कम्पुटर.फ्रेंड्स और फ़ोन

युग की मान्यताये बदलती रही। परिवार अपनों से और समाज से प्रत्याशा करता रहा की उनका व्यव्हार कार्य एवं क्रियान्वयन संस्कारों के अनुरूप विकास और सुख की ओर हो। शान्ति सौहार्द और अपनत्व की महक से परिवार एवं समाज सुगन्धित हो, तो ही निश्चित तौर पे जो अंकुर प्रस्फुटित होंगे वे कुलमर्यादा एवं राष्ट्र की अतुलनीय धरोहर माने जायेंगे। भारतीय संस्कृति और उसके प्रतिमान यह प्रतीक्षा करते रहे की उनके कुल की प्रगतिशील युवा आदर्शों और मानदंडो के उच्चतम शिखर पर रह कर अपना एवं राष्ट्र विकास कर सकें। हजारों साल की धार्मिक, संस्कृतिक एवं सामाजिक मान्यताओं और विकास क निर्देशों के अर्न्तगत युवा का विकास उस क्रम में हो जिससे इन् सब का संवर्धन हो सके तथा अपूर्व मानसिक संतोष के साथ निरंतर विकास दिखता रहे, मगर भारतीय संस्कृति समाज और धर्मं की उन् मान्यताओं को हार का मुहँ देखना पड़ा क्यूंकि युवा के बदलाव ने पाश्चत्य संस्कृति के सामने इन्हे बौना साबित कर दिया।

परिवर्तन के इस दौर में जो नई संस्कृति पैदा हुई उसमें युवा ने कंप्यूटर, फ़ोन और फ्रिएंड्स के वातावरण को प्रश्रय दिया। उसने अधिकाधिक समय इन पर व्यर्थ गवांते हुए अपने सुख और संतोष की आशा की। उसे यह लगा की यह सही समय का उपयोग सुख की पराकाष्ठा एवं अपनी पहचान का सशक्त माध्यम है। शय्स इन सब के साथ उसे नई पहचान और दीर्घकालीन सुखानुभूति मिल सके मगर थोड़े ही समय में समाज और परिवारों में कलह, अशांति और प्रतिदुंदी भाव तेज़ी से बढ़ने लगे। उसका विकास, शान्ति और सुख बनावटी बन गया। कंप्यूटर का प्रयोग उसने धनात्मक स्वरुप से हटा कर अपनी दबी और पीसी मान्यताओं का माध्यम के रूप में किया। वहीँ फ्रेंड्स संस्कृति ने गहरे रिश्तों और भावनाओं को दर किनार कर के स्वयं को श्रेठ जताने की चेष्ठा की, जब की सत्य यह था की जो जितना बड़ा फ्रेंड बनने की कोशिश करता था वह उतना ही बड़ा स्वार्थ लिए खड़ा था। तीसरी ओर फ़ोन, मोबाइल का प्रयोग अपनी कुंठित मानसिकताओं को पूरा करने में लगा दिया गया। इन सब के दुष्परिणाम जल्दी ही सामने आने लगे, और हमारे सपनों का युवा मानसिक तौर पर विक्षिप्त सा दिखाई देने लगा। उसका मानसिक दिवालिया पन इस हद पर बढ़ा की उसने अपने एहम रिश्तों को भी प्रतिद्वंदी बना डाला। बोझिल, हताश और उदासीन जिंदगी ने उसके सारे मार्ग अवरुद्ध कर दिए।

