्धारण एवं प्रतिदिन हम उसके लिए कितना कार्य कररहे है और क्या यह कार्य संतोष जनक है यह विचार नित्य ही करना होगा | 
महा पुरषों के जीवन से सीख अवश्य लें मगर अपना मार्ग स्वयं ही बनायें नहीं तो आप अपनी स्वयं की  पहिचान ही खो देंगें । 
जीवन में रिश्ते , सुख सुविधाएं और क्या अच्छा लग रहा है ,इन बहुत से विषयों का महत्व आपके उद्देश्यों  के सामने महत्वहीन है और भविष्य की  तमाम सफलता आपके सकारात्मक क्रियान्वयन पर निर्भर है | मन को
अपने उद्देश्यों के प्रति संकल्पित करके  नित्य उसे एकाग्र कर अपनी सोच के प्रति संकल्पित करें आपको सफलता अवश्य मिलेगी |

Previous Post

आधुनिक नृत्य के विजेता माइक

Next Post

सीढ़ियों सी जिंदगी है हर कदम

Related posts

Comments0

Leave a comment