दोस्त बनाइये मगर सीमा और सावधानी से
दोस्तों के बारे में शायरों और कवियों ने बहुत लिखा कुछ आपके सामने है
दोस्तों ने दोस्ती में ग़म दिए है इस तरह
दोस्तों से दोस्ती का हक अदा होता नहीं ------
मेरे अपने मेरे होने की निशानी मांगे
आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे -------
जीवन इन सब के बीच अपनी पहचान ढूढता रहता है ,हम जब शरीर ,मन और समाज से कमजोर महसूस करनेलगते है तो सहारों की जरूरत होती है और फिर दोस्ती का चक्र शुरू हो जाता है ,एक अनुबंध ,एक पूरी तरह सेपेशेवर व्यवसायी की तरह |इस सम्बन्ध का आरम्भ स्वयं की कमियों के कारण हुआ था इसलिए जीवन भर हारजीत का आंकलन होता रहता है |हर आदमी अपने बारे में जो सोचता है केवल वही सत्य होता है ,दूसरे से तो वहसम्बन्ध इसलिए बनाता है कि वह उससे क्या लूट सकता है कमो वेश हम इसे ही दोस्ती कॉ नाम दे देते है ,फिरजीवन भर दोस्ती को कोसते रहते है |दोस्ती पवित्र और दुर्लभ विषय स्थिति है ,वह सब कुछ लुटा कर भी मित्र केलिए कुछ करने को तत्पर रहती है ,वह निर्विकार भाव से केवल देना जानती है ,वह उम्र समय परिस्थितियों से परेएक अलौकिक जगत कॉ आदर्श है |जिसमे शिकायत ,दोष ,और उथला पन है ही नही |और यही सत्य कि पराकाष्ठाभी है |जिसने जितना समझा वही उसकी परिभाषा बन गया और वह उससे अधिक उस दोस्ती कॉ माने समझ हीनहीं सका |दोस्ती कॉ आरम्भ विशवास कि पराकाष्ठा है ,वह जीवन और म्रत्यु से परे असीम शांती का विषय है |
जिस तथाकथित दोस्ती में छीनाझपटी हो ,जिसमे अपने अपने स्वार्थ हो ,जो केवल अनुबंधों पर आधारित हो, वहकिसीकी खुशी का विषय नही अपितु वह तो केवल अपराध बोध और पश्चाताप कॉ विषय बन जाती है |
जीवन में सच्चा दोस्त केवल ईश्वरीय विधान से सम्भव है ,जहाँ कोई कामना ,इच्छा और भाव ही नहो न शिकायतहो न महत्वाकांक्षा वहां तो केवल मित्र के लिए कुछ भी करने कॉ संकल्प होता है ,वह भी समर्पण कि सीमा तकमीरा ,सुदामा , सुग्रीव और अर्जुन इसके सटीक उदाहरण है | समर्पण कि पराकाष्ठा कोई विरला ही समझ पाता हैसामान्यत वह जिस समाज में रहता हैवहां केवल एक फ़र्ज़ अदायगी और अनुबंधों कि आपूर्ती ही सम्भव है औरवहां हर क्रिया के बाद केवल अपराध बोध और पश्चाताप ही होता है |
आधुनिक दोस्ती ने यदि सीमायें निर्धारित नहीं की तो हर पक्ष एक दूसरे को मतलब परस्त बताएगा ,फिर यहदोस्ती किस मतलब की हुई यह प्रश्न वाचक है |आज हम जिस समाज में खड़े है वहां आदमी को अपने से अधिकअपने इस तथाकथित्त दोस्त की चिंता है वह यही प्रयत्न करता है की वह अपने दोस्त से हार ना जाए |उसे इस सीमातक सोच को लेजाना होता है जहाँ यदि वह सफल ना हो तो कोई बात नहीं मगर किसी भी हाल में उसका दोस्तउससे आगे ना हो जाए |यह कामना कि मेरे बाद आपको कोई अच्छा नही मिलेगा ,भी तो बद दुआ ही थी न |कहनेका अभिप्राय यह कि केवल एकाधिकार ,अपूर्ण और स्वार्थों की पराकाष्ठा| फिर यदि में इसे दोस्ती नाम देता हूँ तोयह शब्द और शब्दार्थ दौनों कि ही तोहीन हुई न |
समय परिस्थितियों और प्रारब्ध के लेखे से यदा कदा सच्चे मित्र आपके संपर्क में आते है आप अपने ज्ञान चक्षुखोल कर दौनों हो प्रकार के दोस्तों में भेद करे ,सीमा तय करे और जीवन से आदर्श बटोरे |दोस्ती आपके लिए गर्वप्रसन्नता ,और धनात्मकता का भाव बनाए तो वह उचित है ,अनुबंध और मिलने के बाद जो सम्बन्ध अपराध बोधबन जाए ,उससे स्वयं को बचाकर नए आदर्श मित्र कॉ इंतज़ार कीजिये ,ये मित्र बनाने नहीं पड़ते ये तो पूर्व केसम्बन्ध निभाने को स्वत मिल जायेंगे इंतज़ार कीजिये | |
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