एक दिन सफलता तुम्हारी ही होगी
एक सत्य घटना
श्रेय का परिवार मध्यम ही था, दो बहिनें बड़ी थी शादी हो चुकी थी, तीन भाई और थे, उनकी अपनी अपनी दुनिया थी, पिता रिटायर ,माँ घर में ही काम काज करती थी और वह बहुत आधुनिकता के साथ समाज में उन्हें उनके काम के लिए काफी सराहना मिलती थी ,कम्प्यूटर का एक डिप्लोमा करने के बाद श्रेय और पढने का अवसर ही नहीं मिला ,शादी जबरन करदी गई ,दो बच्चों के साथ वह एक संघर्ष भरी दुनियां में अकेला था ,सबके साथ होते हुए भी, श्रेय ने एक कम्प्यूट घर में ही लगाकर कुछ कुछ काम चालू किया , परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी भी नहीं थी ,बस गुजारा चल जाता था । पूरे परिवार में सारे भाई अपने अपने कामों में लगे ,अपना अपना खर्च खुद उठा रहे थे पिता को जब तब जिसकी सहायता करनी होती थी करते ही रहते थे , कुल मिला कर सब एक साथ रहते हुए भी अपने अपने परिवारों के साथ सीमित आय में गुजारा कररहे थे |
श्रेय की उम्र भी ३० -३२ के करीब थी एक बच्ची और बच्चा था उसके पास आय के स्त्रोत दिन ब दिन खर्चों के सामने काम होते जा रहे थे परिवार के सदस्योंकी सहानुभूति भी अब ख़त्म हो गई थी खर्चा जीवन को उदासीन और नैराश्य के उच्चतम शिखर पर पहुँचा गया था , माता पिता को छोड़कर सब लोग उसे तिरस्कृत दृष्टी से देखते थे एक अन बोला अपमान सहा था श्रेय ने परिवारके सदस्यों तक से ,अकेले कम्प्यूटर से आने वाली आय बहुत कम पड़ने लगी थी ,, अनेकों उपाय और व्यवसाय किये उसने ,मगर सारे उपाय व्यर्थ हुए , साधन हीनता ने उसे अवश्य सिखा दियाथा कि अपने कम्प्यूटर के ख़राब होजाने पर उसकी मरम्मत खुद कैसे करे ,कैसे डाटा सेव करे, कैसे नष्ट डाटा को पुनः प्राप्त करे, और कैसे अपना काम बिना ज्यादा खर्च किये पूरा करें ,कैसे प्रोग्रेममिंग ,साइट्स बनाना और नया कार्यक्रम बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाए ,और कैसे हार्डवेयर का काम घर में ही करके कम्प्युटर को दुरस्त किया जाए , ये सब उसे उसकी साधन हीनता ने हीसिखाया और समझाया था ।
एक बार श्रेय परेशान होकर अपने गुरु के पास पंहुचा , बहुत परेशान और हारा हुआ सा ,उसने कहा अब मैं सब कुछ छोड़कर व्यवसाय करना चाहता हूँ , कोई कच्चा उत्पाद दिल्ली से लाया जाएगा और उसे पैक्ड करके घर घर बेचने का प्रयत्न करूंगा , वैसे पहले भी मैं कई व्यवसायों में असफल होता रहा हूँ ,गुरुने कहना आरंभ किया पुत्र आप अपनी समस्याओं से इतना प्रभावित हो कि आप अपनी कार्यकारी शक्ति का भी प्रयोग नहीं कर पा रहे है परिणाम सफलता भी प्रश्न वाचक होगी है , अब आप यह समझलो कि आप जिस कार्य में पारंगत हो उसमे ही काम चालूकरें आपको जो थोड़ा बहुत कम्प्युटर आता है ,आप उसकी ही कोई छोटी नॉकरी करो और स्वयंको सकारात्मक व्यक्तित्व में बदलो , हर आदमी आपसे बड़ा विद्वान और कुछ सीखने योग्य है ,इसे ध्यान रखना एक नया जीवन तुम्हारा इंतज़ार कररहा है |
