इंतज़ार

जीवन तो नाम ही इंतज़ार का था पैदा होने से मृत्यु पर्यंत तक तो केवल इंतज़ार ही तो था जो मरे साथ रहा आदमी का पूर्ण सत्य था वह इंतज़ार जिसे वह कभी स्वीकार न कर सका जीवन मगर सत्य जनता ही था उसने चाहते न चाहते अपने भाव से हर पल का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार किया : 
योगी ध्यान की संपूर्ण मुद्राओं मे इंतज़ार करता रहा तो दूसरी तरफ़ भक्ती मार्ग अपने आराध्य का मार्ग देखता रहा चकवा पक्षी स्वाति नक्षत्र के जल की कहानी अपने नन्हे बच्चो को समझाता रहा और पूर्ण सत्य को जानने वाला हर महा पुरूष इस दुविधा मे रहा की वो सही था की नही जो पूर्ण मानताथा उसे इश्वर ने धोखे बज और फरेबी माना जो भोला सहज और जिज्ञासु था उसे उसने अधिक करीब माना जीवन के हर पल ने जीवन को इंतज़ार कीपरिभाषाये दी और आदमी उसका ही खिलौना बना रहा धर्म संस्कृति समाज अपनी अपनी सोच के साथ इंतज़ार करते रहे आदमी मूक भाव से उसे झेलते झेलते स्वयं एक पहेली बन बैठा

बार बार प्रश्न यह उठा कि उसे ऐसा इंतज़ार करना ही नही था मगर शायद वो मजबूर था
माँ के गर्भ मे बड़ा होने के लिए अपनों का अपनात्वा पाने के लिए समाज के साथ चलने केलिए शिक्षा व्यव्हार और जीवन कि हर छोटी विषय स्थिति केलिए उसे दीर्घ कालिक इंतज़ार करना पड़ा था बाद मे उसके परिवर्तनों का युग शुरू हुआ वहा हर आदमी अनेक मुखोटे लगाये था और आदमी एक बार फिर मानसिक द्वंद men था कि उसका अपना है कोन

हम जिस युग मे जी रहे है वो तो मुर्दा खोरो का हुजूम है जो शारिरीक भूख के बाद अपने संबंधो का अर्थ भी नही जानते मन आत्मा और सत्य उनके वश के बहार ही है और इसमे हमें इंतज़ार है अपने उस मसीहा की जो हमारी आत्मा के सत्यha कोlh जान पाता और हम बैठे है उसी मसीहा कि तलाश मे जीवन छोटा पड़ जाता है इंतज़ार का समय नही रहता सब कुछ हारा सा जान पड़ता है ।
हम अपनी पूरी शक्ति से इंतज़ार करने लगते है जीवन के हर भद्दे मजाक के लिए 
अब जीवन के आरम्भ से अंत तक आदमी के साथ सबसे ज्यादा जिसका साथ रहा वो था इंतज़ार लोग आते 
रहे जाते रहे आदमी आदमी बेबस सा करता रहा था इंतज़ार माँ के गर्भ से चिता के अन्तिम पड़ाव के समय तक उसे इंतज़ार ही तो करना पड़ा था हर आदमी से अच्छा बुरा व्यवहार करके उसने किया था केवल इंतज़ार 

गीता ने अपने पूर्ण सार मे कहा ' सुख दुखे समे कृत्वा लाभा लाभे जाया जयो '
अर्थात लाभ हनी जे पराजय और सुख दुःख मे समान रहिये एक साक्षी भाव पैदा करे जो नाटो इंतज़ार का मोहताज़ होगा न हर आदमी से अपेक्षा करता दिखाई देगा 
सारांश यह की जीवन को केवल वर्तमान में जिए हर पल से जो चुराना है वह प्राप्त करे बिना संकोच के 
नही तो कल सब बदल जनiहै एक इंतज़ार में और अगला जन्म भी अपने थोथे मूल्यों में हारा थका और निराश सा कर रहा होगा एक सुदीर्घ और नही ख़त्म होने वाला इंतज़ार 

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