अपनी पहचान ढूढ़ने को भटकता इंसान
आज हम जिस समाज जिस व्यवस्था में खड़े है वहा हर कोई अपनी ही पहिचान के लिए परेशान दिखाई देरहा है यहाँ कवियों और शायरों की पंक्तियाँ अधिक सशक्त दिखाती है| " इस शहर में हर शख्श परेशान सा क्यों है "
"मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूढती रही "
अर्थात हम कुछ न कुछ ढूढ़ ही रहे थे जो हमारा तमाम संतोष सब्र और खुशी छीन रहा था उसकी परेशानी ने जीवन को पूर्ण भाव से जीने नही दिया था |हर आदमी आज समाज में अपने से अधिक दूसरे की चिंता में दिखाई दे रहा है ,वह हर बात पर दूसरे से तुलना और स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होड़ में है ,वह किसी के कार्य ,स्तर और संप्रभुता को मानने को तैयार नहीं है, उसे केवल यह फिक्र है कि वह सर्व श्रेष्ठ हो ,वह किसी को इस दौड़ में आगे नहीं देखना चाहता |समाज राष्ट्रों और सभ्यताओं में इसी प्रकार की गलाकाट प्रतियोगिता चल रही है परिणाम यह कि कोई भी विजय सुख में दिखाई नहीं देरहा है ,और हम दिन ब दिन अपनी ही ऋणात्मक सोच का शिकार बन बैठे है |हम आत्म प्रसंशा के दल दल मे फ़सतें जा रहे है ,हम पर दूसरों की उपलब्धियां नगण्य रूप मे और अपनी बनावटी उपलब्धियां शेखी बघारने के स्तर तक है ये बात और है की वो हमारी आत्मा की नजर मे ही हीन हों |
यह सत्य है कि किसी धनात्मक भाव पर विचार करने के लिए धनात्मकता कि जरूरत तो चाहिए ही न ,हमे समाज को वही सोच देनी होगी जो हमे अपने लिए चाहिए |आज जब हम अपना आंकलन करते है तो हमारे सामने बहुत से आदर्श होते है मगर जब हम वो स्थान पा जाते है तो वे आदर्श हमें अपने सभी छोटे लगने लगते है, यही सोच हमें शान्ति और सुख से दूर लेजाती है |आज जब शिक्षा कार्य क्षेत्र और राष्ट्रों मे हर बात की होड़ लग रही है तो हम दूसरों पर विचार करने की बजाय अपने व्यवहार कार्य और हुनर को और परिष्कृत करने की फिक्र करें ,दूसरों को अपने आदर्श और प्रसंशा का विषय बनाए तो शायद हमें अपनी खोई हुई शक्ति सहजता से मिल सकती है |
मित्रों हम बोर हो रहे है ,निराशा के भाव हमें झेलने पड़ रहें हैं ,अपने आपका खाली पन हममे बढ़ता जारहा है ,और कहीं भी हमारा मन नहीं लग रहा है यानि की हम अपने कर्तव्य ,कड़ी मेहनत और स्वयं को परिष्कृत करने की बजाय हम अपने से दूसरे व्यक्तित्व का आकलन या तुलना करने लगे है, जबकि यह विषय आपका था ही नही था |
एक चोर के पीछे बहुत से लोग दौड़ रहे थे अचानक चोर छत से गिर पडा सड़क से सेना का मार्च निकल रहा था ,सिपाहियों ने बिना वक्त गवांये उसे जेल मे डाल दिया ,दस दिन बाद देश को आज़ादी मिल गई ,और चोर भी बहुत बड़ा बलिदानी बनकर दखने लगा |समय और परिस्थितियों से जब उसे सर्वोच्च पुरूस्कार मिला तो उसकी आत्मा ने उसे फिर वहीं खडा करदिया जहाँ वो था,आत्मग्लानि और अपनी ही नजर मे गिरने के कारण वह स्वयं को कभी माफ नहीं कर सका |
आज मेरे मत मे कुछ बिन्दु अवश्य है |
कठिन परिश्रम एवं कुछ कर गुजरने का संकल्प हमेशा साथ रखें |
दूसरों के प्रति भी धनात्मक सोच रखने की कोशिश करें ,आलोचना और केवल आलोचना यह बताती है कि आपके मन मष्तिष्क पर उसकी अमिट छाप है और आप उसके कार्यों से प्रभावित हो रहे हैं |
आपको अपने को और अधिक परिष्कृत करने के लिए पहल करते रहना चाहिए ,क्योकि आप मे अपरमितशक्ति है और आप श्रेष्ठतम् है बस आपको यही साबित करना है आप अपना काम पूर्ण मनोयोग से करें समयआपको सिद्ध करदेगा |
अपने को प्रसंशा का पात्र समझाने के लिए आप स्वयं को अपनी ही आत्मा के सामने प्रस्तुत करें आपकानिर्णय तुंरत हो जाएगा|
आप विद्यार्थी है और ऊम्र भर ऐसे ही रहेंगे अपने मे नित्य नया सीखनें की ललक बनाए रखियें ,आपकोजीवन मे जीने का उद्देश्य समय अपने आप दे देगा |
सबको प्रकृति के अनुसार सहज प्रेम करें ,यदि आप प्रेम की इस परिक्षा मे सफल हुए तो आप आत्म केंद्रित होकरकेवल अपने विकास से जुड़ जायेंगे बस यहीं से आपका एक नया जन्म भी होगा|
सारत: यह कि जीवन मे जो लोग मिल रहें हैं जो कार्य चलरहा है जो समय आपको दे रहा है उसके लिए आप ही जिम्मेदार हो, और आपको अपने साथ सबका हित सोचना है यदि यही सत्य जीवन ने आपके भावों मे भर दिया तो दूसरे कि चिंता और फिक्र मे आपका मन मष्तिष्क कभी नहीं उलझेगा ,आप स्वयं एक ऐसा चिराग बन जायेंगे जिसकी रौशनी समय और समाज को आपके बाद भी नयी दिशा देती रहेगी|
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