बदलते रिश्ते परिक्षा की घड़ी है
"जो आप पर था और जो मुझ पर नहीं था इसका कारक घमंड नहीं, ईश्वर था "
आप केवल उस कुत्ते की तरह गाडी के नीचे चलते हुए भरम पाले रहे कि गाडी आप से चल रही है
समय परिस्थिति और कालके अनुसार सब कुछ ही तो बदलता है तो हमारे अपने क्यों नहीं बदलते, रिश्ते परिवार अपने सब ही तो समय, उसकी प्राप्तियों और स्वतंत्रता के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है उन्हें अपनी उपलब्धियों कॉ घमंड और भविष्य के लिए नई योजनाओं से धन वैभव और संपत्ति की बड़ी कामना होती है और इसके लिए उनका दूषित मन किसी भी स्तर कॉ प्रयोग करने से नहीं हिचकता भले ही वो आगामी पीदियों को यही सिखाते सिखाते स्वयं उसका ही शिकार क्यो ना हो बैठे |
जब उपलब्धियों की बात चले तो यह भी बताना उचित होगा की ये उपलब्धियां जिस अतीत के सहारे है ,उसे हमने तिरस्कार और घ्रणा कॉ विषय बना डाला ,हमने क्या क्या दायित्व और अपनत्व पूरा किया उसके लिए, यह उनकी आत्मा ही जानती है ,परिवार का सहारा ,प्रेम ,अपनत्व ,और स्वतंत्रता ने हमसे वो भाव भी छीन लिए जो परिवार के किसी मुखिया को जीने कॉ संबल देते है ,जब हम किसी ऐसे आदमी को केवल अपने संसाधनों का ,आय और स्तर का अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए उपयोग करने लगे और सबसे निकटतम् लोगों से भीउसे परायापन ,आशान्ती और तिरस्कार मिलने लगे तो आप ही बताइये ऐसा इंसान क्या करेगा ?
जो कल बचपन में थे वो आज बड़े है और कल और भी बड़े होंगे और वे जो मूल्य अपने बच्चों को सिखा रहे है वेही मूल्य उनपर फिर लागू होंगे ,सम्पति ,धन, बल, और आयु किसी कॉ साथ नहीं देती, तो वो आपके साथ कैसे रह पाती, यदि आपने किसी का चैन सुख ,संतोष और शान्ति छीनी है तो आपको सजग होजाना चाहिए क्योकिं उस ईश्वर ने आपके भाग्य की रेखा में भी ऐसे विधानों को पैदा करना शुरू करदिया है जो आपको आपकी हर मानसिक वाचिक और कर्म के अनुसार दंड देगा| आपको हिसाब देना होगा हर रिश्तों की दरार के कारण में केवल आप ही तो थे ,और वो फ़र्ज़ आपने दुश्मनों की तरह निभाया है |प्रकृति का न्याय बहुत बेरहम होता है उसमे क्षमा होती ही कहाँ है ,आप यदि कुछ अच्छा करे तो एक शक्कर मिलाये यदि ख़राब करें तो एक चमच्च मिर्च मिलाये ध्यान रखें की यह आपको ही पीना है |यदि आपने कुछ अच्छा किया ही नहीं है तो आप कैसी शान्ति और सुख की उम्मीदकैसे कर सकते है |
समय धर्म और विरासत बहुत बड़ा जबाब है इन सबका हमे यही चाहिए कि धन वैभव ,संपत्ति ,और अपनी स्वतंत्रता के लिए उतना ही विचार करे जितना आवश्यक हो ,बहुत से लोग करोड़ों की जायदाद पर बैठ कर भी और, और, चिल्लाते रहते है उमकी तृष्णा एक रेतीले कुँए जैसी हो जाती है जिसमे जितना पानी डाले वह सूखा का सूखा ही रहता है ,समय का निरतर प्रवाह बहता रहता है ,प्यास और बढने लगती है रूप, योवन , उनके अपने भी यही सीख कर वैसे ही होने लगते है, और प्रयाण कॉ समय आजाता है |सब कुछ रह जाता है यहीं जिस जिस के लिए हम घमंड कर रहे होते है वह सब हमारा होता ही नहीं है, ये बात हम बहुत देर से समझ पाते है |जिस धन वैभव और संपत्ति ने आपके अपने छीन लिए हो, जो आपकी अशांति कॉ कारण बनी हो, जिसके लिए आप अपने सबसे बड़े दायित्व को भूल गए, जिसके कारण आप आपने आदर्श खो बैठे , जिसने आपसे विशवास, सब्र और संतोष सब छीन लिया, और जो आपका दुर्भाग्य बन गया, ध्यान रहे इन सब का उत्तर आपको ही देना है, एक जन्म में नही, बहुत से जन्म भी आपके इन कर्मों को पूरा नही कर सकते, शायद कर्ता आप नहीं वो परमेश्वर था जिसने ब्रह्माण्ड बनाए थे |
जिसका अतीत श्रेष्ठ था उसका वर्त्तमान अच्छा हुआ, जिसने वर्त्तमान को तिरस्कृत और अपमानित किया उसका भविष्य शांत कैसे हो यह प्रश्न चिह्न है |धर्म कहता है कि आप दूसरे के बारे में कभी स्वप्न में भी ऋणात्मक न सोचे ,अपने बच्चों को द्वेष और अनादार्शों कॉ पाठ न पढाये, आप भी उस परमेश्वर के नीचे है जो सब का निर्माणक है ,आपकी हर क्रिया की १०० गुनी प्रतिक्रया परमात्मा लिख रहा है ,आपके पास जो कुछ भी अपने घमंड के लिए है वो परमात्मा ने ही दिया था और जो जिसपर नहीं है वो परमात्मा के कारण ही नही है व्यर्थ गर्व करके आप उसकी कृति को कलाकित कर रहे हैं | आप अपने कर्मों से ही अपना परलोक बना रहे है जिसका हिसाब आपको यहीं देना होगा |
शेष फिर
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