सर्वोत्कृष्ट एवं निकृष्ट (superior and inferior )
हितेश के जन्म पर हजारों डिब्बे मिठाई बाँट दियेगये थे ,सारे नगर से बधाई आने लगी थी ,सारे घर हर्षोउल्लास से भर गया था ,गोरा चिट्टा गोल मटोल सुन्दर बच्चा हुआ था सेठ हजारी लाल के ,यह दूसरा पुत्र था उनके ,नगर सेठ की पदवी थी उन पर और फिर इन के परिवारों में लड़का पैदा होने की ठसक ही बहुत थी | उसके ४ वर्ष बाद हुई थी हिमानी घर में कोई ज्यादा उत्साह था नहीं था , बस एक रस्म अदायगी और कहना यह कि अब भाई को राखी बांधने वाला भी तो होना चाहिए , समय की गति और चक्र का पहिया तेजी से घूम रहा था , हिमानी अब स्कूल पास करके कालेज में पहुँच गयी थी बड़े भाइयों में एक तो हायर सेकेंडरी के बाद पढ़ ही नहीं पाया , दूसरे ने जैसे तैसे डॉक्टर बनने के चक्कर में बीएससी थर्ड क्लास से पास अवश्य कर ली थी | माता पिता और सारा परिवार बस यही समझाता था हिमानी को कि पराये घर जाना है चौका चूल्हा सीख ले , छोटी हिमानी ने गजब का सब्र पाया था वो जानती थी कि घर के नए कपडे भाइयों के लिए होते है , अच्छा खाना, तफरीह , और ऐशो-आराम पर बेतहाशा पैसे उड़ाना भाइयों का ही काम है ,उसे तो केवल जो मिलजाए उसमे सब्र करना चाहिए या रोकर अपने आपको समझा लेना चाहिए , महा पुरषों की जीवनी और जीवन में सत्य की खोज ने उसे एक सूत्र जरूर दे दिया था कि कठिन परिश्रम और सकारात्मक विचार उसे उस गंतव्य तक अवश्य लेजा सकते है जिसकी चाह आदमी करता है |
पिता भाइयों को अपने स्टैण्डर्ड बनाये रखने के लिए १०-१५-हजार रु प्रति माह देते थे ,फिर भी वो कम ही पड़जाते थे, कई बार क्लेश हुआ था इस बात पर, घर में माँ और हिमानी सहमे से बैठे रहते थे , भाई पिताजी से खूब लड़ते थे और पिता जी बहुत कुछ चिल्ला कर , रोकर उनकी जिद पूरी कर देते थे ,बड़े पुत्र ने एक बार तिजोरी से १० लाख रु निकाले और वह घर से भाग गया , पूरे घर ने क्रोध किया चिल्लाये और २० दिन बाद माँ के खाना न खाने और रोते रहने के कारण उसकी खोज चालू की गई और ३ माह बाद वो लुटापिटा सा घर लौट आया , पूरे घर में कोहराम था बंटवारा करों नहीं तो कल यह और रु चुरा लेजायेगा १माह चला था वो क्लेश और अंततः पिता ने बंटवारा करदिया था दौनों को दूकान का आधा आधा भाग देदिया गया, सारे माल के भी हिस्से करदिये गए ,घर के दरवाजे रसोई सब अलग होगये ,हिमानी पिताजी और माँ अपनी दुर्दशा में अकेली बेसहारा रह गए ,दौनो भाइयों ने पिताजी से सम्बन्ध ख़त्म करलिए थे, उनका कहना था उन्होंने अन्याय किया है बंटवारे में , माँ रोती रहती थी समस्या यह थी कि अब बेटी की पढ़ाई और शादी कैसे होगी ,सारे रिश्तेदारों ने सम्बन्ध तोड़ लिए थे कही हम उनसे पैसे न मांगने लगें |पिताजी बिलकुल गुमसुम और मनोरोग के शिकार हो गए थे, मानो किसी जागृत नरक का निरीक्षण कररहे हो जिसका निर्माण खुद उनसे ही होगया था, उसके पश्चाताप और निराकरण की असफल खोज में |
