गलतियाँ ओर सॉरी
आदमी क्या करे खता के सिवा
लोग नाहक खुदा से डरते है
जीवन में हर कदम पर हम अपने को गलत पते रहते है मन का अहम् हमे अपनी गलतियाँ स्वीकार नही करने देता वह हमें एक बनावटी परिवेश से जोड़े हुए बड़ा ओर पूर्ण बताने की कोशिश करता रहता है जबकि मन यह जानता है कि वह गलत है फिर भी दूसरों को समाज को ओर अपने आपको हम झुथियो दिलासा दिए रहते है कि हम गलत हो ही नही सकते ,दीर्घज काल में यही सब हमे नितांत एकांकी कार देता है ,अतीत मुंह चिडाने लगता है कि हम केवल अकेले ओर निरीह जान पड़ते है स्वयं को , ओर तब हम पर कोई विकल्प नहीं होता अपने को सुधारने का ।
आवश्यकता इस बात कि है कि हम जितनी जल्दी गलतियाँ करें उतनी ही शीघ्रता से उन्हें स्वीकार करें ,कोई भी इंसान हमारे दुःख का कारक हो ही नहीं सकता हम स्वयं उसके निर्माणक होते है जब कि बार बार हम स्वयं को श्रेष्ठ ओर दूसरों को गलत साबित करने में समय व्यर्थ गवाने के आदि हो चुके होते है।
शेष फिर
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