ईश्वर का इतना शुक्र था कि श्रेय को दिल्ली में एक कप्यूटर कंपनी में ८००० रूपए माह पर नॉकरी मिलगई , कुछ समय बाद गुरुने कहा पुत्र आप अपने प्रयास जारी रखे इस प्रकार नई नोकरियों मेजाते हुए वह १२०००,१८०००,
२४००० , ४०००० ७०००० रुपयों के वेतन पर काम करता रहा और आज वह एक कंपनी का प्रमुख विश्लेषक है जिसका काम जटिलतम , नष्ट प्रायः कम्यूटर से डाटा निकालने का है, आज अनेक देशों की यात्रा करके स्वयं को सिद्ध कर चुका है हमारा श्रेय , परिवार समाज में उसका एक अलग और ऊँचा स्थान है
मनुष्य का उत्थान और पतन उसकी ही सोच का एक साश्वत परिणाम है, वह स्वयं को जैसा बनाना चाहता है उसमें उसकी सोच ,क्रियान्वयन ,एवम भविष्य और अतीतके विचार उसे प्रभावित करते रहते है , हर कार्य नियोजित और निश्चित प्रक्रिया में होना चाहिए ऐसा मानने वाले यह नहीं जानते कि , जब भविष्य की घटनाएं , उम्र , परिस्थितियां और भविष्य का हर पल अनिश्चित है और उसमे धनात्मक और ऋणात्मक चिंतन के दो द्वार है ,तो हर बार हम ऋणात्मकता के द्वार खोलकर कही स्वयं को नाकारा सिद्ध तो नहीं कररहे है ,यदि समय की मान्यता के साथ आपने स्वयं को धनात्मक आधारों पर सिद्ध नहीं किया तो आप सफलताको केवल एक स्वप्न मानकर व्यवहार करते रहेंगे और हर बार जब का ध्यान आएगा वह हमें मुंह चिढ़ाती दिखेगी, क्योकि हम अपनी सफलता के उद्देश्य से अधिक अपनी समस्याओं को महत्व देते रहे |
सम्पूर्ण परिस्थितियां सामान्य होने पर ही आप अपनी सफलता के उद्देश्य के लिए प्रयास रत होंगे, या सम्पूर्ण समाज कार्य क्षेत्र परिस्थिति सामान्य होजाने पर ही जीवन की विकास यात्रा चालू कीजाएगी, ये सारे विचार और जीवन को धोखा देने वाले है क्योकि जीवन कभी भी सहज और शांत होता ही नहीं है, हर रोज एक नया अध्याय अधिक प्रबल होकर अपनी परिस्थिति समस्या को पूर्ण करने की मांग करेगा और जीवन का आधार भूत उद्देश्य फिर हारने लगेगा, आपकी आवश्यकता यह हो कि आप पूरी कठोरता के साथ अपने आपको नियोजन के नियमों में बांधें ,साथ ही हर उद्देश्य के लिए विकल्प जरूर रखें, जिसने भी विपरीत स्थितियों में स्वयं को सिद्ध किया है ,उसे जीवन का पूर्ण संतोष अवश्य प्राप्त होगा, क्योकि अपने कार्य से मूल्यांकन में यदि सहज संतोष प्राप्त होना और किसी से शिकायत न होना ,ही इस बात का प्रतीक है कि , आप जीवन को भी सफल सिद्ध कर चुके है चुके है|
हजारों रुकावटें , अनिश्चितताएं , अज्ञात भविष्य ,और अपने ऋणात्मक आकलन के शिकार हम बहुधा अपने लक्ष्य के लिये ही बहुत सारी समस्याएं पैदा कर लेते है ,अपने आपको यह समझने का प्रयत्न अवश्य करें कि जीवन में जिन समस्याओं से हम स्वयं की क्रियान्वयनता ख़त्म करके खड़े होने को है ,वह स्वयं एक हार की निशानी है ,किसीभी हालात में अपने आपको दोषारोपित किये बगैर स्वयं को सिद्ध करना ही जीवन का सही मायने है ,अपनेआपको कृतसंकल्पित रखें ,एवं लक्ष्य की और बढ़ने का प्रयत्न अवश्य करें ,जिससे बाह्य ऋणात्मकता अधिक प्रभावित नहीं कर सकेगी |