सबसे ज्यादा बोझ ,छोटा , हीन और तुच्छ समझी जाने वाली हिमानी के कन्धों पर उन पितामाता का दायित्व आगया था, जिन्होंने अपने बेटों के लिए जीवन भर उसे न केवल हेय दृष्टी से देखा, बल्कि समय समय पर उसकी न्यायोचित जिद पर भी जानवरों जैसे पीटा था ,भाइयो के बराबर हक की जिद में वो सबसे ज्यादा पीटी गई थी ,आज हिमानी समझ गई थी , वास्तव में जो भाई स्वयं को सुपीरियर बताते रहे वो थे नहीं और उसपर केवल एक दायित्व है कि, उसे अपने मातापिता को सम्मान दिलाना है | ,, एम् ए इंग्लिश केबाद एक आई. ए.एस. कोचिंग में पढ़ा रही थी हिमानी ,जैसे तैसे घर का खर्च चल ही जाता था २० हजार रु मिलते थे ८ घंटे में ५ व्याख्यान होते थे और बाकी समय हिमानी खुद क्लास अटेंड करती थी , रात दिन की पढ़ाई मेहनत और लगन ने उसे केवल एक लक्ष्य दे दिया था की उसे स्वयं को सिद्ध करना है ,उसने विवेकानंद, आइन्टीन , सुकरात , और हजारों विचारकों के दर्शन से यह पाया कि जीवन का आशय यही है कि आप अपने आदर्शों के चरम पर पहुँच कर जीवन समाज और संस्कृति को नया आयाम दे जाएँ ,उस कठिन डगर में आप बोर होना बुरा लगना ,मन नहीं लगना आदि की अनावश्यक स्थितियों से दूर एक लक्ष्य के लिए संकल्पित रहजाते है जिसमे आपका लक्ष्य भर होता है |
आज फिर आने वाला था आई ए एस परीक्षा का रिजल्ट एक मित्र ने पूछा हिमानी रिजल्ट आने वाला है क्या सोचती हो आप, हिमानी ने गम्भीर स्वर में कहा, देवेश मैंने तो परीक्षा देकर अगली परीक्षा की तैयारी फिर चालू कर दी है, क्योकि मुझपर समय और विकल्प दौनो ही नहीं है, मित्रने कहा दोस्त आप मेरिट में फर्स्ट आयी हो ,आपकी साधना को ईश्वर ने स्वीकार कर लिया है ,धन्यवाद ज्ञापित कर हिमानी उठी और उसने अपने माता पिता के पाँव छुएं और रोती रोती अपने कन्हैय्या के कमरे में भगवान् के सामने आकर बिखर गयी ,भगवान् की मुस्कुराती मुद्रा मानो यह कह रही हो अरे पागल तू ही तो है सुपीरियर , और हर पल मैंने तुझे जो सकारात्मक भाव ,जो तेरे मन को मैंने दिए , वही तो मैं था , बेटा ये एक कर्म छेत्र की सफलता है ,अभी आगे विराट तक जाना है ,तुझे और हर नकारात्मक भाव में जब तू मुझे सहारा बनाकर पुकारेगी ,तब मैं साहित्य ,परामर्श ,स्वप्न के रूप में तुझे रास्ता अवश्य दिखाऊंगा ,पुत्री मेरे लिए एक अर्जुन ही क्या, मुझे हर रोज उस भक्त की खोज करनी होती है जो पूरी निष्ठां से अर्जुन की भाँति , मुझसे प्रश्न पूछता है ,मैं किसी को भी साधन बनाकर, उसको उत्तर देता हूँ और कार्य की प्रेरणा बनता हूँ ,माँ, पिता ,और एक भीड़ उसके कमरे में आगई जोर जोर से बधाइयाँ दीजाने लगी |
