जीवन के अध्याय में सॉरी नहीं होता

आदमी का स्वाभाव स्वार्थों ,लालच और अपने पराये में लिपटा रहता है 
फिर वर्षों की साधना और कठोर नियंत्रण के बाद वह अपने आप को परमार्थ 
सत्य और अहिंसा के मार्ग पर ला पाता  है  वहां यह प्रश्न अवश्य बना रहता है कि 
हम कितना सफल हो पाए और यही निर्णय करने में जीवन बीत जाता है

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