कंप्यूटर , फ़ोन और फ्रेंड्स की संस्कृति ने उसके जीवन में जो परिवर्तन किए वह निम्नवत हैं:-
१। उसने समय का दुरूपयोग अपनी कुंठित मानसिकता के लिए किया जो बाद में उसे दीर्घकालिक सुख नही दे पाया।
२। खाली समय का प्रयोग शारीरिक वासनाओं और ऋणात्मक सोच का विषय हो गया।
३। उद्देश्यविहीन जीवन ने उसकी दीर्घकालिक शान्ति पर प्रश्न चिन्ह लगा डाला।
४। झूटी प्रशंसा और झूटे संबंधों ने संबंधों की पवित्रता ख़त्म कर के उन्हें मशीनी स्वरुप दे दिया।
५। स्वास्थय के शोध ने कंप्यूटर और फ़ोन के प्रयोग से अनेक रोगों का सम्बन्ध बताया मगर भावावेश एवं अधिक उत्तेजनाओं में इस युवा ने उसे अनदेखा कर दिया।
६। विकास और मर्यादाएं टूटती रहीं और परिवार उनके लिए बार बार दोषारोपित होता रहा।
७। सत्य, आदर्श और सम्मान व्यथित होता रहा, झूट, फरेब और क्रोध दिखाई देता रहा।
८। उसके विकास, सुख और गतिशीलता ने मानसिक विक्रतता का रूप धारण कर लिया, जिसका सम्बन्ध सामायिक आपूर्तियों से था।

-- सार स्वरुप जो निष्कर्ष सामने आया वह अधिक महत्वपूर्ण था |युवा सोच में पचात्य संस्कृति ने जो फ्रेंड संस्कृति दी थी वह आधार रूप से उसकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार थी. भारतीय संस्कृति ने पूर्व मे स्पष्ट किया था 'एकला चलो रे 'अर्थात जीव अकेला उत्पन्न हुआ है और उसका अन्तिम उद्देश्य आत्मा के सुख से है | जब आज का युवा इस त्रासदी मे है तो आवश्यक यह है की वह पुराने मूल्यों से शिक्षा लेकर नए युग की सोच के साथ बढे, उसके तमाम व्यवहार से स्वार्थ और अल्प कालिक सुख की जगह आत्मा का आनंद अधिक महत्वपूर्ण तथ्य है उसके निराकरण के लिए निम्न बिन्दु महत्वपूर्ण है |

१ क्रोध जल्दबाजी और झूठ आपके व्यक्तित्व को पापमय और कमजोर बनाते है जिन रिश्तो के आधार फ़ोन, कंप्युटर और धोखेबाज फ्रेंड्स हो उन्हें बार बार परखना चाहिए |
२ अपने आदर्श शारीरिक आपूर्तियों के लिए न होकर जो स्वयं सत्य और पुरातन हो होने चाहिए अन्यथा वासनाओं को आदर्श का नाम देकर अपनी संतानों को हम यही उत्तेजनाये दे रहे है |
३ जीवन का उद्देश्य जरूर बनाये और उसे याद रखे रोज यह सोचे की हम उसकी आपूर्ति में कितना समय लगा रहे है अन्यथा जीवन हमारी सारी शान्ति चीन लेगा |
४ अपनी झूठी प्रसंशा और अपनी बनावटी पहचान ढूढ़ते तुम व्यथित हो मगर जो तुम्हे प्रसंशा और पहचान दे रहे है वे स्वयं हैवान शैतान और अपनी ही नज़र मे निकृष्ट है आप कितने बड़े बन पाएंगे कितना सुख कितने समय तक ले पाएंगे ये प्रश्न चिन्ह ही रहेगा |
५ अल्प शारीरिक आपूर्तियों और अधूरे सुख के लिए आप जिन अपनों और अति सवेदनशील रिश्तो की नीलामी लगा रहे है उन्हें प्रतिद्वंदी समझ रहे है शायद समय आपको यही मान्यताये ब्याज सहित वापस कर देगा यह ध्यान रहे|

मर्यादाए नियम और सांस्कृतिक मूल्यों का खून करके आप में वो गुण पैदा होरहे है जो भावनात्मक सोच से परे केवल स्वयं को अति स्वार्थी जानवर के रूप में प्रस्तुत कर रहे है और वैसे ही रिश्तो की सोच तुम्हारा विषय है तुम्हे आदर्श इंसान बनाना था |

कठिन परिश्रम नियत उद्देश्य मर्यादाओं का जीवन सम्मान और हर व्यवहार मे खुशी बाटना तुम्हारी समस्या से तुम्हे छुटकारा दिला सकता है मगर इसके लिए तुम्हे झूठे संबंधो की बलि और सत्य का सहारा लेने की आवश्यकता है 

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