जीवन ऐसा ही विचित्र है, यहाँ हम जिसपर गर्व करते है ,वह हमारा नहीं होता, हम जिसे अपना समझने की भूल करते है ,वह स्वप्न सा जान पड़ता है, हर सम्बंध, हर रिश्ता ,केवल अपने अपने लालच से हमसे जुड़ा होता है ,जिनके लिए हम सर्वस्व दांव पर लगाए रखते है, वे भी एक पल में अपना रुख बदलकर खड़े होजाते है, क्योकि उन्हें यही डर रहता है ,कही ये हमसे कुछ मांग न ले या उन्हें यह विश्वास होजाता है कि अब इनपर लूटने के लिए कुछ बांकी रह ही नहीं गया है, वस्तुतः संसार का यही नियम है, कि शक्ति के संचालन के केवल एक शक्ति ही कार्य करती है , समाज राष्ट्र और संस्कृतियों को दिशा देने वाली शक्ति भी एक ही होती है और उसे समझना ही जीवन को प्राप्त करना है |
मनुष्य नितांत खोखला ,अधूरा और अपूर्ण ही है जन्म से वह अबोध ,बेसहारा और अप्रिय ही होता है मगर समय समाज और प्रकृति की शक्तियां उसका सकारात्मक निर्माण आरम्भ करती है , वह अपने अबोध काल में हर परिस्थिति से लड़ना , संघर्ष करना , रोरोकर अपनी परिस्थिति को व्यक्त करना सब सीख़ लेता है मगर इस समय उसमे बोर होना , अच्छा न लगना ,नैराश्य , ग़म ,धोखा ,और झूठ फरेब कुटिलता जैसे व्यवहार होते ही नहीं है ,हम बड़े होने के साथ जो हम पर है नहीं उसे अपने में आरोपित करने में लग जाते है ,मतलब यह कि आवरण पर आवरण और अपने को सुपीरियर बनाते बनाते स्वयं ही ख़त्म होजाते है ,अपने व्यक्तित्व से अपने कृतित्व से अपने संस्कारों और आदर्शों से स्वयं शून्य होजाते है , फिर सुपीरियोरिटी के लिए किये प्रयास जीवन भर उसे कॉम्प्लेक्स ही बनाये रखते है और जीवन से सकारात्मक ऊर्जा स्वतः ख़त्म होजाती है |
लक्ष्य तो जीवन का मनोबल है आप जब भी जीवन के हर आते हुए समय को लक्ष्य से नहीं बांधेगे तो जीवन आपको अपनी नकारात्मकताओं सामने खड़ा करदेगा ,हर रोज आप एक नया विकल्प ढूढेंगे और हर बार आपके पास कोई ठोस योजना होगी नहीं ,समय के महत्व और भविष्य की कल्पनाएं आपकी अकर्मण्यता के सामने समस्या बनी रहेंगी और आप समस्या , मन , बोरियत , अभाव और अन्याय का रोना रोते रहेंगे ,मगर इसके मूल में केवल यही सत्य रहा कि आपके पास भविष्य के लिए कोई सकारात्मक विचार , योजना ,लक्ष्य नहीं था और आप यह सत्य जानिये कि बिनालक्ष्य का जीवन उस मृतप्रायः जीव की तरह है ,जिसका शव तक विषाक्त होगया है ,और जो किसी को जीवन देने के योग्य नहीं रहगया है |
लक्ष्य के साथ प्रयत्न का संकल्प अवश्य करें , मित्रों समय सबसे बहुमूल्य और कीमती चीज है जीवन में और उसे यदि जीवन के हित सार्थक उपयोग में लाना है ,तो आपको लक्ष्य और सार्थक प्रयत्न के संकल्पों का सहारा अवश्य लेना होगा ,क्योकि ध्यान रहे की आप जिस जीवन की नाव को लेकर चल रहे है ,उसकी पतवार किसी और के हाथ है, आपके पास केवल एक विचार है कि आप उसका सकारात्मक उपयोग कर सके तो सफल ,अन्यथा आपभी ९९%जन सैलाब की तरह रहजायेंगे जिसके पास केवल भौतिक वादी सोच रही ,उसका आंकलन केवल धन ,बिल्डिंग , जमीन जायदाद से सम्बंधित रहा, वह यह भूल ही गया कि इन सबके प्रयोग के बाद जीवन फैसला करेगा कि यह तमाम समय आपने केवल व्यर्थ के कामों में व्यतीत किया है ,इससे मन के संतोष आत्मा की शान्ति से कोई मतलब ही नहीं है और जीवन आपको असफल सिद्ध कर देगा |
