पसंद , प्रेम ,या योग्यता
जीवन भर आदमी के सामने यही प्रश्न रहता की वह सभी विषय स्थितियों में से श्रेष्ठ का चयन करे ,आरम्भ से ही उसके सामने यह सवाल खड़ा होता है कि वह अपनी अच्छी लगने वाली चीजों को देखे प्रेम देखे या योग्यताओं का मूल्यांकन करेओर इन्ही समस्याओं में घिरा वह अपने जीवन का बहुमूल्य समय यूँ ही गवां बैठता है
पसंद उसका अनुभव बताता है वह अच्छी ख़राब दौनों चीजों को पसंद कर सकता है, उसके जन्म लेतेही उसे पसंद ना पसंद का ज्ञान होने लगता है ,वह माँ के चेहरे दूध ओर शून्य की परिधि में भी अच्छा बुरा दौनों में भेद कर पाता है पसंद बहुत तरह कि चीजों में एकसाथ अस्तित्व में आ सकने वाली विषय वस्तु है बहुत से लोगो समूह ओर एकसाथ सबको पसंद ना पसंद किया जा सकता है पसंद परिवर्तन शील है उसकी तीव्रता में उतार चढ़ाव देखा जा सकता है ,ओर वह आदमी के अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है
प्रेम सदियों से अपनी परिभाषा खुद रहा है समय परिस्थितियों ओर समय की असामायिक मांग से वह प्रभावहीन ही रहा है वर्त्तमान परिवेश में उस प्रेम का स्वरुप वहीँ खड़ा है मगर आज हमे प्रेम के नाम पर जों परोसा जा रहा है वह प्रेम की मानसिकता से बहुत दूर केवल एक सौदा है ,जिसमे बहुत से मूल्यांकन कर्ता ओर अपने अपने मतलब से खड़े बहुत से स्वार्थी तत्त्व है जों अपने स्वार्थों के लिए हवस,उपयोग,ओर शोषण के लिए अलग अलग तरह से इस प्रेम शब्द का उपयोग कर रहे है
दोस्तों योग्यता अपने आपमें सबसे उपर की स्थिति है हम पसंद ओर प्रेम दौनों को ही इस कसौटी पर रख कर परख सकते है क्या यह प्रेम या हमारी पसंद इस योग्यता पर खरी उतरने लायक है अथवा नहीं यदि हमने इन स्थितियों को योग्यता की कसौटी पर परख लिया तो आपका प्रेम पसंद ओर योग्यता आपको शोषण ओर हवस के उपयोग का कर्क नही बनने देगी ओर जीवन अपने उन्नत शिखर तक अवश्य पहुच जाएगा
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