लक्ष्य के साथ समाज अपने परिवेश से सामंजस्य बनाना भी अति आवश्यक है यदि आप अपने आस पास के लोगों से सामंजस्य स्थापित नहीं करना जानते तो निश्चिततः उनकी नकारात्मकता हम पर असर करने लगेगी रामतीर्थ से एक शिष्य ने पूछा कि एक मित्र मुझ पर थूकता है, गुरु ने कहा दूर हट जाओ ,वो फिर भी थूके तो ,और दूर हट जाओ वो और आगे आके थूके तो गुरु बोले पुत्र आपके पास आपका लक्ष्य है ,और वह मशक से तो थूक नहीं रहा है ,अपना सब्र बनाये रखो, उसकी गति विधि आपको अपने मन बुद्धि से हटा न पायी तो आपका सफल होना तय है ,अपने लक्ष्य का ध्यान और एक बड़े सब्र के साथ आपको अपना लक्ष्य अवश्य मिल सकता है |
निम्न पर भी ध्यान रखने का प्रयत्न करें
स्वयं को सकारात्मक रखने का प्रयत्न करें , किसी भी परिस्थिति में स्वयं को नकारात्मक न होने दें अन्यथा आने वाला समय भी उस नकारात्मकता का शिकार हो जाएगा |
जीवन में जिस लक्ष्य के प्रति हम संकल्पित है उसे हर परिस्थिति में पूर्ण करने का भाव रखे यह आपको अपने संकल्प में जीत अवश्य देगा |
स्वयं के लिए एक निर्धारित योजना अवश्य रखें और हर हाल में उसे पूर्ण करने का प्रयत्न अवश्य करें क्योकि यही योजना आपके समयबद्ध विकास को गति देगी |
लक्ष्य के क्रियान्वयन के लिए एक विकल्प अवश्य रखें जो अपरिहार्य स्थिति में आपको सिद्ध करने में अधिक महत्व पूर्ण सिद्ध होगा
सकारात्मक चिंतन करते समय दूसरों से स्वयं को छोटा सिद्ध करने का प्रयत्न न करें अन्यथा आपअपने लक्ष्य से भटक कर अपनी नकारात्मकता पर पहुँच जाएंगे |
अपनी सुविधा और अपनी रूचि के लिए अपने लक्ष्य से समायोजन नहीं करे ,आपयह जान लें की जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि स्वयं के लक्ष्य को पूर्ण करना ही है |
क्रोध एवं दूसरों का आंकलन बिलकुल नहीं करें क्योकि दौनों ही से आप अपने लक्ष्य से दूर होकर वैसी ही नाकारात्मकताएं पैदा करलेंगे जो सामने वाले में है |
नकारात्मकता और सकारात्मकता का भेद समय समय पर अपने जीवन मूल्यों के साथ परखते रहें जो हमे बहुत अच्छा लगता है वो हमेशा ठीक नहीं होता है |
गरीबी ,अभावहीनता , परिवार एवं जाति की निम्नता ,आपके मार्ग में बाधक नहीं हो सकती ,बशर्ते आप स्वयं का चिंतन सकारात्मक रूप में करसकें |
दूसरों की कमियां को दर्शाने का प्रयत्न न करें स्वयं उनकी आलोचनाओं से बचकर रहें इससे आपके व्यक्तित्व में सकारात्मकता स्वयं आने लगेगी |
आप दूसरों की दृष्टी में क्या है यदि यह सकारात्मक है तो आपके लक्ष्यों और उपलब्धियों में स्वयं सकारात्मकता आजायेगी |
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