निम्न का प्रयोग अवश्य करें
सुपीरियर ,इन्फीरियर दौनो ऋणात्मक विचार है और दौनो को अपनाने वाला अपने आपमें खोखला पन लेकर जीवन को झुठलाने का प्रयत्न करता रहता है मगर एक दिन वहीजीवन उसे नाकारा सिद्ध कर देता है |
स्वयं को और कुछ बताना छोड़ दें ,जबतक आप स्वयं अपना साक्षत्कार करके अपने आपको स्वीकार नहीं कर पाएंगे ,तबतक आप अपने आपको कभी कुछ कभी कुछ बताते ही रहेंगे |
स्वयं से और अपने गुरु से जो असत्य और झूठ बोलने की प्रक्रिया में लगने लगते है उन्हें बार बार स्वयं के कार्यों के लिए ही पछताना होता है ,अतः स्वयं से और गुरु से अपनी हर त्रुटि को बताते रहे |
जीवन को बिनालक्ष्य के छोड़ने का मतलब यह है कि , आपको पतन के उस रास्ते पर लेजायेगा जहाँ से आपको सफलता के लिए शून्य से प्रयत्न करने होंगे |
भविष्य और वर्तमान को खराब मत बताओ कठिनाई , धोखा , हादसा इसलिए आपके सामने है कि आप एक नए मनोयोग से स्वयं को सिद्ध करने का प्रयत्न करें , सफलता आपको ही मिलेगी |
बोर , बेमन ,टेंशन ,नैराश्य , भय और ग़म इस बात का प्रतीक है की आपके सामने लक्ष्य पूरी निष्ठां से नहीं बना पाए है या उसके क्रियान्वयन में आपने कोई कार्य नही किया है और आप ईश्वर पर कोई विशवास नहीं करते है यदि आप स्वयं को इन सकारात्मकताओं से सजा लें तो ये नाकारात्मकताएं स्वयं ख़त्म हो जाएंगी |
न्याय के लिए स्वयं अपने परिश्रम और लक्ष्य पर निर्भर रहें यहाँ सांसारिक लोग आपसे लाभ उठाना , अपने को बड़ा बताने के लिए आपका प्रयोग और आपके शोषण से जुड़े है आपको अकेले ही मान दंड स्थापित करने है ||
सहारों की जरूरत गिरते हुओं को होती है आप स्वयं अपनी सकारात्मकताओं और उस सर्वशक्तिमान से स्वयं को जोड़कर अपने लक्ष्य बनाये और पूरी ताकत से उसे क्रियान्वित करें सारी सफलताएं आपको ही मिलेंगी |
स्वयं को कभी भी शक्ति हीन , अभावों में और समस्या में मत महसूस करें यही विचारकारें कि जीवन की हर समस्या में आपने अच्छे निर्णय और प्रयत्न करके जीत हासिल की है और यहाँ भी हम जीत हासिल करेंगे |
जो त्रुटियां जीवन ने हमे बताई है उन्हें दुबारा न करें , हर गलती से सबक लेकर आगे बढ़ने का संकल्प अवश्य करें जीवन की हर विजय आपकी ही होगी |
नकारात्मक , नैराश्य और क्लेषकारी व्यक्तित्व को अपने विचारों से निकाल दें अन्यथा आपकी हर विकास की सोच में आपकी क्रियान्वयन्ता को ये नष्ट भृष्ट कर देंगे ,वर्तमान , लक्ष्य , और सफलता आपकी यही सोच हो |
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