खुश रहें जिनको परवाह नहीं थी किसी की

आइनों  की तरह कल गुजरता गया समय  धुंधली यादें चलचित्र की भाँति दिखता ओझल होता रहा, वो सब याद आता रहा  जो पीछे  छूटा  रह गया वो लोग जिनके सोने और जगने  का समय  मै  तय करता था नन्हें पावों को धूप  से बचाने   के लिए कई बार पाँव के  छाले झेले थे  मैंने कई बार पूजा के कमरे में  आग से बचाते हुए  जला था, मै जिसकी एक आह पर मैंने अपने सारे सुख छोड़ दिए ,जिसके होने स्वस्थ्य रहनेकी कामना और उसके तमाम भविष्य की एक एक कामना के लिए मैंने हर मंदिर मजार औरगुरूद्वारे ,चर्च को प्रश्न वाचक बना दिया था ,वो ही सत्य आज मुझसे मौन प्रश्न कर  रहा  है की मैंने उनके लिए किया क्या है, सभी तो करते है वो सब जो मैंने किया है औरमै  बेबस बेदम और निराश्रित सा एक ऊँची  सीडी पर खड़ा एक बड़े कांच के जार को लुढ़कता  हुआ देख रहा हूँ मौन हतप्रभ और ठगा सा मन यही कह रहा  है कि यह  या कांच बहुत पैना हैऔर इसे  मुझे ही उठाना  है क्योकि पैनी और धार  दार चीजें मुझे  सजोनी तुमसे  अच्छी तरह आता है क्योंकि मैंने काँटों के  बीच रहना आपसे ही सीखा है /यह मेरे जीने का अंदाज है जिसमे आशा उम्मीद सहारा और बलिदान का जज्बा मैंने इस समाज से ही सीखा है जिसके लिए मेरे अपने बधाई और साधू वाद के पात्र है /

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