स्ट्रीट लाइट बनो
हर कदम पर रौशनीकी उम्मीद है जों .जिसकी हर किरण दिशा ओर मार्गदर्शन करती है ओर अन्नत तक बिखरे पड़े मार्गों का पथ प्रदर्शन करती है ,जों मार्ग के हरेक पथिक को एक लाइट पार करते ही दूसरे की उम्मीद बंधा देती है शायद आदमी भी इसी मार्ग दर्शक का मायने होता तो कितना अच्छा होता समाज मेंफैली भ्रांतियों का निराकरण खुद आदमी ही कर देता द्वेष जलन ओर प्रतियोगिता स्वयं आदर्शों में बदल जाती ओर सम्पूर्ण मानवीयता एक आदर्श बन बैठती शायद इससे अच्छा मानव समाज कौन बना पाता जहाँ हर आदमी एक स्ट्रीट की तरह सहारा बन जाता सौन्दर्य हो जाता ओर पथ प्रदर्शक भी ,प्रतियोगिताएं सहयोग हो जाती ,ओर हर इंसान उतना ही महत्वपूर्ण हो जाता जैसा की एक अकेला स्तम्भ
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