विश्वास की सीमाएं और आज
आज आदमी का सम्पूर्ण कलेवर जटिलताओं झूठ ,फरेब, और कैसे भी काम निकालने की तकनीक का मायने बना खड़ा है,उसे केवल यह ध्यान है कि कैसे उसका काम सहजता से निकल जाए चाहे उसके लिए उसे कितना भी गिरना हो ,अनादर्शों पर चलकर खुद को सिद्ध करना हो उसे सब मंजूर है बस उसे कैसे भी लाभ होना चाहिए। शॉर्टकट ,सुपीरीओरिटी ,और हजारों कलेवर बदलने के बाद भी यदि उसे थोडा सा लाभ मिलने की उम्मीद दिखती है तो आप सच माने कि धर्मवादी अपने सारे धर्मों को ताक पर रख देता है गुरु अपनी सारी स्मिता भूलकर अपनी गुरुता खो बैठता है ,और सारे आदर्श सारे सत्य और सारे मानदंड धराशाही होजाते है और बार बार जीत होती है इस आधार हीन और खोखले व्यक्तित्व की जिसेहम सामान्य भाषा में प्रेक्टिकल कहते है।
दोस्तों ऐसे ही समाज में हम जीवन गुजार रहे है यहाँ हम उन्हीं लोगों से घिरे खड़े है जो किसी भी अर्थ में हमारे अपने नहीं हो सकते है उनका हमसे सम्बन्ध केवल इतना है कि हम उनके किस काम आ सकते है हम उनके हितों को साधने में जैसे ही अक्षम होते है उस समाज के लिए हम उसी क्षण नाकारा बेकार और व्यर्थ हो जाते है ,बुद्धि यह समझ नहीं समझ पाती कि अभी हाल में जो सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति था और अचानक उसका महत्व क्यों ख़त्म हो गया वह आलोचना का कारक कैसे होगया और उसे ही ऐसे प्रदर्शित किया जाने लगा जैसे उससे ज्यादा ख़राब कोई है ही नहीं , और हमारी विडम्बना यह कि हम इसी समाज में ऐसे अपनों के साथ अपने विश्वास को तौल रहे है ।
अब हमे अपने विश्वास को तौलना होगा की उसके उपयुक्त कौन है हर आदमी चाहे वह परिवार हो या समाज दोस्त हों या सहकर्मी या सहपाठी या सह यात्री सबके अपने अपने स्वार्थ् है और हर आदमी आपसे सम्बन्ध बनाने से पहले यह जानता है कि आप उसके किस काम के कितने समय तक उसकी स्वार्थ आपूर्ति में सहयोगी हो सकते है बस केवल उस समय तक वो आपके लिए अपने है और उस सीमा के बाद उनके लिए आप अस्तित्व हीन अनाकार बेकार हो ।
विश्वास की सीमाएं तय की जावें और यह ध्यान रहे की जीवन में आपसे गलतियाँ कम से कम हों ,आपका लक्ष्य केवल अपने तय कार्यक्रम जीवन के संकल्प और आदर्शों पर निर्भर हो आप एकला चलो रे की तरह अपने को आत्म केन्द्रित कर स्वयं को और अपने परिवेश को पूरी तरह से समझने का प्रयत्न अवश्य करें बदलती हुईं परिस्थितियों समाज और कार्यों की स्थिति पर नजर बनाएं रखे समाज और नवागंतुक के लिए हमेशा जल्दी राय न बनाएं ,साथ ही अपने सिद्धांत अवश्य बनाए और लाभ हानि की भावना से परे कड़ाई से उनपर अमल करें तो शायद इस नकारात्मक सामाजिक परिवेश से आप स्वयं को बचा कर अपने आपको सिद्ध कर सकें ।
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